
ल्हासा (तिब्बत): दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के तिब्बती हिस्से में आए भीषण बर्फीले तूफान के बाद चला 72 घंटे का रेस्क्यू ऑपरेशन आखिरकार मंगलवार, 7 अक्टूबर को पूरा हो गया. इस अभूतपूर्व अभियान में अब तक के सबसे बड़े खोज एवं बचाव मिशनों में से एक को अंजाम दिया गया, जिसमें 580 से अधिक ट्रेकर्स, स्थानीय गाइड और याक चरवाहों को बर्फ की कैद से बाहर निकाला गया. अधिकारियों के मुताबिक, रेस्क्यू टीमों ने ‘जीवन और मौत की लड़ाई’ जैसी परिस्थितियों में लगातार तीन दिन तक राहत कार्य चलाया.
यह बर्फीला तूफान एवरेस्ट के पूर्वी हिस्से में स्थित कर्मा घाटी (Karma Valley) में आया था, जो समुद्र तल से लगभग 4,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हफ्ते के अंत में आए इस असामान्य रूप से शक्तिशाली तूफान ने सैकड़ों ट्रेकर्स को चारों ओर से घेर लिया था. बर्फबारी इतनी तेज थी कि कुछ ही घंटों में कई फीट मोटी बर्फ जमा हो गई और दर्जनों रास्ते पूरी तरह बंद हो गए.
72 घंटे का ‘ऑपरेशन कर्मा वैली’: मौत से जंग जीतने की कहानी
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार सुबह जब तूफान ने गति पकड़ी, तब लगभग 500 से ज्यादा लोग पर्वतीय रास्तों पर ट्रेकिंग कर रहे थे. अचानक मौसम बिगड़ने से दृश्यता लगभग शून्य हो गई. तापमान शून्य से नीचे 15 डिग्री तक गिर गया. कई ट्रेकर्स और स्थानीय गाइड बर्फ में फंस गए, कुछ ने याकों और ट्रेकिंग गियर्स की मदद से अस्थायी आश्रय बनाए.
रविवार सुबह तिब्बती प्रशासन ने बड़े पैमाने पर सर्च एंड रेस्क्यू मिशन शुरू किया. सेना, स्थानीय पुलिस, हेली-रेस्क्यू यूनिट्स और स्वयंसेवी पर्वतारोही समूहों ने संयुक्त रूप से मोर्चा संभाला. बर्फ की मोटी परत हटाने के लिए स्नो-कटर मशीनें, थर्मल डिटेक्टर, और सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया गया.
अधिकारियों ने बताया कि रविवार को ही 350 ट्रेकर्स को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा दिया गया, जबकि सोमवार से मंगलवार के बीच बाकी बचे 200 से अधिक ट्रेकर्स को भी निकाल लिया गया.
रेस्क्यू टीमों के अनुसार, “कई स्थानों पर रास्ते पूरी तरह गायब हो चुके थे. हमें बर्फ के नीचे लोगों की लोकेशन सिर्फ शरीर की गर्मी डिटेक्ट करने वाले थर्मल सेंसर से मिल पा रही थी.”
स्थानीय गाइड और चरवाहे बने ‘हीरो’
बचाव अभियान में स्थानीय याक चरवाहों और पर्वतीय गाइडों ने बड़ी भूमिका निभाई. वे ऐसे इलाकों के हर मोड़ और घाटी को अच्छी तरह जानते हैं. कई गाइडों ने बिना किसी उपकरण के, 40-45 किलोमीटर तक पैदल चलकर फंसे ट्रेकर्स तक खाना, पानी और दवाइयां पहुंचाईं.
स्थानीय मीडिया के अनुसार, कई चरवाहों ने अपनी जान जोखिम में डालकर दर्जनों विदेशी ट्रेकर्स को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया.
एक स्थानीय अधिकारी ने बताया, “हमने ऐसे लोग देखे जिन्होंने तीन रातें बिना खाना-पानी के, बर्फ की दीवारों के बीच गुजारीं. वे एक-दूसरे को गर्म रखने के लिए समूह में बैठे रहे. ये मानवीय साहस का सबसे बड़ा उदाहरण है.”
मौत का सन्नाटा और बचाव की उम्मीद
अधिकारियों ने पुष्टि की है कि इस तूफान में कम से कम एक ट्रेकर की मौत हाइपोथर्मिया और एक्यूट माउंटेन सिकनेस के कारण हुई है.
हालांकि यह संख्या और बढ़ सकती है क्योंकि कई लोग गंभीर रूप से बीमार पाए गए हैं.
माउंट एवरेस्ट के इस हिस्से में तापमान सामान्यतः -10°C से -20°C के बीच रहता है, लेकिन इस बार आए बर्फीले तूफान ने 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलाकर हालात और बदतर बना दिए.
कई विदेशी ट्रेकर्स, जो चीन के पश्चिमी हिस्सों जैसे शिनजियांग, किंघई और गांसु से आए थे, भी बर्फ में फंस गए थे. उनमें से अधिकांश को हेलीकॉप्टर के जरिए सुरक्षित स्थानों पर लाया गया.
क्लाइमेट चेंज और पर्यटन का बढ़ता दबाव
विशेषज्ञों के अनुसार, हाल के वर्षों में हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण अचानक मौसम में बदलाव और ग्लेशियरों की अस्थिरता बढ़ी है.
तिब्बत प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हमने पिछले पांच वर्षों में बर्फीले तूफानों की तीव्रता और आवृत्ति दोनों में इजाफा देखा है. एवरेस्ट क्षेत्र में तापमान में हर दशक लगभग 0.33°C की वृद्धि हो रही है, जो ग्लेशियरों के लिए खतरे की घंटी है.”
इसी के साथ, पर्यटन में भी तेज वृद्धि दर्ज की जा रही है.
पिछले वर्ष अकेले एवरेस्ट क्षेत्र में 5.4 लाख से अधिक पर्यटकों ने दौरा किया, जो अब तक का रिकॉर्ड है.
कर्मा घाटी, जिसे लगभग एक सदी पहले पश्चिमी खोजकर्ताओं ने खोजा था, अब एवरेस्ट के तिब्बती हिस्से का एक प्रमुख ट्रेकिंग हब बन चुकी है.
लेकिन इस लोकप्रियता ने पर्यावरण और सुरक्षा पर नया दबाव डाला है — प्रशासन को अब नए नियमों और आपात तैयारी को सख्त करने की जरूरत महसूस हो रही है.
बचाव मिशन के बाद की कार्रवाई
रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद चीनी आपात प्रबंधन मंत्रालय ने घोषणा की है कि पर्वतीय इलाकों में ट्रेकिंग परमिट और मौसम मॉनिटरिंग सिस्टम को और सख्त बनाया जाएगा.
अंतरराष्ट्रीय ट्रेकिंग एजेंसियों से कहा गया है कि वे भविष्य में अपने समूहों के लिए रियल-टाइम वेदर ट्रैकिंग और GPS रिपोर्टिंग सिस्टम अनिवार्य करें.
वहीं, स्थानीय लोगों के लिए भी प्रशासन ने राहत पैकेज की घोषणा की है. बर्फीले तूफान में जिनके याक, ट्रेकिंग उपकरण या घर क्षतिग्रस्त हुए, उन्हें आर्थिक सहायता दी जाएगी.
मानवीय जज्बे की मिसाल
एवरेस्ट के इस सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब इंसान एकजुट होकर जुझारूपन दिखाए, तो प्रकृति की भीषण मार के बीच भी उम्मीद जिंदा रहती है. एक रेस्क्यू कर्मी के शब्दों में — “हमने तीन दिन में बर्फ, मौत और डर — तीनों का सामना किया. लेकिन हर बार जब किसी ट्रेकर को जिंदा पाते, हमें लगता कि हमने खुद को भी बचा लिया.”