
नैनीताल : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPCL) के प्रबंध निदेशक के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर उन्हें बड़ी राहत दी है। यह याचिका टेंडर आवंटन में भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपों को लेकर दायर की गई थी।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने 6 जून 2025 को सुनाए गए अपने फैसले में कहा कि इस मामले में तथ्यों और साक्ष्यों की समीक्षा आवश्यक है, जो कि केवल सक्षम ट्रायल कोर्ट द्वारा ही की जा सकती है। इस आधार पर बॉबी पंवार द्वारा दायर जनहित याचिका को अस्वीकार कर दिया गया।
याचिका में क्या थे आरोप?
बॉबी पंवार ने आरोप लगाया था कि UPCL के प्रबंध निदेशक ने टेंडर आवंटन में अनियमितता और भ्रष्टाचार किया है, साथ ही उन्होंने अपनी आय से अधिक संपत्ति भी अर्जित की है। उन्होंने वर्ष 2018 की पॉवर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन की एक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए मामले की विस्तृत जांच की मांग की थी।
सरकार और महाधिवक्ता का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने 8 जुलाई 2024 को इस मामले में जांच बंद करने का निर्णय ले लिया था। महाधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ता बॉबी पंवार स्वयं कई आपराधिक मामलों में आरोपी हैं और विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं।
महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले (झारखंड राज्य बनाम शिव शंकर शर्मा, 2022 SSC 1541) का हवाला देते हुए कहा कि इस प्रकार की याचिकाएं कई बार जनहित की आड़ में निजी स्वार्थ से प्रेरित होती हैं।
हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि
“इस प्रकरण में तथ्यों और साक्ष्यों की समीक्षा आवश्यक है, जो केवल सक्षम न्यायालय द्वारा ही संभव है।”
इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह छूट दी कि वे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत सक्षम न्यायालय में शिकायत दर्ज करा सकते हैं, लेकिन जनहित याचिका के माध्यम से इस तरह की जांच की मांग न्यायसंगत नहीं है।
इस फैसले के साथ ही UPCL के प्रबंध निदेशक को तत्कालिक राहत मिल गई है, वहीं बॉबी पंवार को अब यदि वे चाहें तो मामला आगे बढ़ाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया के तहत ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा।