
वॉशिंगटन/जोहान्सबर्ग, 8 नवंबर: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस वर्ष दक्षिण अफ्रीका में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की भागीदारी रद्द करने की घोषणा की है। ट्रंप ने कहा है कि “दक्षिण अफ्रीका में श्वेत किसानों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार” को देखते हुए उनका प्रशासन इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेगा।
इस फैसले के साथ ही ट्रंप सरकार ने दक्षिण अफ्रीका के प्रति अपने सख्त रुख का संकेत दिया है। पहले से ही ट्रंप ने यह घोषणा कर रखी थी कि वह स्वयं इस सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे। उनकी जगह अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस (J.D. Vance) को प्रतिनिधित्व करना था, लेकिन अब वेंस की यात्रा भी रद्द कर दी गई है। इस फैसले की पुष्टि वेंस के कार्यक्रम से परिचित एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर की है।
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दिया बयान
डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट Truth Social पर लिखा,
“यह पूरी तरह से अपमानजनक है कि इस वर्ष का G20 सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका में आयोजित किया जा रहा है। वहां श्वेत किसानों पर अत्याचार, हिंसा और उनकी जमीनें जब्त की जा रही हैं। अमेरिकी सरकार ऐसे देश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान देने का समर्थन नहीं कर सकती।”
ट्रंप ने आरोप लगाया कि दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने वर्षों से अल्पसंख्यक श्वेत अफ्रीकन किसानों (White Afrikaner Farmers) के खिलाफ हिंसा को नज़रअंदाज किया है। उनका दावा है कि इन किसानों की संपत्ति और भूमि को जब्त कर, “भूमि पुनर्वितरण” के नाम पर अश्वेत समूहों को दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका ऐसे “असमान और अमानवीय व्यवहार” को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैध ठहराने का हिस्सा नहीं बनेगा।
ट्रंप प्रशासन की पुरानी नाराज़गी
ट्रंप का यह बयान दक्षिण अफ्रीका पर अमेरिकी प्रशासन की पहले से चली आ रही आलोचनाओं का ही विस्तार है। उनके कार्यकाल के दौरान भी ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर “श्वेत किसानों की जमीन जबरन छीने जाने” का आरोप लगाया था। उस समय भी दक्षिण अफ्रीका ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि भूमि सुधार कार्यक्रम ऐतिहासिक असमानताओं को खत्म करने के लिए हैं, न कि नस्लीय प्रतिशोध के लिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम घरेलू राजनीतिक संकेत भी देता है। अमेरिका में 2026 के मध्यावधि चुनावों और 2028 के राष्ट्रपति चुनावों की पृष्ठभूमि में ट्रंप लगातार “राष्ट्रवादी और संरक्षणवादी” एजेंडा को मजबूत कर रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका पर रुख सख्त करना उसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
दक्षिण अफ्रीका की कड़ी प्रतिक्रिया: “आरोप झूठे और भ्रामक”
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने ट्रंप के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
देश के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा (Cyril Ramaphosa) ने बयान जारी कर कहा,
“ट्रंप के आरोप पूरी तरह से झूठे हैं। रंगभेद खत्म हुए 30 साल हो चुके हैं। दक्षिण अफ्रीका आज समानता, न्याय और सह-अस्तित्व की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह कहना कि हमारे देश में श्वेत किसानों को सताया जा रहा है, तथ्यहीन और राजनीतिक रूप से प्रेरित दावा है।”
रामफोसा ने यह भी कहा कि अमेरिका के इस निर्णय से G20 की एकता और वैश्विक सहयोग पर गलत असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका की भूमि नीति का उद्देश्य ऐतिहासिक असमानताओं को ठीक करना है, न कि किसी समुदाय के खिलाफ भेदभाव करना।
सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि ट्रंप के बयान से अफ्रीका-अमेरिका संबंधों को नुकसान हो सकता है, जो पिछले कुछ वर्षों में व्यापार, ऊर्जा और जलवायु सहयोग के क्षेत्र में सुधार की दिशा में बढ़ रहे थे।
विश्लेषकों की राय: ‘राजनीतिक संदेश ज़्यादा, नीति कम’
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक इस फैसले को अमेरिकी घरेलू राजनीति से प्रेरित मान रहे हैं।
जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क एलेन का कहना है,
“ट्रंप का यह बयान घरेलू वोट बैंक को ध्यान में रखकर दिया गया है। दक्षिण अफ्रीका पर ‘श्वेत किसानों’ का मुद्दा अमेरिका में दक्षिणपंथी समूहों के बीच संवेदनशील विषय रहा है। यह रुख विदेश नीति से अधिक, राजनीतिक लाभ से जुड़ा लगता है।”
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह फैसला G20 मंच पर चीन और रूस के प्रभाव को बढ़ा सकता है, क्योंकि अमेरिका की अनुपस्थिति से इन देशों को अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने का अवसर मिलेगा।
G20 सम्मेलन पर असर
इस वर्ष का G20 सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में आयोजित होना है।
भारत, चीन, फ्रांस, ब्राजील, जापान, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेता इसमें भाग लेने वाले हैं।
अमेरिका की अनुपस्थिति से सम्मेलन में कई वैश्विक मुद्दों — विशेषकर जलवायु परिवर्तन, व्यापार नीति और वैश्विक दक्षिण (Global South) के प्रतिनिधित्व — पर संवाद सीमित हो सकता है।
G20 के एक अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी प्रतिनिधि के नहीं आने से साझा घोषणापत्र (Joint Communiqué) पर सहमति बनाना कठिन हो सकता है, क्योंकि कई आर्थिक मसलों पर अमेरिका की भूमिका अहम होती है।
‘अंतरराष्ट्रीय रिश्तों पर गहराता अविश्वास’
ट्रंप प्रशासन का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और अफ्रीकी देशों के बीच संबंधों में सुधार की कोशिशें चल रही थीं। राष्ट्रपति बाइडन के कार्यकाल में वाशिंगटन ने अफ्रीका को “वैश्विक साझेदार” मानते हुए निवेश और विकास योजनाओं में वृद्धि की थी।
लेकिन अब, ट्रंप के इस बयान से संकेत मिलता है कि अगर वह 2028 में दोबारा सत्ता में आते हैं तो अमेरिका की विदेश नीति एक बार फिर ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) के सख्त संस्करण की ओर लौट सकती है।
अमेरिका के इस निर्णय ने न केवल दक्षिण अफ्रीका बल्कि G20 के अन्य सदस्य देशों को भी चौंका दिया है।
जहां एक ओर दक्षिण अफ्रीका इसे राजनीतिक नाटक बता रहा है, वहीं ट्रंप इसे “नैतिक रुख” बताकर अपने समर्थकों के बीच लोकप्रियता बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
अब देखना होगा कि क्या ट्रंप का यह फैसला अमेरिका की वैश्विक छवि पर स्थायी प्रभाव डालता है, या यह सिर्फ एक चुनावी बयानबाजी बनकर रह जाएगा।



