
नई दिल्ली, 28 जुलाई – सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान एक बेहद अहम सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता पक्ष से पूछा है:
“देशभर में अब तक कितने मंदिरों का विधायी माध्यमों से अधिग्रहण किया गया है? कृपया आंकड़े उपलब्ध कराएं।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना समग्र तथ्यों और आंकड़ों के इस संवेदनशील मामले पर निर्णय देना कठिन होगा। साथ ही पीठ ने संकेत दिए कि मामला या तो वे स्वयं सुनेंगे या इसे दूसरी संविधान पीठ के समक्ष भेजा जा सकता है।
मंदिर न्यास अध्यादेश 2025 को दी गई चुनौती
याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के माध्यम से दायर की गई है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाल में पारित ‘उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
इस अध्यादेश के तहत मथुरा के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर का प्रशासन अब राज्य सरकार द्वारा गठित एक न्यास को सौंपा जाना है।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि:
- यह मंदिर एक निजी स्वामित्व वाला धार्मिक स्थल है, न कि सार्वजनिक मंदिर।
- मंदिर ट्रस्ट के पास करीब ₹400 करोड़ की संपत्ति है, जिसे न्यास के अधीन करने का प्रयास किया जा रहा है।
- सरकार ने ट्रस्ट को पक्षकार बनाए बिना यह अध्यादेश पारित किया और बिना किसी वित्तीय गड़बड़ी के आरोप के ट्रस्ट की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई।
“वहां जाइए, खुद देखिए”: कोर्ट की तीखी टिप्पणी
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता से कहा:
“वहां जाइए और देखें कि भीड़ और अव्यवस्था किस स्तर पर है। जब आप हालात देखेंगे, तो आप खुद समझ जाएंगे कि यह मामला केवल अधिकारों तक सीमित नहीं है, यह सार्वजनिक व्यवस्था और प्रबंधन का भी प्रश्न है।”
कॉरिडोर निर्माण के नाम पर नियंत्रण का आरोप
ट्रस्ट का आरोप है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कॉरिडोर निर्माण और दान प्रबंधन के नाम पर मंदिर के कार्यों में सीधा हस्तक्षेप किया है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, यह अध्यादेश केवल सार्वजनिक मंदिरों पर लागू हो सकता है, न कि ऐसे निजी मंदिरों पर, जो सदियों से परिवारों या विशेष पंथों द्वारा संचालित किए जाते रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा डाटा, अगली सुनवाई अगले सप्ताह
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि:
“जब तक पूरे देश में ऐसे उदाहरणों की जानकारी सामने नहीं आएगी, तब तक हम यह तय नहीं कर सकते कि बांके बिहारी मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लेने का अध्यादेश उचित है या नहीं।”
अब याचिकाकर्ता को देशभर में विधायी अधिग्रहण के उदाहरणों की सूची देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध की है।
विश्लेषण: क्या यह प्रकरण धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राज्य नियंत्रण का मामला है?
बांके बिहारी मंदिर केस अब केवल एक मंदिर प्रबंधन विवाद नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि क्या राज्य सरकारें किसी भी धार्मिक संस्थान को कानून बनाकर अपने नियंत्रण में ले सकती हैं, और यदि हां, तो किन परिस्थितियों में? यह केस भविष्य में अन्य प्रसिद्ध मंदिरों के प्रशासनिक मॉडल के लिए मिसाल बन सकता है।