
बेंगलुरु: कर्नाटक की राजनीति में इन दिनों बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या के समाधान के नाम पर प्रस्तावित ₹43,000 करोड़ की टनल रोड परियोजना को लेकर जबरदस्त सियासी तूफान खड़ा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के युवा सांसद तेजस्वी सूर्या ने इस परियोजना को “जनता के पैसे की बर्बादी” बताते हुए राज्य के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार पर तीखा हमला बोला है।
तेजस्वी सूर्या ने आरोप लगाया कि सरकार इस परियोजना को विकास के नाम पर “व्यक्तिगत प्रचार और कमीशनखोरी का साधन” बनाना चाहती है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा —
“यह ₹43,000 करोड़ की टनल क्या ट्रैफिक कम करने के लिए बन रही है, या डी.के. शिवकुमार की शादी जैसी शोभायात्राओं के लिए?”
उनके इस बयान के बाद कर्नाटक की राजनीति में एक नई बहस छिड़ गई है — क्या यह मेगा प्रोजेक्ट जनता की जरूरत है या फिर राजनीतिक महत्वाकांक्षा का प्रतीक?
बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या और विवादित टनल परियोजना
राज्य सरकार ने हाल ही में ‘बेंगलुरु टनल रोड प्रोजेक्ट’ को हरी झंडी दी थी। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत लगभग 99 किलोमीटर लंबा भूमिगत मार्ग बनाया जाना प्रस्तावित है, जिससे राजधानी के अंदरूनी इलाकों में ट्रैफिक दबाव कम किया जा सके।
परियोजना की अनुमानित लागत करीब ₹43,000 करोड़ बताई जा रही है, जो इसे भारत की सबसे महंगी शहरी सड़क परियोजनाओं में से एक बना देती है। इस परियोजना का संचालन पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत किया जाना है।
लेकिन जैसे ही योजना का प्रस्ताव सार्वजनिक हुआ, विपक्षी दल भाजपा ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। भाजपा नेताओं का कहना है कि बिना व्यवहार्यता अध्ययन और पर्यावरणीय मूल्यांकन के इतनी बड़ी परियोजना को मंजूरी देना जनता के साथ अन्याय है।
तेजस्वी सूर्या बोले — “शहर को समाधान नहीं, नई समस्या मिलेगी”
दक्षिण बेंगलुरु से भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार सिर्फ “कमीशन राजनीति” में जुटे हैं।
उन्होंने कहा,
“शहर में पहले से ही कई अधूरी परियोजनाएँ पड़ी हैं। व्हाइटफील्ड और इलेक्ट्रॉनिक सिटी के लोग रोज़ ट्रैफिक में फंसे रहते हैं, पर सरकार की प्राथमिकता इन समस्याओं को सुलझाने की नहीं, बल्कि नई परियोजनाओं में पैसा लगाने की है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि टनल प्रोजेक्ट का कोई ठोस तकनीकी औचित्य नहीं है, क्योंकि शहर के ज्यादातर हिस्से पत्थरीली भूमि पर बसे हैं, जहाँ भूमिगत सुरंग निर्माण अत्यधिक महंगा और जोखिमपूर्ण होगा।
शिवकुमार का पलटवार — “बीजेपी विकास से डरती है”
तेजस्वी सूर्या के हमले पर उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा “विकास विरोधी राजनीति” कर रही है। उन्होंने कहा कि बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या को अगर हल करना है तो दीर्घकालिक समाधान की दिशा में सोचना होगा।
शिवकुमार ने कहा,
“जो लोग आज इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं, वही लोग कल हमारे पास ट्रैफिक से निजात दिलाने की गुहार लगाते हैं। भाजपा नेताओं को जनता के हित में सोचना चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए हर योजना पर सवाल उठाना चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह परियोजना ‘बेंगलुरु का भविष्य बदलने वाली योजना’ होगी, और इसकी वित्तीय संरचना पारदर्शी तरीके से तैयार की जा रही है।
बीजेपी का आरोप — “लोगों के पैसे से चुनावी जमीन तैयार कर रही कांग्रेस”
भाजपा ने इस पूरे मुद्दे को लेकर सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। पार्टी प्रवक्ता मालविका अविनाश ने कहा कि कांग्रेस सरकार जनता के पैसों का उपयोग अपनी “राजनीतिक जमीन मजबूत करने” में कर रही है।
उन्होंने कहा,
“₹43,000 करोड़ की परियोजना का अर्थ समझिए — यह कर्नाटक के वार्षिक स्वास्थ्य बजट से चार गुना ज्यादा है। सरकार यह बताने को तैयार नहीं कि इतनी बड़ी राशि आएगी कहाँ से और इसका लाभ किसे मिलेगा?”
भाजपा का कहना है कि पहले मेट्रो नेटवर्क और रिंग रोड परियोजनाओं को पूरा किया जाए, फिर किसी नए प्रयोग पर विचार हो।
विशेषज्ञों ने भी उठाए सवाल
शहरी विकास विशेषज्ञों ने भी इस परियोजना पर कई तकनीकी और आर्थिक प्रश्न उठाए हैं। भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बेंगलुरु की भू-भौगोलिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वहाँ इतनी बड़ी भूमिगत सुरंग सुरक्षित और टिकाऊ साबित हो सके।
उन्होंने कहा,
“शहर में ड्रेनेज और भूजल निकासी पहले ही एक गंभीर समस्या है। अगर बिना गहराई अध्ययन के सुरंग निर्माण हुआ, तो मानसून में बाढ़ जैसी स्थिति और बढ़ सकती है।”
इसके अलावा, विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी है कि इस परियोजना से शहर के हरे-भरे इलाकों पर दबाव बढ़ेगा और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होगी।
जनता की राय बंटी — सोशल मीडिया पर गरम बहस
बेंगलुरु के नागरिकों के बीच भी इस मुद्दे पर मतभेद देखने को मिल रहे हैं।
कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “अगर यह परियोजना सही तरीके से लागू हो, तो शहर की जाम समस्या से राहत मिल सकती है।” वहीं, कुछ नागरिकों ने इसे “नया घोटाला प्रोजेक्ट” बताया।
एक यूज़र ने X (ट्विटर) पर लिखा —
“टनल प्रोजेक्ट अच्छा विचार है, लेकिन क्या हमें भरोसा है कि यह समय पर और बजट में पूरा होगा? पिछले अनुभव तो कुछ और ही कहते हैं।”
राजनीतिक अर्थशास्त्र: चुनाव से पहले ‘मेगा प्रोजेक्ट’ की राजनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद सिर्फ बेंगलुरु की ट्रैफिक समस्या तक सीमित नहीं है।
दरअसल, कांग्रेस सरकार इस परियोजना के ज़रिए अपने “विकासवादी चेहरा” दिखाना चाहती है, जबकि भाजपा इसे भ्रष्टाचार और दिखावे की राजनीति बता रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. सी. नागराज कहते हैं,
“₹43,000 करोड़ जैसी परियोजनाएँ आमतौर पर चुनावी साल में राजनीतिक संदेश देने के लिए सामने लाई जाती हैं। यह भाजपा के लिए भी अवसर है कि वह ‘फिजूलखर्ची’ का मुद्दा बनाकर जनभावनाएँ अपने पक्ष में करे।”
जनता के हित या राजनीतिक स्वार्थ?
बेंगलुरु टनल रोड प्रोजेक्ट पर बढ़ती सियासी खींचतान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह परियोजना वास्तव में ट्रैफिक समाधान है या फिर राजनीतिक प्रदर्शनी।
तेजस्वी सूर्या के “शादी कराने के लिए टनल बना रहे हैं” जैसे बयान ने निश्चित रूप से विवाद को और तीखा बना दिया है। अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इस परियोजना पर ठोस तकनीकी रिपोर्ट और वित्तीय पारदर्शिता के साथ जनता का भरोसा जीत पाएगी, या यह मुद्दा भी आने वाले चुनावों में एक और “राजनीतिक टनल” बनकर रह जाएगा।



