
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: देश की सर्वोच्च अदालत सोमवार, 28 जुलाई को तीन ऐसे मामलों की सुनवाई करने जा रही है, जिनका प्रभाव राजनीतिक पारदर्शिता, न्यायपालिका की साख और पर्यावरणीय नीतियों पर गहरा असर डाल सकता है। इन मामलों में बिहार विधानसभा चुनावों से जुड़ी मतदाता सूची की प्रक्रिया, इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश पर लगे गंभीर आरोप, और पुराने वाहनों पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध जैसे मुद्दे शामिल हैं।
🗳️ बिहार चुनाव से पहले SIR पर रोक लगेगी? कोर्ट तय करेगा
राज्य में इस वर्ष के अंत में संभावित विधानसभा चुनावों से पहले निर्वाचन आयोग ने ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया शुरू की है। इस कदम को कई याचिकाओं में पक्षपातपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ बताया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से चलाई जा रही है।
इस मामले पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ सुनवाई करेगी। यदि कोर्ट SIR प्रक्रिया पर रोक लगाती है, तो इसका सीधा असर बिहार चुनाव की तैयारियों और मतदाता सूची के संशोधन कार्य पर पड़ सकता है।
⚖️ न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की याचिका: क्या न्यायपालिका खुद को कठघरे में पाएगी?
दूसरा मामला न्यायिक नैतिकता और पारदर्शिता से जुड़ा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उनके खिलाफ आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें नकदी बरामदगी मामले में दोषी ठहराया गया था।
वह चाहते हैं कि रिपोर्ट को अमान्य घोषित किया जाए, जिसे वह प्रक्रियागत अन्याय बता रहे हैं। इस याचिका पर जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ सुनवाई करेगी। यह मामला भारत की न्यायिक प्रणाली में उत्तरदायित्व और आत्म-निरीक्षण की सीमा तय करने वाला हो सकता है।
🌱 क्या पुराने पेट्रोल-डीजल वाहनों पर लगे प्रतिबंध में होगी ढील?
तीसरा मामला पर्यावरण और नागरिक सुविधा के टकराव का है। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था।
सरकार का तर्क है कि इस आदेश के चलते लाखों लोगों की रोजमर्रा की आवाजाही और आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है। साथ ही, वाहनों की स्क्रैपिंग व्यवस्था भी अधूरी और अव्यवस्थित है। इस याचिका पर प्रधान न्यायाधीश भूषण आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ विचार करेगी।
तीनों मामलों के फैसले होंगे दूरगामी
इन तीनों मामलों की सुनवाई से यह तय होगा कि —
- चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता किस हद तक सुनिश्चित की जा सकती है,
- न्यायाधीशों के आचरण की जांच किस प्रक्रिया से होनी चाहिए,
- और पर्यावरणीय नीतियों को लागू करते समय आम नागरिकों की सुविधा कितनी महत्वपूर्ण होनी चाहिए।
इन फैसलों के देशभर की नीतियों और भविष्य के कानूनों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। अदालती कार्यवाही पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।