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देशफीचर्ड

घर का खाना नहीं दिया, सुप्रीम कोर्ट ने पिता से छीनी बेटी की कस्टडी

जब बच्चों की देखभाल सिर्फ कानूनी नहीं, भावनात्मक और पोषण का भी सवाल बन जाती है

📍 नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बच्चों की कस्टडी से जुड़े एक मामले में ऐसा फैसला सुनाया, जो अभिभावकों के लिए एक अहम सबक बन सकता है। अदालत ने यह निर्णय देते हुए साफ किया कि बच्चों को सिर्फ देखरेख की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि सही पोषण, भावनात्मक सहारा और पारिवारिक संगति भी उतनी ही ज़रूरी होती है।

मामला केरल से सामने आया, जहां एक पिता को अपनी आठ साल की बेटी की अंतरिम कस्टडी 15 दिनों के लिए मिली थी। लेकिन इस दौरान वह उसे एक बार भी घर का बना खाना नहीं दे सका। उसने लगातार होटल या रेस्तरां का खाना खिलाया। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ — जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता — ने बच्ची से संवाद के बाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पिता को महीने में 15 दिन की कस्टडी दी गई थी।

जस्टिस संदीप मेहता ने स्पष्ट लिखा कि “रेस्तरां या होटल का भोजन लगातार लेना एक वयस्क के लिए भी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है, और बच्ची की तो उम्र ही मात्र आठ साल है। उसे संपूर्ण विकास के लिए पौष्टिक घर का खाना चाहिए।” कोर्ट ने यह भी पाया कि पिता के घर पर बच्ची को कोई अतिरिक्त संगति या सहयोग नहीं मिल रहा था, जबकि मां के साथ न सिर्फ उसका छोटा भाई है, बल्कि नाना-नानी भी मौजूद हैं।

कोर्ट ने तीन साल के छोटे बेटे के बारे में भी हाईकोर्ट के आदेश पर नाराजगी जताई, जिसमें उसे 15 दिन मां से अलग रखने को कहा गया था। अदालत ने इसे “पूरी तरह अनुचित” बताते हुए कहा कि इतनी कम उम्र में मां से अलगाव बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास को नुकसान पहुंचा सकता है।

यह मामला कस्टडी की कानूनी प्रक्रिया से कहीं आगे जाकर बच्चों की वास्तविक परवरिश की ज़रूरतों की ओर ध्यान दिलाता है। अदालत ने अपने फैसले में यह भी माना कि मां वर्क फ्रॉम होम करती हैं और उनके पास बच्चे को अधिक समर्पित समय देने की क्षमता है। वहीं पिता के पास बच्ची को भावनात्मक या पोषण के स्तर पर पूरा समर्थन देने की परिस्थितियां नहीं थीं।

सुप्रीम कोर्ट ने पिता को हर महीने वैकल्पिक शनिवार और रविवार को बेटी से मिलने और हर सप्ताह दो दिन वीडियो कॉल पर बात करने की अनुमति दी है, ताकि पिता-पुत्री का संबंध बना रहे।

यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक अहम सामाजिक चेतावनी है — कि बच्चों की कस्टडी का फैसला सिर्फ अभिभावकों की इच्छा या आर्थिक स्थिति पर नहीं, बल्कि बच्चे के पोषण, सुरक्षा और भावनात्मक संतुलन पर आधारित होना चाहिए।

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