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Delhi: जेएनयू पुस्तकालय में छात्रों ने तोड़ा ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’, परिसर में तनाव; प्रशासन ने मांगी रिपोर्ट

डॉ. बी.आर. आंबेडकर केंद्रीय पुस्तकालय में उस समय भारी हंगामा मच गया जब छात्रों के एक समूह, जो जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) के नेतृत्व में एकजुट हुआ था, ने पुस्तकालय के प्रवेश द्वार पर लगाए गए ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS)’ को उखाड़कर फेंक दिया।

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक बार फिर छात्र विरोध की लपटों में है। शुक्रवार को प्रतिष्ठित डॉ. बी.आर. आंबेडकर केंद्रीय पुस्तकालय में उस समय भारी हंगामा मच गया जब छात्रों के एक समूह, जो जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) के नेतृत्व में एकजुट हुआ था, ने पुस्तकालय के प्रवेश द्वार पर लगाए गए ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS)’ को उखाड़कर फेंक दिया।

इस घटना ने न केवल परिसर में तनाव बढ़ाया, बल्कि विश्वविद्यालय के प्रशासन और छात्र समुदाय के बीच पहले से चली आ रही अविश्वास की खाई को और गहरा कर दिया है। घटना के बाद से पूरे परिसर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है और प्रशासन ने एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।


क्या है मामला?

पुस्तकालय के मुख्य प्रवेश द्वार पर लगाए गए फेस रिकॉग्निशन सिस्टम को प्रशासन ने पिछले हफ्ते ही सक्रिय किया था। इसका उद्देश्य—आधिकारिक बयान के अनुसार—पुस्तकालय में आने वाले छात्रों की पहचान सुनिश्चित करना और सुरक्षा को बेहतर बनाना था।

लेकिन छात्रों का कहना है कि यह कदम न तो उनसे सलाह लेकर उठाया गया और न ही इसकी आवश्यकता को लेकर कोई स्पष्टता दी गई। इसके बाद शुक्रवार को बड़ी संख्या में छात्र पुस्तकालय के बाहर इकट्ठा हुए और कथित तौर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान इस मशीन को उखाड़कर नीचे फेंक दिया।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सिस्टम को हटाए जाने के दौरान कुछ देर के लिए अफरा-तफरी मची रही, लेकिन किसी तरह की हिंसा या चोट की खबर नहीं है। पुलिस को मौके पर नहीं बुलाया गया, लेकिन विश्वविद्यालय की सुरक्षा टीम मौजूद रही।


निजता पर खतरा: छात्रों का तर्क

इस विरोध के केंद्र में है निजता (Privacy) को लेकर बढ़ती चिंताएँ। छात्रों का कहना है कि फेस रिकॉग्निशन जैसे तकनीकी साधन बिना सहमति लगाए जाना उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और डेटा सुरक्षा का उल्लंघन है।

छात्रों की मुख्य आपत्तियाँ:

  • डेटा कहां और कैसे संग्रहीत किया जाएगा – स्पष्ट नहीं।
    FRS द्वारा लिए गए चेहरे के डेटा का क्या होगा, कितने समय तक सुरक्षित रखा जाएगा और किसके पास इसकी पहुंच होगी—इसको लेकर प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं।
  • निगरानी संस्कृति का आरोप।
    छात्रों का आरोप है कि यह सिस्टम परिसर में “निगरानी संस्कृति” (Surveillance Culture) को बढ़ावा देता है, जो विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता और असहमति की भावना को खत्म कर सकता है।
  • संवेदनशील डेटा का दुरुपयोग होने का डर।
    छात्रों का कहना है कि बायोमेट्रिक डेटा का दुरुपयोग देशभर में कई उदाहरणों में देखा गया है, इसलिए बिना पारदर्शिता के इसे लागू करना उचित नहीं।

छात्र संगठनों का रुख

जेएनयू छात्र संघ ने इसे “लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ फैसला” बताया। जेएनयूएसयू अध्यक्ष ने मीडिया से कहा—

“हम किताब पढ़ने आए हैं, अपनी पहचान देने या अपनी हर हरकत रिकॉर्ड करवाने नहीं। यह एक तरह की निगरानी है जिसे हम स्वीकार नहीं कर सकते।”

वहीं, लेफ्ट-समर्थित छात्र संगठनों ने इसे “डेटा मॉनिटरिंग का खतरनाक प्रयोग” करार दिया और कहा कि यह शिक्षा संस्थानों को जेल जैसी निगरानी व्यवस्था की ओर ले जाएगा।

दूसरी ओर, कुछ छात्र ऐसे भी मिले जिन्होंने बताया कि उन्हें फेस रिकॉग्निशन से कोई समस्या नहीं, लेकिन उनका विरोध इस बात से है कि प्रशासन ने बिना चर्चा और सहमति के यह फैसला थोप दिया।


जेएनयू प्रशासन की चुप्पी बनी सवाल

घटना के कई घंटों बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था।
यह चुप्पी छात्रों और फैकल्टी के बीच और अधिक कयासों को जन्म दे रही है।

हालांकि, सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन ने सुरक्षा विभाग और पुस्तकालय प्रबंधन से इस पूरी घटना की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
यह रिपोर्ट आने के बाद ही अगली कार्रवाई तय की जाएगी।


क्या था फेस रिकॉग्निशन सिस्टम का उद्देश्य?

पुस्तकालय में रोजाना हजारों छात्र आते हैं। पिछले कुछ महीनों से शिकायतें थीं कि कई बाहरी लोग भी पुस्तकालय का उपयोग कर रहे हैं, जिसकी वजह से सुरक्षा और संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा था।

प्रशासन ने दावा किया था कि:

  • पुस्तकालय में केवल पंजीकृत छात्रों का प्रवेश सुनिश्चित करना,
  • किताबों की चोरी और अवैध प्रवेश रोकना,
  • और परिसर में सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना—इन सबके लिए FRS लगाया गया था।

लेकिन छात्रों का आरोप है कि विश्वविद्यालय ने कोई वैकल्पिक उपाय या सार्वजनिक चर्चा नहीं की।


विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

डेटा संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि फेस रिकॉग्निशन तकनीक संवेदनशील है और इसका उपयोग अत्यंत सावधानी से होना चाहिए।

साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक:

  • FRS पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल और डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के कई प्रावधानों के दायरे में आता है।
  • किसी भी शैक्षिक संस्थान को छात्रों का बायोमेट्रिक डेटा लेने से पहले स्पष्ट सहमति लेनी चाहिए।
  • इस डेटा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी संस्थान की होती है।

जेएनयू का इतिहास और विरोध की परंपरा

जेएनयू हमेशा से राजनीतिक सक्रियता और छात्र आंदोलनों के लिए जाना जाता रहा है। कैंपस में फेस रिकॉग्निशन सिस्टम लगाने का निर्णय छात्रों के एक हिस्से को इसीलिए भी अस्वीकार्य लगा क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा।

कई छात्र नेताओं ने कहा कि यह तकनीक “क्लास में कौन आया, कौन प्रदर्शन में शामिल हुआ और कौन किस वक्त कहां गया”—ये सब ट्रैक करने का माध्यम बन सकती है, जिससे परिसर के लोकतांत्रिक माहौल को चोट पहुंचेगी।


आगे क्या?

प्रशासन की रिपोर्ट आने के बाद संभावना है कि:

  • इस घटना में शामिल छात्रों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
  • FRS को अस्थायी रूप से हटाया जा सकता है या पुनर्स्थापना पर चर्चा हो सकती है।
  • एक संयुक्त समिति बनाकर यह तय किया जा सकता है कि किस प्रकार छात्रों की सहमति लेकर तकनीक का उपयोग किया जाए।

फिलहाल जेएनयू परिसर में माहौल तनावपूर्ण है और छात्र-प्रशासन के बीच टकराव बढ़ गया है।

जेएनयू के केंद्रीय पुस्तकालय में फेस रिकॉग्निशन सिस्टम को छात्रों द्वारा उखाड़कर फेंकना सिर्फ एक तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि निजता, पारदर्शिता और लोकतांत्रिक संवाद से जुड़ा बड़ा सवाल है। एक ओर सुरक्षा को मजबूत करने की दलील है, तो दूसरी ओर छात्रों की अपनी निजी स्वतंत्रता और डेटा सुरक्षा का अधिकार।

अब सबकी नजरें जेएनयू प्रशासन की रिपोर्ट और आगे लिए जाने वाले फैसलों पर टिकी हैं, क्योंकि यह मुद्दा न सिर्फ जेएनयू बल्कि देशभर के शैक्षणिक संस्थानों में तकनीकी निगरानी के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।

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