
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार बिगड़ते वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) और प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम कदम उठाया है। शीर्ष अदालत ने बार के सदस्यों, वकीलों और आम नागरिकों से अपील की है कि जहां संभव हो, वे अदालत में सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई के लिए हाइब्रिड मोड का उपयोग करें। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा जारी इस सर्कुलर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी को प्राथमिकता देने की सलाह दी गई है।
यह एडवाइजरी मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत के निर्देश पर जारी की गई है, जिसमें राजधानी में प्रदूषण के गंभीर हालात को ध्यान में रखते हुए लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।
सुप्रीम कोर्ट की एडवाइजरी: स्वास्थ्य सर्वोपरि
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से जारी सर्कुलर में स्पष्ट किया गया है कि खराब मौसम और बढ़ते प्रदूषण के कारण अदालत परिसर में आने-जाने से बचना बेहतर होगा। ऐसे मामलों में जहां तकनीकी रूप से संभव हो, वहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या हाइब्रिड सुनवाई को अपनाया जाए।
इस सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन, नोटिस बोर्ड और अन्य संबंधित संस्थाओं को व्यापक रूप से प्रसारित करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि अधिक से अधिक लोग इस सलाह से अवगत हो सकें।
दिल्ली के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की गहरी चिंता
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर चिंता जताई हो। इसी महीने की शुरुआत में, सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने राजधानी की जहरीली हवा को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि अदालत इस गंभीर संकट पर “मूकदर्शक” नहीं बनी रह सकती।
बेंच ने कहा था कि जब देश की राजधानी के करोड़ों नागरिक प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, तब यह केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा प्रश्न बन जाता है। अदालत ने साफ संकेत दिया कि यदि आवश्यक हुआ तो कठोर निर्देश जारी करने से भी वह पीछे नहीं हटेगी।
PIL की सुनवाई में केंद्र और CAQM को निर्देश
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण नियंत्रण को लेकर दायर एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) को निर्देश दिया कि वह राजधानी में बार-बार उत्पन्न हो रहे वायु संकट पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करे।
इस बेंच में जस्टिस जॉयमाल्या बागची भी शामिल थे। अदालत ने यह जानना चाहा कि आखिर हर साल सर्दियों के मौसम में हालात इतने भयावह क्यों हो जाते हैं और अब तक किए गए उपाय क्यों नाकाफी साबित हो रहे हैं।
सिर्फ पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराने पर आपत्ति
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली के प्रदूषण की समस्या को केवल पराली जलाने तक सीमित करना वास्तविकता को बहुत सरल बनाना होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि वायु प्रदूषण के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें—
- निर्माण कार्य (कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी)
- वाहनों से निकलने वाला धुआं
- औद्योगिक उत्सर्जन
- सड़क की धूल
- मौसमीय परिस्थितियां
शामिल हैं।
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि केवल किसानों पर दोष मढ़ना न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि वे समाज का वह वर्ग हैं जिनका न्यायिक प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम होता है।
“किसानों पर बोझ डालना सही नहीं” — सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने अपने अवलोकन में कहा,
“हम पराली जलाने पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि उन लोगों पर बोझ डालना गलत होगा जिनकी आवाज़ कोर्ट तक बहुत कम पहुंच पाती है।”
इस टिप्पणी को संतुलित और संवेदनशील दृष्टिकोण के रूप में देखा जा रहा है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सामाजिक न्याय को भी बराबर महत्व दिया।
शॉर्ट-टर्म समाधानों पर सवाल, लॉन्ग-टर्म रणनीति की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संबंधित एजेंसियों से साफ शब्दों में कहा कि हर साल सर्दियों में लागू किए जाने वाले अस्थायी और अल्पकालिक उपाय अब पर्याप्त नहीं हैं। अदालत ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लॉन्ग-टर्म स्ट्रैटेजी तैयार करने पर जोर दिया।
सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र से कहा,
“आप सुझाव दे सकते हैं, लेकिन वे दो दिन, एक हफ्ते या तीन हफ्ते के लिए नहीं हो सकते। हमें एक स्थायी समाधान चाहिए ताकि यह समस्या हर साल धीरे-धीरे कम हो।”
हर साल दोहराया जाने वाला संकट, सिस्टम पर सवाल
दिल्ली में वायु प्रदूषण अब एक मौसमी आपदा का रूप ले चुका है। हर साल अक्टूबर से जनवरी के बीच AQI ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच जाता है, जिससे स्कूल बंद करने, निर्माण कार्य रोकने और ट्रैफिक प्रतिबंध जैसे आपात कदम उठाने पड़ते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ताजा एडवाइजरी और टिप्पणियां इस बात का संकेत हैं कि अब अदालत भी चाहती है कि नीतिगत और संरचनात्मक सुधार किए जाएं, ताकि आने वाले वर्षों में राजधानी को इस संकट से राहत मिल सके।
निष्कर्ष
दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता यह दर्शाती है कि यह मुद्दा अब केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, मानवाधिकार और शासन की जवाबदेही से जुड़ा हुआ है। हाइब्रिड सुनवाई की सलाह जहां तत्काल राहत का उपाय है, वहीं लॉन्ग-टर्म रणनीति की मांग भविष्य के लिए एक मजबूत रोडमैप की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार और संबंधित एजेंसियां सुप्रीम कोर्ट की इस चेतावनी को कितनी गंभीरता से लेती हैं और क्या राजधानी के लोगों को आने वाले वर्षों में साफ हवा नसीब हो पाएगी।



