

📍 नैनीताल : उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई बुधवार को भी जारी रही। आरक्षण रोस्टर निर्धारण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश जी.एस. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि कोर्ट की मंशा चुनाव टालने की नहीं, लेकिन नियमों और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
🔹 सरकार ने पेश किया आरक्षण रोस्टर
सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर और मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने अदालत के समक्ष 9 जून को जारी रूल्स और उसके आधार पर बना आरक्षण रोस्टर पेश किया।
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यह बताया गया कि यह रूल्स 14 जून को गजट में अधिसूचित किया जा चुका है।
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साथ ही, पिछड़ा वर्ग समर्पित आयोग की रिपोर्ट के बाद पूर्व आरक्षण रोस्टर को शून्य घोषित करना आवश्यक था।
🔸 याचिकाकर्ताओं ने मांगा समय
जब अदालत में सरकार द्वारा नया आरक्षण रोस्टर प्रस्तुत किया गया, तो याचिकाकर्ताओं ने उसका अध्ययन करने के लिए समय मांगा। इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 27 जून 2025 (शुक्रवार) तय की है।
📌 अधिवक्ता योगेश पचौलिया ने उठाया बड़ा सवाल
याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से अधिवक्ता योगेश पचौलिया ने कोर्ट को अवगत कराया कि सरकार ने जिस एकल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव टाले, उस रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया।
उन्होंने इसे जनहित में सार्वजनिक करना आवश्यक बताया।
तिथि | घटना |
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21 जून | राज्य निर्वाचन आयोग ने 12 जिलों में पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी की (हरिद्वार को छोड़कर) |
25-28 जून | नामांकन प्रक्रिया प्रस्तावित थी |
10 और 15 जुलाई | मतदान की तिथि |
19 जुलाई | मतगणना प्रस्तावित थी |
24 जून | हाईकोर्ट के निर्देश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने पूरी चुनाव प्रक्रिया अग्रिम आदेशों तक स्थगित की |
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चुनाव टालना उद्देश्य नहीं, पर नियमों की अनदेखी नहीं हो सकती।
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संविधान के अनुच्छेद 243T और 243D के अनुसार, पंचायत चुनावों में आरक्षण रोस्टर आवश्यक और संवैधानिक बाध्यता है।
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चुनाव तब ही होंगे, जब पूरी प्रक्रिया विधिसम्मत और पारदर्शी होगी।
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर अब 27 जून की सुनवाई बेहद अहम हो गई है। यदि कोर्ट सरकार की कार्यवाही से संतुष्ट होता है, तो चुनावी प्रक्रिया को फिर से शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है। अन्यथा, स्थगन और लंबा खिंच सकता है, जिससे स्थानीय शासन प्रभावित होगा।