देशफीचर्ड

जम्मू-कश्मीर: उमर अब्दुल्ला और अन्य वरिष्ठ नेताओं को नजरबंद किए जाने का आरोप, कश्मीर शहीद दिवस पर राजनीतिक हलचल

खबर को सुने

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला ने शनिवार शाम को आरोप लगाया कि उन्हें दिल्ली से श्रीनगर लौटने के बाद उनके गुपकार रोड स्थित आवास में नजरबंद कर दिया गया। यह कथित नजरबंदी ऐसे समय में हुई है जब राज्य में 13 जुलाई को कश्मीर शहीद दिवस मनाया जा रहा था — एक ऐसा दिन जो ऐतिहासिक रूप से घाटी में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में शहीद हुए लोगों की स्मृति में मनाया जाता है।

“चुनी हुई सरकारें बंद, अनिर्वाचित लोग शासन में”: उमर अब्दुल्ला

उमर अब्दुल्ला ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर अपने घर के बाहर खड़ी पुलिस की टुकड़ी और बख्तरबंद गाड़ियों की तस्वीरें पोस्ट करते हुए लिखा:

“दिवंगत अरुण जेटली के शब्दों में कहें तो – जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र अब अनिर्वाचित लोगों का अत्याचार है। चुनी हुई सरकार को घर में बंद कर दिया गया है, यह कितना बड़ा विरोधाभास है।”

उन्होंने आगे लिखा कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र सिर्फ नाम का रह गया है, जहां प्रशासनिक निर्णय निर्वाचित प्रतिनिधियों के बजाय दिल्ली द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे हैं।

श्रीनगर में व्यापक नजरबंदियां और प्रतिबंध

इससे पहले रविवार सुबह खबरें आईं कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, नेकां और पीडीपी के कई नेताओं, यहां तक कि वर्तमान और पूर्व मंत्रियों को भी नजरबंद कर दिया है या उनके घरों के आसपास कड़ी सुरक्षा तैनात कर दी गई है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, श्रीनगर के कई हिस्सों में धारा 144 लगाई गई और शहीद दिवस के अवसर पर किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा पर रोक लगा दी गई।

‘कश्मीर का जलियांवाला बाग’: 13 जुलाई 1931 की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

13 जुलाई 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर डोगरा महाराजा के शासन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे 22 कश्मीरियों को गोली मार दी गई थी। इस घटना को कश्मीर में स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती बिंदु के रूप में देखा जाता है।
उमर अब्दुल्ला ने इस घटना को याद करते हुए लिखा:

“13 जुलाई का नरसंहार कश्मीर का जलियांवाला बाग है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले इन नायकों को आज सिर्फ इसलिए खलनायक बताया जा रहा है क्योंकि वे मुसलमान थे। यह बेहद शर्मनाक और इतिहास से खिलवाड़ है।”

महबूबा मुफ्ती का तीखा प्रहार: “दिलों की दूरी ऐसे नहीं मिटेगी”

पीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा:

“जिस दिन भारत सरकार हमारे नायकों को अपना मानेगी, जैसे कश्मीरियों ने महात्मा गांधी, भगत सिंह जैसे भारतीय नायकों को अपनाया है — उस दिन, जैसा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘दिलों की दूरी’ सच में खत्म हो जाएगी।”

राजनीतिक विश्लेषण: लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर सवाल

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में चुने हुए नेताओं को नजरबंद करना एक निरंतर चलती रणनीति बनती जा रही है, जो लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है। विशेष रूप से 5 अगस्त 2019 के बाद, जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, तब से कई बार ऐसे आरोप लगे हैं कि घाटी में लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है

प्रशासन की चुप्पी

अब तक उपराज्यपाल प्रशासन या गृह मंत्रालय की ओर से नजरबंदी पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन सुरक्षा सूत्रों का कहना है कि यह कदम “कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए” उठाया गया है, खासतौर पर “संवेदनशील अवसरों” पर।


एक बार फिर लोकतंत्र बनाम सुरक्षा का सवाल

कश्मीर में नजरबंदी और सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक अब एक सामान्य प्रशासनिक पैटर्न बनते जा रहे हैं। यह सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता पर सवाल नहीं उठाते, बल्कि केंद्र-राज्य रिश्तों, सांप्रदायिक पहचान, और ऐतिहासिक स्मृतियों को लेकर भी नए सिरे से बहस को जन्म देते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button