
नई दिल्ली: गायिका नेहा सिंह राठौर को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा। “यूपी में का बा” जैसे चर्चित गीत से सोशल मीडिया पर पहचान बनाने वाली नेहा सिंह राठौर की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के बाद किए गए एक ट्वीट पर दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में सुनवाई कर रही जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अदालत “इस समय इस मामले में दखल देने के लिए इच्छुक नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस चरण पर, जब जांच अभी जारी है और पुलिस साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया में है, अदालत को हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं दिखता।
पीठ ने स्पष्ट किया कि नेहा सिंह राठौर को जांच में सहयोग करना चाहिए और उन्हें कानूनन अन्य सभी विकल्पों का इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है, जिनमें हाईकोर्ट में राहत की मांग भी शामिल है।
न्यायालय ने कहा—
“हम इस चरण पर एफआईआर में दखल देने के इच्छुक नहीं हैं। जांच एजेंसियों को अपनी प्रक्रिया पूरी करने दीजिए।”
इस निर्णय के साथ ही नेहा सिंह राठौर को फिलहाल किसी भी तरह की अंतरिम राहत नहीं मिल सकी है।
क्या है पूरा मामला
यह मामला पहलगाम आतंकी हमले के बाद नेहा सिंह राठौर द्वारा किए गए एक सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है।
मामले की एफआईआर के अनुसार, उन्होंने हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ “आपत्तिजनक शब्दों और टिप्पणी” का इस्तेमाल किया था।
पुलिस का आरोप है कि उनके उस ट्वीट ने समाज में “भ्रम और आक्रोश फैलाने” का काम किया और यह आईटी एक्ट और भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।
एफआईआर में नेहा पर आईपीसी की धारा 153A (साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास), 505(2) (शत्रुता या असंतोष फैलाने वाला वक्तव्य) और आईटी एक्ट की धारा 67 (अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री का प्रकाशन) के तहत आरोप दर्ज किए गए हैं।
नेहा की दलील — “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है पोस्ट”
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में नेहा सिंह राठौर ने कहा कि उन्होंने किसी धर्म, समुदाय या व्यक्ति को लक्षित नहीं किया था, बल्कि एक “राजनीतिक व्यंग्य” के रूप में अपनी राय व्यक्त की थी।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके खिलाफ की गई कार्रवाई “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) के अधिकार का हनन है।”
नेहा ने दलील दी कि उनका उद्देश्य देश की सुरक्षा एजेंसियों या किसी नेता की आलोचना नहीं था, बल्कि उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए केवल सरकार से जवाबदेही मांगी थी।
राज्य सरकार का पक्ष — “सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हुई”
वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नेहा सिंह राठौर का ट्वीट उस समय किया गया जब घाटी में माहौल पहले से ही तनावपूर्ण था।
सरकार की ओर से कहा गया कि उनका पोस्ट “प्रशासनिक कार्रवाई पर अविश्वास पैदा करने” और “असंतोष भड़काने” का कारण बना, इसलिए पुलिस का हस्तक्षेप उचित था।
सरकारी वकील ने यह भी कहा कि यदि कोई नागरिक सोशल मीडिया का उपयोग संवेदनशील समय में भड़काऊ या भ्रामक सामग्री फैलाने के लिए करता है, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का कानूनी अर्थ
अदालत के “इस चरण पर दखल नहीं देने” वाले बयान का मतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने की मांग को फिलहाल अस्वीकार किया है, लेकिन आगे चलकर यदि पुलिस चार्जशीट दाखिल करती है या जांच में कोई कानूनी त्रुटि पाई जाती है, तो नेहा सिंह राठौर हाईकोर्ट या दोबारा सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती हैं।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला प्राथमिक जांच के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके तहत न्यायालय केवल उसी स्थिति में हस्तक्षेप करता है जब कोई शिकायत पहली नज़र में “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” प्रतीत होती है।
नेहा सिंह राठौर कौन हैं?
नेहा सिंह राठौर बिहार के केराकाट (जौनपुर) की रहने वाली लोकगायिका हैं।
वे 2020 में अपने राजनीतिक व्यंग्य गीत “यूपी में का बा” से देशभर में मशहूर हुईं।
उनके गीत आम तौर पर सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित होते हैं और वे सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स के साथ सक्रिय रहती हैं।
इससे पहले भी नेहा को कई बार विवादों का सामना करना पड़ा है —
- 2023 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके गीत “यूपी में का बा पार्ट-2” पर नोटिस जारी किया था।
- उन पर ‘सार्वजनिक शांति भंग करने’ का आरोप लगाया गया था।
हालांकि, नेहा का कहना रहा है कि उनका मकसद किसी पार्टी या व्यक्ति को निशाना बनाना नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर जन-जागरूकता फैलाना है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के निहितार्थ
इस मामले ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके दायरे पर बहस छेड़ दी है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक, यह फैसला यह संकेत देता है कि सुप्रीम कोर्ट सोशल मीडिया पर “राजनीतिक टिप्पणी” और “घृणा भरे वक्तव्यों” के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
पूर्व जस्टिस और संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत की यह सावधानी आवश्यक है क्योंकि सोशल मीडिया पोस्ट के असर बहुत व्यापक होते हैं।
“डिजिटल प्लेटफॉर्म पर शब्दों का वजन बहुत होता है। ऐसी स्थिति में कोई भी टिप्पणी जो समाज में विभाजन या अविश्वास फैला सकती है, उस पर कानून का दायरा लागू होता है,” — वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा।
अभिव्यक्ति बनाम जिम्मेदारी की बहस
इस घटना ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक उत्तरदायित्व के बीच एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है। क्या कलाकार या आम नागरिक सोशल मीडिया पर किसी सरकारी नीति या घटना पर अपनी राय देने के लिए स्वतंत्र हैं?
या फिर संवेदनशील समय में ऐसे बयान “जन व्यवस्था” को प्रभावित कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला फिलहाल यह कहता है कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, उसके साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी है।”
कानूनी लड़ाई जारी, राहत अब तक नहीं
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद नेहा सिंह राठौर को अब निचली अदालतों में अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखनी होगी। मामले की जांच अभी प्रारंभिक चरण में है और पुलिस ने कहा है कि वह इलेक्ट्रॉनिक सबूत, ट्वीट का मूल स्रोत और उससे जुड़े अन्य ऑनलाइन डेटा का परीक्षण कर रही है।
साफ है कि फिलहाल नेहा सिंह राठौर को कोई राहत नहीं मिली है, लेकिन यह केस भारत में सोशल मीडिया स्वतंत्रता बनाम कानून की सीमाओं के बीच चल रही जटिल बहस का ताजा उदाहरण बन गया है।