
नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम। केरल में “दिमाग खाने वाले अमीबा” (Brain-Eating Amoeba) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। बीते एक महीने में राज्य में कुल 6 लोगों की मौत हो चुकी है, जिससे स्वास्थ्य विभाग और केंद्र सरकार में चिंता बढ़ गई है। इस संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) ने निगरानी बढ़ा दी है और सभी मेडिकल कॉलेजों व जिला अस्पतालों को अलर्ट पर रहने का निर्देश दिया गया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, NCDC और राज्य स्वास्थ्य विभाग लगातार स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। इस बीच, लैब टेस्टिंग, मरीजों की मॉनिटरिंग और महामारी विज्ञान (Epidemiological Investigations) की जांच भी तेज कर दी गई है ताकि संक्रमण के फैलाव को रोका जा सके।
मृत्यु दर 98%: कोरोना से भी कहीं ज्यादा घातक
NCDC के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस बीमारी को प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएनसेफेलाइटिस (PAM) कहते हैं, जो “नेगलेरिया फाउलेरी” (Naegleria fowleri) नामक अमीबा के कारण होती है। यह संक्रमण बेहद दुर्लभ लेकिन अत्यंत जानलेवा है।
- यह बीमारी मरीज को 4 से 14 या 18 दिन के भीतर मौत के मुंह में धकेल सकती है।
- इसकी मृत्यु दर लगभग 98% है। यानी 100 में से 98 मरीजों की जान चली जाती है।
- तुलना करें तो कोरोना संक्रमण की मृत्यु दर औसतन 1-2% थी, जबकि टीबी की मृत्यु दर करीब 10% है।
यह आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि यह संक्रमण कोरोना से भी 97 गुना ज्यादा घातक है। ऐसे में समय पर सतर्कता और बचाव ही एकमात्र उपाय है।
बच्चों और युवाओं पर ज्यादा खतरा
भारत सरकार की सलाहकार समिति की सदस्य डॉ. सुनीला गर्ग के अनुसार, यह बीमारी भारत में नई नहीं है। पिछले कई वर्षों से इसके मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन हाल के समय में इनकी संख्या में इजाफा हुआ है।
- संक्रमण मुख्यतः 10 से 18 साल के बच्चों और किशोरों में देखा जा रहा है।
- कारण यह है कि वे नदी, तालाब या जलाशयों में स्नान और खेलकूद करना पसंद करते हैं।
- इस दौरान अमीबा युक्त पानी नाक के रास्ते मस्तिष्क में प्रवेश कर जाता है और धीरे-धीरे ब्रेन टिश्यू को नष्ट कर देता है।
डॉ. गर्ग का कहना है कि यह बीमारी छूने या आपस में संपर्क से नहीं फैलती। लेकिन जिन इलाकों में बारिश, बाढ़ या गंदा पानी जमा है, वहां खतरा ज्यादा रहता है।
संक्रमण कैसे फैलता है?
विशेषज्ञों के अनुसार, Naegleria fowleri गर्म और गंदे पानी में पनपता है। यह इंसान के शरीर में तब प्रवेश करता है जब व्यक्ति नदी, तालाब या स्विमिंग पूल जैसे जल स्रोत में डुबकी लगाता है और पानी नाक के रास्ते ऊपर चला जाता है।
- यह अमीबा सीधे नाक से दिमाग तक पहुंचकर संक्रमण फैलाता है।
- इसके लक्षण मेनिंगाइटिस (मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन) से मिलते-जुलते हैं।
- मरीज को भयंकर सिरदर्द, उल्टी, बुखार, दौरे और बेहोशी जैसी समस्याएं होने लगती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती दिनों में लक्षणों को सामान्य संक्रमण समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जो मरीज की जान पर भारी पड़ता है।
क्या है बचाव का उपाय?
अभी तक इस बीमारी का कोई गारंटीड इलाज उपलब्ध नहीं है। कुछ एंटी-अमीबिक दवाएं और एक्सपेरिमेंटल थैरेपी आजमाई जाती हैं, लेकिन सफलता दर बेहद कम है। ऐसे में बचाव ही सबसे बड़ा हथियार है।
विशेषज्ञों की सलाह:
- बारिश या बाढ़ का पानी जमा होने वाले इलाकों में बच्चों को स्नान या खेलने से रोकें।
- तालाब, झील और असुरक्षित स्विमिंग पूल से दूरी बनाए रखें।
- अगर पानी में जाना जरूरी हो तो नाक को बंद रखें या नोज-क्लिप का इस्तेमाल करें।
- किसी भी तरह का असामान्य सिरदर्द, उल्टी या दौरे दिखने पर तुरंत अस्पताल जाएं।
सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों की तैयारी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने NCDC को रियल-टाइम निगरानी और केस रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी दी है।
- मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि संदिग्ध मामलों को तुरंत रिपोर्ट करें।
- लैब टेस्टिंग को प्राथमिकता दी गई है ताकि समय रहते पहचान की जा सके।
- राज्य स्वास्थ्य विभाग को जन जागरूकता अभियान चलाने के लिए कहा गया है ताकि लोग गंदे पानी से दूर रहें और सावधानियां बरतें।
क्यों है यह खबर राष्ट्रीय महत्व की?
केरल में दर्ज हुए मामले केवल एक राज्य तक सीमित नहीं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और बाढ़ जैसी आपदाएं भारत के कई हिस्सों में इस अमीबा के फैलाव का जोखिम बढ़ा सकती हैं।
अगर अभी से सतर्कता और निगरानी नहीं बढ़ाई गई तो आने वाले समय में यह संक्रमण अन्य राज्यों तक भी फैल सकता है।
केरल में दिमाग खाने वाले अमीबा से 6 मौतें होना सिर्फ एक राज्य की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी है।
98% मृत्यु दर वाली इस बीमारी से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें भले ही सक्रिय हो गई हैं, लेकिन आम जनता की सावधानी और जागरूकता ही असली सुरक्षा कवच है।