
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वकीलों के आचरण और पेशे की गरिमा को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक वकील की अपील खारिज कर दी, जिसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने सात वर्षों के लिए कानूनी प्रैक्टिस से निलंबित कर दिया था।
यह मामला एक वकील द्वारा मदुरै स्थित शिकायतकर्ता के होटल में जबरन घुसकर अपनी कार चलाने और वकील की अनुशासनहीनता से जुड़ा था। इससे पहले BCI ने वकील को एक साल के लिए निलंबित किया था, लेकिन शिकायतकर्ता के पुनर्विचार के बाद इस सजा को बढ़ाकर सात वर्ष कर दिया गया।
न्यायालय की सख्त टिप्पणी
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान वकील के आचरण को अत्यंत गंभीर और पेशे की गरिमा के विपरीत बताया।
जस्टिस नाथ ने स्पष्ट शब्दों में कहा:
“अपना आचरण देखें। एक वकील के रूप में आपने शिकायतकर्ता के होटल में अपनी कार घुसाई। वकीलों को अनुशासित होने की जरूरत है और पूरे पेशे की छवि खराब नहीं करनी चाहिए।”
वकील की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव अग्रवाल ने तर्क दिया कि एक बार जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले की अपील को मेरिट के आधार पर खारिज कर दिया था, तो BCI को पुनर्विचार का अधिकार नहीं था। उनका कहना था कि पहले के आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि BCI के फैसले में कोई हस्तक्षेप का कारण नहीं है।
हालांकि, खंडपीठ इस तर्क से असहमत रही और पाया कि:
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वकील ने प्रारंभिक एक साल के निलंबन आदेश के दौरान भी वकालतनामा दायर किया, जो अपने आप में एक स्पष्ट उल्लंघन है।
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यह दोहरे अनुशासन उल्लंघन का मामला बन गया—पहला, अनुचित आचरण और दूसरा, निलंबन आदेश का उल्लंघन।
न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे मामलों में बार काउंसिल द्वारा की गई सख्त कार्रवाई वाजिब है और पेशे की गरिमा बनाए रखने के लिए आवश्यक भी।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि कानून का पेशा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि आचरण की गरिमा पर भी आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि एक वकील न केवल कानून का पालनकर्ता होता है, बल्कि समाज में नैतिक आदर्श प्रस्तुत करने वाला भी होता है।
रिपोर्ट – शेलेन्द्र शेखर कग्रेती