
अलवर: राजस्थान के अलवर जिले में पुलिस की कार्रवाई ने धर्मांतरण के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया है। मासूम बच्चों को हॉस्टल में कैद कर शिक्षा और परवरिश के नाम पर उनका ब्रेनवॉश किया जा रहा था। उनके नाम बदलकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा था। यह खुलासा केवल अलवर तक सीमित नहीं है, बल्कि इस नेटवर्क के तार चेन्नई और बेंगलुरु तक जुड़े पाए गए हैं।
धर्म परिवर्तन के इस संगठित खेल के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने वर्षों से मासूमों को गुमराह करने वाला यह रैकेट आखिर किसकी शह पर फल-फूल रहा था और इसकी जड़ें कितनी गहरी हैं?
कैसे हुआ खुलासा?
अलवर के एमआईए थाना क्षेत्र की सैय्यद कॉलोनी स्थित ईसाई मिशनरी हॉस्टल पुलिस की निगाह में तब आया जब शिकायतें मिलीं कि यहां बच्चों को कैद जैसा माहौल दिया जा रहा है।
छापेमारी के दौरान सामने आया कि—
- करीब 60 मासूम बच्चे, जिनकी उम्र 15 साल से कम थी, वहां रखे गए थे।
- बच्चों की असली पहचान छिपाकर उनके नाम ईसाई नामों से बदल दिए गए थे—कोई जोसेफ, कोई योहना और कोई जॉय।
- हॉस्टल की 10 फीट ऊंची दीवारें और तारबंदी इस बात का सबूत थीं कि बच्चों को वहां से भागने का कोई रास्ता न मिले।
पुलिस की कार्रवाई के दौरान कई बच्चे दीवार कूदकर भागने की कोशिश करते दिखे, लेकिन पुलिस ने 52 बच्चों को सुरक्षित निकाल लिया।
नेटवर्क का मास्टरमाइंड और फंडिंग
अलवर पुलिस ने इस मामले में सोहन सिंह और बोध अमृत सिंह नामक दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। जांच में सामने आया कि इस नेटवर्क का मास्टरमाइंड चेन्नई का धर्म गुरु सेल्वा है।
- अमृत सिंह पहले भी सीकर धर्मांतरण केस में गिरफ्तार हो चुका है।
- जमानत पर छूटने के बाद उसने अलवर का रुख किया और वहां वार्डन बनकर बच्चों को निशाना बनाने लगा।
- इस रैकेट के लिए बड़ी फंडिंग चेन्नई से आती थी।
- वहीं से ट्रेनिंग दी जाती थी कि बच्चों का ब्रेनवॉश कैसे करना है।
एसपी सुधीर चौधरी के अनुसार, नेटवर्क सुनियोजित तरीके से काम करता था और हर जगह एक ही पैटर्न पर बच्चों व उनके परिवारों को धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया जाता था।
संगठित साजिश की परतें खुलीं
पुलिस जांच में सामने आया कि इस रैकेट के नेटवर्क की पकड़ राजस्थान के अलावा गुजरात, बीकानेर, श्रीगंगानगर और अनूपगढ़ तक फैली हुई है।
- पकड़े गए बोध अमृत ने 2006 में ईसाई धर्म अपनाया था।
- इसके बाद उसे चेन्नई में ट्रेनिंग दी गई, जहां सिखाया गया कि कैसे बच्चों की मानसिकता बदली जाए।
- पिछले 19 सालों से वह लगातार धर्मांतरण गतिविधियों में सक्रिय रहा है।
- सीकर केस में पकड़े जाने के बाद जमानत पर छूटते ही वह अलवर में फिर से सक्रिय हो गया।
पुलिस ने हॉस्टल से धार्मिक ग्रंथ, डिजिटल डिवाइस और प्रचार सामग्री भी जब्त की है, जो इस साजिश के संगठित स्वरूप को साफ दिखाता है।
बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़
इस पूरी कहानी का सबसे भयावह पहलू यह है कि मासूम बच्चों को शिक्षा और परवरिश के नाम पर गुमराह किया जा रहा था।
- हॉस्टल में रखा जाता,
- बाहर से सरकारी स्कूलों में दाखिला दिखाया जाता,
- लेकिन लौटते ही बच्चों पर धार्मिक किताबें पढ़ने और प्रेयर करने का दबाव बनाया जाता।
रविवार को विशेष सभाएं आयोजित होती थीं, जिनमें बच्चों के माता-पिता को भी बुलाया जाता और धीरे-धीरे उन्हें भी नेटवर्क में जोड़ने की कोशिश की जाती।
राजनीतिक और सामाजिक हलचल
धर्मांतरण का यह खुलासा ऐसे समय हुआ है, जब राजस्थान विधानसभा में धर्मांतरण रोकने के लिए विधेयक पेश किया जा चुका है और मंगलवार को इस पर बहस होनी है।
इस घटना ने राजनीतिक हलकों में भी गर्माहट बढ़ा दी है। विपक्ष ने सवाल उठाया है कि सरकार इतनी बड़ी साजिश को अब तक कैसे नजरअंदाज करती रही। वहीं सरकार का कहना है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी और किसी भी सूरत में मासूम बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सवालों के घेरे में सिस्टम
- क्या इस नेटवर्क को स्थानीय स्तर पर किसी की शह मिली हुई थी?
- इतने लंबे समय तक यह सब चलता रहा और प्रशासन को भनक क्यों नहीं लगी?
- बच्चों की शिक्षा और परवरिश की आड़ में धर्मांतरण कराने वाले इस रैकेट की आर्थिक जड़ें कितनी गहरी हैं?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना केवल कानूनी उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह बच्चों के मानसिक और सामाजिक शोषण का मामला भी है।
अलवर का यह मामला दिखाता है कि धर्मांतरण अब केवल सामाजिक समस्या नहीं रहा, बल्कि एक संगठित और सुनियोजित नेटवर्क के रूप में काम कर रहा है। इसकी फंडिंग, ट्रेनिंग और विस्तार का स्तर बेहद चिंताजनक है।
राजस्थान पुलिस की कार्रवाई से कई बच्चों को तो राहत मिल गई है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार और समाज मिलकर इस तरह की साजिशों की जड़ तक पहुंच पाएंगे?