
नई दिल्ली | ब्यूरो रिपोर्ट: तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह व्यक्तिगत नहीं, बल्कि चुनाव प्रक्रिया की संवैधानिकता से जुड़ी है। महुआ मोइत्रा ने चुनाव आयोग (ECI) के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) किए जाने की बात कही गई है।
महुआ की याचिका में कहा गया है कि यह आदेश मनमाना, पक्षपातपूर्ण और असंवैधानिक है, जो खासतौर पर गरीबों, महिलाओं और प्रवासी मजदूरों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वंचित करने की साजिश है। उन्होंने अदालत से अपील की है कि इस आदेश पर तत्काल रोक लगाई जाए, और चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाएं कि वह अन्य राज्यों में भी ऐसा कोई आदेश जारी न करे।
क्या है विवादित आदेश?
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की घोषणा की है। सामान्यतः मतदाता सूची का रिवीजन एक निश्चित प्रक्रिया के तहत होता है, लेकिन इस मामले में विशेष पुनरीक्षण को लेकर विपक्षी दलों में असंतोष है।
महुआ मोइत्रा ने इस आदेश को चुनावी प्रक्रिया में हस्तक्षेप बताते हुए कहा कि,
“यह आदेश न केवल लोकतंत्र की आत्मा पर चोट है, बल्कि यह उन नागरिकों को वंचित करने की कोशिश है, जो पहले से हाशिए पर हैं।”
राजनीतिक हलकों में हलचल
महुआ की इस याचिका के राजनीतिक निहितार्थ भी गहरे हैं। एक तरफ केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं TMC इस कदम को संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के तौर पर पेश कर रही है।
TMC के वरिष्ठ नेता ने बयान में कहा,
“जब संसद और निर्वाचन आयोग से भरोसा उठता है, तो लोकतंत्र की अंतिम आशा सुप्रीम कोर्ट ही बचती है। महुआ ने यही रास्ता चुना है।”
महुआ मोइत्रा हाल के विवादों में भी रहीं सुर्खियों में
हाल ही में महुआ मोइत्रा ने पूर्व बीजद सांसद और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील पिनाकी मिश्रा से बर्लिन में विवाह किया। यह खबर सोशल मीडिया पर वायरल रही और उनकी निजी जिंदगी एक बार फिर सार्वजनिक चर्चा का केंद्र बनी।
इसके अलावा TMC के वरिष्ठ नेता कल्याण बनर्जी के विवादित बयान ने भी मामला गरमा दिया। बनर्जी ने महुआ पर व्यक्तिगत टिप्पणी करते हुए न सिर्फ उनकी शादी और “हनीमून” पर तंज कसा, बल्कि उन्हें “एक परिवार तोड़ने वाली” तक कह डाला।
महुआ ने इस बयान को “स्त्री विरोधी और अपमानजनक” बताते हुए कड़ा ऐतराज जताया।
कानूनी मोर्चे पर अगला कदम क्या होगा?
अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं कि क्या वह चुनाव आयोग के इस आदेश पर तत्काल रोक लगाता है या मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए विस्तृत सुनवाई की ओर बढ़ता है।
संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अदालत इस याचिका को विशेष जनहित के तौर पर स्वीकार करती है, तो इससे चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र और उसकी निष्पक्षता को लेकर एक नई संवैधानिक बहस की शुरुआत हो सकती है।
फिलहाल सवाल यही है:
- क्या चुनाव आयोग का आदेश सिर्फ एक सामान्य प्रक्रिया है या इसके पीछे कोई छिपा हुआ एजेंडा?
- क्या सुप्रीम कोर्ट इस आदेश को लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ मानता है?
- और क्या महुआ मोइत्रा अपने इस कानूनी संघर्ष के ज़रिए लोकतांत्रिक न्याय की नई मिसाल बन पाएंगी?