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Uttarakhand: “Ease of Doing Business” में अव्वल, लेकिन बेरोजगारी में सबसे ऊपर: उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर PLFS रिपोर्ट का झटका

केंद्र की पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे रिपोर्ट ने उठाए निवेश और रोजगार सृजन के दावों पर सवाल

देहरादून/नई दिल्ली, 13 नवंबर। एक ओर उत्तराखंड Ease of Doing Business में देश के अग्रणी राज्यों में गिना जा रहा है, वहीं केंद्र सरकार की पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की ताज़ा रिपोर्ट ने उसकी आर्थिक स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में उत्तराखंड की बेरोजगारी दर 8.9 प्रतिशत दर्ज की गई है — जो पूरे देश में सबसे अधिक है। यह आंकड़ा आंध्र प्रदेश (8.2%) और केरल (8%) जैसे राज्यों से भी ऊपर है।

राष्ट्रीय स्तर पर यह दर 5.2 प्रतिशत रही है, जो पिछली तिमाही के 5.4 प्रतिशत की तुलना में मामूली सुधार दर्शाती है।


PLFS रिपोर्ट के आंकड़े: ग्रामीण इलाकों में मामूली सुधार, शहरी बेरोजगारी बढ़ी

मंत्रालय ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन (MOSPI) द्वारा जारी इस तिमाही बुलेटिन में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के 1.33 लाख घरों और 5.64 लाख व्यक्तियों पर अध्ययन किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 4.4 प्रतिशत से बढ़कर 4.8 प्रतिशत, जबकि शहरी क्षेत्रों में 6.8 प्रतिशत से बढ़कर 6.9 प्रतिशत पर पहुंची है।

राष्ट्रीय औसत भले स्थिर हो, लेकिन उत्तराखंड जैसे उद्योग और पर्यटन केंद्रित राज्य में बेरोजगारी दर का ऊंचा स्तर नीति निर्धारकों के लिए चिंता का विषय है।


निवेश बनाम रोजगार: ग्राउंड रियलिटी पर उठे सवाल

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार लगातार दावा करती रही है कि राज्य में औद्योगिक निवेश तेज़ी से बढ़ रहा है।
दिसंबर 2023 में आयोजित उत्तराखंड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 3.56 लाख करोड़ रुपये के निवेश समझौते (MoU) साइन हुए थे।
हाल ही में मुख्यमंत्री ने कहा था कि एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश “ग्राउंडिंग” चरण में पहुंच चुका है, जिससे बड़ी संख्या में रोजगार सृजन हो रहा है।

लेकिन PLFS के आंकड़े इन दावों से अलग तस्वीर पेश करते हैं।
आर्थिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि इतना निवेश वास्तव में जमीन पर उतर चुका है, तो बेरोजगारी दर में यह उछाल “निवेश और रोजगार सृजन के बीच असंगति” को दर्शाता है।

अर्थशास्त्री डॉ. अनिल सेमवाल कहते हैं —

“एमओयू साइन होना निवेश का पहला कदम होता है, लेकिन वास्तविक रोजगार तभी बनता है जब उद्योग चलने लगें। उत्तराखंड में अधिकांश निवेश अभी योजना या प्रारंभिक क्रियान्वयन चरण में है। युवाओं को तुरंत रोजगार का लाभ नहीं मिल रहा।”


लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट में हल्की वृद्धि, पर युवाओं में गिरावट

PLFS रिपोर्ट में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) में हल्की बढ़त दर्ज की गई है।

  • पुरुष LFPR 77.2% से बढ़कर 77.3%
  • महिला LFPR 33.4% से बढ़कर 33.7%

मंत्रालय ने इसे “modest upward movement in market engagement” बताया है।
हालांकि, युवा वर्ग (15–29 वर्ष) में यह दर घटकर महिलाओं में 42% से 41.3% और पुरुषों में 61.1% से 61.4% रह गई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट बताती है कि बड़ी संख्या में शिक्षित युवा नौकरी खोजने की प्रक्रिया से बाहर हो रहे हैं, या फिर “अर्ध-रोजगार” (underemployment) की स्थिति में हैं।


राज्य में बेरोजगारी दर 8.9%: निवेश की चमक के पीछे छिपा संकट

उत्तराखंड में 8.9 प्रतिशत बेरोजगारी दर केवल एक सांख्यिकीय संकेत नहीं, बल्कि नीति और अमल के बीच की खाई को उजागर करता है।
राज्य सरकार की ‘रोजगार सृजन नीति 2024’ के तहत दावा किया गया था कि औद्योगिक क्लस्टर, पर्यटन, कृषि-आधारित उद्योग और आईटी सेक्टर में 5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे।
लेकिन PLFS के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्व-रोजगार और पारिवारिक कार्यबल की हिस्सेदारी बढ़कर 37 प्रतिशत हुई है — यह इंगित करता है कि लोग मजबूरी में कृषि या घरेलू कार्यों में लौट रहे हैं, न कि अवसरों की प्रचुरता से।

रिपोर्ट में बताया गया है कि

  • कृषि क्षेत्र में भागीदारी 53.5% से बढ़कर 57.7%,
  • जबकि सेकेंडरी सेक्टर (निर्माण, उद्योग) 24.2%,
  • और टर्शियरी सेक्टर (सेवा क्षेत्र) 33.5% पर स्थिर रहा।

रिपोर्ट का निष्कर्ष साफ है:

“खेती-किसानी में वृद्धि के पीछे उत्पादन विस्तार नहीं, बल्कि रोजगार विकल्पों की कमी प्रमुख कारण है।”


विपक्ष ने सरकार को घेरा: “कागज़ी निवेश, जमीनी हकीकत बेरोजगारी”

कांग्रेस नेता महेश जोशी ने कहा —

“सरकार निवेश के आंकड़े दिखाकर भ्रम पैदा कर रही है। PLFS रिपोर्ट ने सच्चाई उजागर कर दी है — रोजगार सृजन के नाम पर घोषणाएं हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर अवसर घटे हैं।”

उन्होंने मांग की कि राज्य सरकार सभी एमओयू की स्थिति सार्वजनिक करे और बताए कि अब तक कितने प्रोजेक्ट्स से वास्तविक रोजगार उत्पन्न हुआ।

वहीं, प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने इस रिपोर्ट को “लघुकालिक प्रभाव” बताते हुए कहा —

“उत्तराखंड में चल रही औद्योगिक परियोजनाएं अगले दो वर्षों में रोजगार सृजन के ठोस परिणाम देंगी। PLFS रिपोर्ट एक तिमाही की स्थिति बताती है, जबकि निवेश योजनाएं दीर्घकालिक हैं।”


Ease of Doing Business बनाम Ease of Employment

उत्तराखंड हाल के महीनों में Ease of Doing Business Index में उच्च स्थान पर रहा है।
सरकार ने सिंगल-विंडो सिस्टम, भूमि बैंक, और निवेश प्रोत्साहन सेल जैसी पहलें लागू की हैं।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि Ease of Doing Business की सफलता तभी सार्थक है, जब उसका सीधा असर Ease of Employment पर दिखे।

अर्थशास्त्री डॉ. सीमा बहुगुणा कहती हैं —

“निवेश के बाद रोजगार के अवसर पैदा होने में समय लगता है। लेकिन यह अंतराल अगर लंबा होता है, तो युवाओं में भरोसा घटता है और पलायन की प्रवृत्ति बढ़ती है। उत्तराखंड में यही चिंता का विषय है।”


भविष्य की राह: स्किल, स्टार्टअप और स्थानीय उद्योग पर फोकस ज़रूरी

PLFS के निष्कर्षों ने यह संकेत दिया है कि उत्तराखंड को रोजगार नीति में स्ट्रक्चरल बदलाव की आवश्यकता है।
विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि राज्य को

  • स्थानीय संसाधनों पर आधारित लघु उद्योगों,
  • स्टार्टअप इनक्यूबेशन,
  • स्किल ट्रेनिंग सेंटर,
  • और पर्यटन-आधारित उद्यमिता पर फोकस बढ़ाना चाहिए।

राज्य सरकार के अनुसार, 2025 तक हर ज़िले में “मुख्यमंत्री युवा रोजगार केंद्र” और “डिजिटल स्किल हब” स्थापित करने की योजना है।

लेकिन PLFS रिपोर्ट यह चेतावनी भी देती है कि जब तक रोजगार सृजन की गति निवेश के अनुपात में नहीं बढ़ेगी, तब तक युवा वर्ग की निराशा राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बनी रहेगी।


विकास और रोजगार के बीच की असमानता

Ease of Doing Business में अग्रणी स्थान पाने के बावजूद, उत्तराखंड की बढ़ती बेरोजगारी यह दर्शाती है कि राज्य के आर्थिक मॉडल में “निवेश बनाम रोजगार” की खाई बढ़ रही है। PLFS के आंकड़े न केवल सरकार के लिए चेतावनी हैं, बल्कि नीति निर्माण के लिए दिशा-सूचक भी।

अर्थशास्त्रियों की राय में, अगर राज्य सरकार आने वाले महीनों में स्किल, स्टार्टअप और सेक्टरल विविधीकरण पर आक्रामक नीति अपनाती है, तो यह झटका एक अवसर में बदला जा सकता है। वरना, Ease of Doing Business की उपलब्धि सिर्फ रैंकिंग तक सीमित रह जाएगी — जबकि जमीन पर युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटकते रहेंगे।

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