
काशीपुर (महानाद), 13 नवंबर। कांग्रेस पार्टी के भीतर एक बार फिर असंतोष की लहर उठी है। नगर अध्यक्ष पद को लेकर हुए विवाद ने अब खुला रूप ले लिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि रायशुमारी में 95 प्रतिशत समर्थन पाने वाले स्थानीय नेता को नज़रअंदाज़ कर, “बाहरी दबाव” में एक अन्य व्यक्ति को अध्यक्ष बना दिया गया। इसके विरोध में नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान को चेतावनी दी है कि यदि निर्णय वापस नहीं लिया गया, तो वे सामूहिक इस्तीफा दे देंगे।
रायशुमारी में 95% समर्थन पाने वाले नेता को किया गया दरकिनार
सूत्रों के अनुसार, हाल ही में कांग्रेस हाईकमान ने राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल को उत्तराखंड में जिलाध्यक्ष और नगर अध्यक्षों के चुनाव के लिए पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था। उनके नेतृत्व में प्रदेश के सभी जिलों और नगरों में कार्यकर्ताओं से रायशुमारी की गई थी।
काशीपुर में हुई रायशुमारी में लगभग 95 प्रतिशत कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने वैश्य समाज से जुड़े, अग्रवाल सभा काशीपुर के अध्यक्ष और लंबे समय से पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ कार्यकर्ता के नाम पर अपनी सहमति जताई थी।
लेकिन हैरानी की बात यह रही कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस रायशुमारी को पूरी तरह दरकिनार करते हुए, “बाहरी व्यक्ति के दबाव” में अलका पाल को काशीपुर नगर अध्यक्ष घोषित कर दिया।
वरिष्ठ कांग्रेसियों की नाराजगी फूटी बाहर, होटल में हुई बैठक
निर्णय से असंतुष्ट वरिष्ठ कांग्रेस नेता, पूर्व पदाधिकारी और कई ब्लॉक एवं वार्ड स्तर के कार्यकर्ता एक निजी होटल में एकत्रित हुए। इस बैठक में सभी ने आलाकमान के निर्णय पर कड़ा विरोध दर्ज कराया।
बैठक में उपस्थित नेताओं ने कहा कि जिस तरह से पार्टी नेतृत्व ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की राय को नज़रअंदाज़ किया है, उससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया है। उन्होंने इसे “आंतरिक लोकतंत्र की हत्या” बताते हुए तत्काल नगर अध्यक्ष बदलने की मांग की।
एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने बैठक में कहा —
“जब 95 प्रतिशत कार्यकर्ता एक ही नाम पर सहमति जताते हैं और फिर भी किसी बाहरी दबाव में निर्णय लिया जाता है, तो यह लोकतंत्र नहीं बल्कि मनोनयन की राजनीति है। अगर आलाकमान ने निर्णय वापस नहीं लिया, तो हम सब अपने पदों से इस्तीफा देंगे।”
पार्टी में बढ़ती गुटबाजी और नेतृत्व पर सवाल
इस विवाद के बाद से कांग्रेस के भीतर गुटबाजी एक बार फिर उभर आई है। स्थानीय कार्यकर्ता इसे पार्टी के भीतर “लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी” का उदाहरण बता रहे हैं। कई कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के निर्णयों से कांग्रेस की जड़ें कमजोर होती जा रही हैं और जमीनी स्तर पर पार्टी का ढांचा बिखरता जा रहा है।
एक युवा कांग्रेसी कार्यकर्ता ने कहा —
“हमने पूरा समय संगठन को मजबूत करने में लगाया। लेकिन जब मेहनती और जनसमर्थन वाले कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया जाता है, तो यह हतोत्साहित करने वाला कदम है।”
‘बाहरी दबाव’ पर उठे गंभीर सवाल
कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आरोप है कि अलका पाल की नियुक्ति में स्थानीय नेता नहीं बल्कि बाहरी राजनीतिक दबाव का प्रभाव रहा। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस आरोप की पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार कुछ प्रभावशाली नेताओं की सिफारिश के चलते यह नियुक्ति की गई।
इस मुद्दे ने न केवल काशीपुर बल्कि पूरे उधमसिंह नगर जिले में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है।
आलाकमान के सामने चुनौती — संगठन में असंतोष को कैसे रोके?
कांग्रेस हाईकमान अब एक कठिन स्थिति में है। एक ओर वरिष्ठ नेता और स्थानीय कार्यकर्ता खुले तौर पर विरोध में उतर आए हैं, वहीं दूसरी ओर पार्टी आगामी स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी है। ऐसे में काशीपुर जैसी अहम नगर इकाई में आंतरिक कलह पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह विवाद जल्द नहीं सुलझाया गया, तो इसका असर आसपास के जिलों में भी पड़ेगा।
संभावित मध्यस्थता की संभावना
पार्टी सूत्रों के अनुसार, उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने इस विवाद की रिपोर्ट आलाकमान तक पहुँचा दी है और मध्यस्थता के लिए वार्ता का रास्ता खुला रखा है। हालांकि अभी तक किसी भी वरिष्ठ नेता ने इस विवाद पर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है।
काशीपुर नगर अध्यक्ष पद को लेकर छिड़ा यह विवाद कांग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र और पारदर्शिता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। जहाँ एक ओर कार्यकर्ता रायशुमारी को दरकिनार करने से नाराज हैं, वहीं दूसरी ओर आलाकमान का रुख इस बात पर निर्भर करेगा कि वह स्थानीय असंतोष को कितना गंभीरता से लेता है।
यदि समय रहते समाधान नहीं निकला, तो काशीपुर कांग्रेस में यह असंतोष न केवल संगठन की एकता को तोड़ेगा बल्कि आगामी चुनावों में पार्टी की स्थिति को भी कमजोर कर सकता है।



