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दिल्ली–एनसीआर के पास मौजूद ताप विद्युत संयंत्रों में 10 वर्षों से ‘स्टैक उत्सर्जन’ की नहीं हुई जांच: RTI खुलासा, वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था पर उठे सवाल

नई दिल्ली, 12 दिसंबर: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की हवा हर सर्दी में बेहद प्रदूषित हो जाती है, परंतु अब सामने आया है कि प्रदूषण नियंत्रण की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में से एक—ताप विद्युत संयंत्रों (Thermal Power Plants) में स्टैक उत्सर्जन की पूर्ण जांच—पिछले 10 वर्ष से नहीं की गई।

यह खुलासा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली एक महत्वपूर्ण जानकारी में हुआ है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने RTI के जवाब में स्वीकार किया कि दिल्ली से 300 किलोमीटर के दायरे में मौजूद किसी भी ताप विद्युत संयंत्र के स्टैक उत्सर्जन की पूर्ण और व्यापक जांच पिछले एक दशक में नहीं हुई है। यह जानकारी न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि देश की वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली पर एक बड़ा सवाल भी उठाती है।


स्टैक उत्सर्जन क्या होता है और क्यों महत्वपूर्ण है?

स्टैक उत्सर्जन का अर्थ उस प्रदूषण से है जो बिजली, उत्पादन और भट्ठों जैसे औद्योगिक संयंत्रों की ऊँची चिमनियों (stack/chimney) से निकलता है। इसमें शामिल होते हैं—

  • सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂)
  • नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx)
  • पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5 / PM 10)
  • कार्बन मोनोऑक्साइड
  • भारी धातुएँ
  • और अन्य हानिकारक रसायन

इन उत्सर्जनों की नियमित माप से पता चलता है कि संयंत्र पर्यावरणीय मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं।

स्टैक उत्सर्जन की जाँच तीन कारणों से बेहद आवश्यक है—

  1. यह औद्योगिक प्रदूषण की वास्तविक स्थिति बताता है।
  2. यह तय करता है कि संयंत्र पर्यावरण कानूनों के अनुरूप तकनीक का उपयोग कर रहे हैं या नहीं।
  3. वायु प्रदूषण नियंत्रण की नीतियाँ इसी डेटा पर आधारित होती हैं।

लेकिन RTI से सामने आए तथ्य बताते हैं कि देश के सबसे संवेदनशील प्रदूषण क्षेत्र—एनसीआर—में स्थित ताप संयंत्रों का वास्तविक स्टैक डेटा पिछले 10 वर्षों से उपलब्ध ही नहीं है।


RTI खुलासा: कोई फुल-स्केल ऑडिट नहीं किया गया

मिली जानकारी में CPCB ने साफ कहा कि—

“पिछले 10 वर्षों में दिल्ली के 300 किमी क्षेत्र के भीतर किसी ताप विद्युत संयंत्र की स्टैक उत्सर्जन की पूर्ण जांच नहीं हुई।”

इस दायरे में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली क्षेत्रों में कई बड़े कोयला-आधारित बिजली संयंत्र आते हैं, जो वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत माने जाते हैं।

इसमें शामिल हैं—

  • बदांगर और झज्जर (हरियाणा) के संयंत्र
  • अंजना, दादरी, और हरदोई क्षेत्र के संयंत्र (उत्तर प्रदेश)
  • राजस्थान के अलवर, भरतपुर क्षेत्र के संयंत्र
  • और दिल्ली से सटे कई औद्योगिक कोयला आधारित इकाइयाँ

इन संयंत्रों से निकलने वाला उत्सर्जन सर्दियों में एनसीआर के प्रदूषित वायु स्तर को और खराब करता है।


क्या केवल CEMS डेटा पर निर्भरता पर्याप्त है? विशेषज्ञ बोले—“नहीं”

कई ताप संयंत्र अपने उत्सर्जन को मापने के लिए Continuous Emission Monitoring System (CEMS) का उपयोग करते हैं, परन्तु विशेषज्ञों का कहना है कि—

“सिर्फ CEMS के भरोसे वायु गुणवत्ता का वास्तविक आकलन संभव नहीं। फिजिकल वेरिफिकेशन यानी स्टैक मॉनिटरिंग आवश्यक है।”

CEMS कई बार—

  • गलत डेटा रिकॉर्ड करता है
  • कंपनियाँ इसे बंद रखती हैं
  • मैन्युअल कैलिब्रेशन नहीं होता
  • और इसमें छेड़छाड़ की संभावना रहती है

इसलिए CPCB द्वारा पूर्ण जांच न करना नीति-निर्धारण में बड़ी खामी मानी जा रही है।


एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के दावे कैसे भरोसेमंद माने जाएँ?

एनसीआर में हर सर्दी में—

  • AQI “गंभीर” स्तर तक पहुँच जाता है
  • कोर्ट और CAQM को मैन्युअल हस्तक्षेप करना पड़ता है
  • स्कूल बंद होते हैं
  • उद्योगों पर प्रतिबंध लगता है

ऐसे में सवाल स्वाभाविक है कि—

जब औद्योगिक उत्सर्जन की मूलभूत जांच 10 वर्षों से नहीं हुई, तो वायु प्रदूषण नियंत्रण की योजनाएँ किस आधार पर बन रही थीं?

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे वायु गुणवत्ता प्रबंधन की “सबसे बड़ी लापरवाही” बताया है।


ताप विद्युत संयंत्रों का वास्तविक योगदान कितना?

अध्ययनों में यह सामने आ चुका है कि एनसीआर के PM2.5 प्रदूषण में—

  • ताप विद्युत संयंत्रों का योगदान 7–15% तक है
  • सर्दियों में यह प्रतिशत बढ़ जाता है
  • कोयला आधारित संयंत्र SO₂ और NOx का सबसे बड़ा स्रोत हैं

जब उत्सर्जन डेटा ही उपलब्ध नहीं है, तो प्रदूषण के वास्तविक स्रोतों को नियंत्रित करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।


RTI के बाद विशेषज्ञों और एक्टिविस्टों की कड़ी प्रतिक्रिया

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है—

“यह गंभीर चूक है। एक दशक तक स्टैक मॉनिटरिंग न करना वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।”

एक्टिविस्टों का आरोप—

“एनसीआर में एंटी-प्रदूषण नीतियाँ अगर सही डेटा पर आधारित ही नहीं हैं, तो यह जनता के साथ धोखा है।”

नीति विशेषज्ञों की राय—

“भारत नेट-जीरो लक्ष्य की बात कर रहा है, पर बिना उत्सर्जन की सटीक जानकारी के कोई अर्थपूर्ण नीति बन ही नहीं सकती।”


अगला कदम क्या होना चाहिए?

विशेषज्ञ निम्नलिखित कदम तुरंत उठाने की सलाह दे रहे हैं—

  1. CPCB द्वारा सभी संयंत्रों का पूर्ण स्टैक ऑडिट कराया जाए
  2. उत्सर्जन डेटा को सार्वजनिक किया जाए
  3. CEMS सिस्टम की स्वतंत्र ऑडिट एजेंसी से जाँच हो
  4. उच्च प्रदूषण करने वाले संयंत्रों पर तत्काल कार्रवाई
  5. स्टैक उत्सर्जन रिपोर्ट को AQI नीति का हिस्सा बनाया जाए

निष्कर्ष: एनसीआर की हवा सुधारने के लिए पारदर्शिता और जिम्मेदारी ज़रूरी

RTI का यह खुलासा बताता है कि एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण की लड़ाई में डेटा की कमी और निगरानी की कमी सबसे बड़ी बाधाएँ हैं।
जब देश की राजधानी गंभीर प्रदूषण संकट में हर साल घिरती है, तब यह आवश्यक है कि—

  • सभी औद्योगिक इकाइयाँ
  • विशेषकर ताप विद्युत संयंत्र

कड़े और नियमित पर्यावरणीय परीक्षणों से गुजरें। 10 वर्षों तक स्टैक उत्सर्जन की “पूर्ण जांच” न होना एक ऐसा तथ्य है जो दर्शाता है कि प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों में अभी बहुत सुधार की आवश्यकता है।

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