
नई दिल्ली: लद्दाख के प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता, शिक्षा सुधारक और इंजीनियर सोनम वांगचुक की रिहाई को लेकर दायर याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है। वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया था, जिसके खिलाफ उनकी पत्नी गीतांजलि आंगमो ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की है।
यह मामला अब केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं रहा, बल्कि यह लोकतांत्रिक अधिकारों, पर्यावरण आंदोलन और प्रशासनिक जवाबदेही के बीच चल रही टकराहट का प्रतीक बन गया है।
लद्दाख की आवाज़ और आंदोलन की कहानी
सोनम वांगचुक, जिन्हें आमतौर पर ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म के किरदार फुंसुख वांगडू के वास्तविक प्रेरणास्रोत के रूप में जाना जाता है, लंबे समय से लद्दाख के पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं।
उन्होंने बीते कुछ वर्षों में हिमालयी पारिस्थितिकी की रक्षा, जलवायु परिवर्तन के खतरे, और लद्दाख को संवैधानिक सुरक्षा (छठी अनुसूची) देने की मांग को लेकर कई शांतिपूर्ण आंदोलन चलाए हैं।
हाल ही में वांगचुक ने लद्दाख में बर्फ के पिघलते ग्लेशियरों, खनन गतिविधियों और अंधाधुंध पर्यटन पर चिंता जताई थी। उनका कहना था कि यदि केंद्र सरकार ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो आने वाले दशक में लद्दाख का पर्यावरणीय संतुलन स्थायी रूप से बिगड़ सकता है।
NSA के तहत गिरफ्तारी — प्रशासनिक कदम या आवाज़ दबाने की कोशिश?
लद्दाख प्रशासन ने कुछ सप्ताह पहले सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया। आधिकारिक रूप से कहा गया कि यह कार्रवाई “क्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखने और जन-शांति की रक्षा” के लिए की गई है। लेकिन उनके समर्थक इसे “पर्यावरण की आवाज़ को दबाने की कोशिश” बता रहे हैं।
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद देशभर में विरोध के स्वर उठे। दिल्ली, लेह, जम्मू, देहरादून और बेंगलुरु में छात्रों, शिक्षकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने रिहाई की मांग करते हुए प्रदर्शन किए। सोशल मीडिया पर #FreeSonamWangchuk ट्रेंड करने लगा।
पत्नी की याचिका और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उनके पति को “बिना पर्याप्त कारण बताए” हिरासत में रखा गया है, जो संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
उन्होंने दलील दी कि न तो उन्हें और न ही वांगचुक को हिरासत के आधारों की आधिकारिक प्रति दी गई, जो कि कानूनन आवश्यक है।
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, लद्दाख प्रशासन और जोधपुर सेंट्रल जेल के अधीक्षक को नोटिस जारी किया था। अदालत ने पूछा कि हिरासत के क्या कारण हैं और याचिकाकर्ता को इन कारणों की प्रतिलिपि क्यों नहीं दी गई।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति एस. डी. कुलकर्णी की पीठ ने कहा था —
“किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता सीमित करने से पहले कानून की मूल आत्मा का पालन होना चाहिए। यदि हिरासत के कारण नहीं बताए गए, तो यह गंभीर संवैधानिक उल्लंघन है।”
आज की सुनवाई में अदालत यह तय कर सकती है कि वांगचुक की हिरासत अस्थायी रूप से निलंबित की जाए या मामले की विस्तृत जांच के लिए केंद्र से जवाब मांगा जाए।
लद्दाख के लोगों की प्रतिक्रिया — “हमारी लड़ाई हिमालय की सुरक्षा के लिए”
लद्दाख में स्थानीय समुदायों के बीच वांगचुक की लोकप्रियता बेहद गहरी है।
कई लोग उन्हें “जन गुरु” कहकर संबोधित करते हैं, क्योंकि उन्होंने बर्फ के कृत्रिम स्तूप बनाकर जल संरक्षण का अनूठा मॉडल प्रस्तुत किया था।
उनके नेतृत्व में लद्दाख के युवाओं ने शिक्षा, पर्यावरण और रोजगार के क्षेत्र में कई परिवर्तनकारी पहलें शुरू कीं।
वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद लेह और कारगिल में शांति मार्च निकाले गए।
एक स्थानीय छात्र ने कहा —
“वांगचुक साहब ने हमें सिखाया कि पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है। अगर उन्हें जेल भेजा जाएगा, तो यह हमारी आवाज़ को कुचलने की कोशिश है।”
राजनीतिक और सामाजिक बहस: व्यवस्था बनाम विचार
सोनम वांगचुक का मामला अब एक बड़े राष्ट्रीय विमर्श में बदल गया है।
कई विपक्षी दलों ने कहा कि यह “लोकतांत्रिक असहमति को अपराध घोषित करने” जैसा कदम है, जबकि केंद्र सरकार का तर्क है कि प्रशासनिक शांति बनाए रखना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं बल्कि इस प्रश्न का उत्तर खोज रहा है कि —
क्या किसी शांतिपूर्ण पर्यावरण आंदोलन को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जा सकता है?
संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने वांगचुक की रिहाई के पक्ष में निर्णय दिया, तो यह नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों को मज़बूती देगा।
वहीं, अगर अदालत सरकार की कार्रवाई को सही ठहराती है, तो यह प्रशासनिक अधिकारों को और अधिक सशक्त करेगा।
आगे क्या हो सकता है?
आज की सुनवाई के बाद अदालत केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने की समय-सीमा तय कर सकती है।
संभावना है कि सुप्रीम कोर्ट अगली तारीख में हिरासत की वैधता और पर्यावरणीय आंदोलनों की अभिव्यक्ति के अधिकार पर विस्तृत बहस करे।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अदालत को लगे कि वांगचुक की गिरफ्तारी में प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है, तो उनकी तात्कालिक रिहाई के आदेश भी दिए जा सकते हैं।
लोकतंत्र और पर्यावरण — दो मोर्चों की जंग
सोनम वांगचुक का मामला एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है।
यह तय करेगा कि भारत में पर्यावरणीय असहमति को कितनी संवैधानिक जगह मिलती है।
वांगचुक, जो वर्षों से शिक्षा और जलवायु संरक्षण के लिए दुनिया भर में सम्मानित हुए हैं, अब लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के नए प्रतीक बनकर उभरे हैं।
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न सिर्फ एक व्यक्ति की स्वतंत्रता बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और पर्यावरणीय भविष्य दोनों को प्रभावित करेगा।