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बिहार चुनाव से पहले प्रशांत किशोर का बड़ा दांव: जन सुराज की दूसरी सूची जारी, छह ‘पासवान’ उम्मीदवारों से लोजपा के खेमे में हलचल

जन सुराज ने घोषित किए 65 उम्मीदवार, सामान्य वर्ग से 46, अनुसूचित जाति की 18 और अनुसूचित जनजाति की एक सीट पर उम्मीदवार मैदान में; बिहार की राजनीति में नया जातीय समीकरण गढ़ने की कोशिश

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने अपनी पार्टी जन सुराज (Jan Suraaj Party) की दूसरी सूची जारी कर सियासी हलचल तेज कर दी है। सोमवार को जारी इस सूची में कुल 65 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं, जिनमें 46 सामान्य वर्ग, 18 अनुसूचित जाति (SC) और 1 अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के प्रत्याशी हैं।

इस सूची की सबसे अहम बात यह है कि छह उम्मीदवार ऐसे हैं जिनका उपनाम ‘पासवान’ है। यह कदम सीधे तौर पर लोजपा (रामविलास) के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।


लोजपा के गढ़ में ‘जन सुराज’ की एंट्री

बिहार में दलित राजनीति की धुरी माने जाने वाले चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) इन दिनों एनडीए का हिस्सा है और गठबंधन के तहत उसे 29 सीटें दी गई हैं। हालाँकि सीट बंटवारे को लेकर पार्टी की नाराज़गी और मोलभाव दोनों ही खबरों में रहे।
अब जन सुराज की नई लिस्ट में ‘पासवान’ प्रत्याशियों को टिकट देकर प्रशांत किशोर ने एक स्पष्ट संदेश दिया है — जन सुराज भी उसी सामाजिक आधार को टारगेट कर रही है जो लंबे समय से लोजपा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम लोजपा के लिए सिरदर्द बन सकता है, क्योंकि बिहार की दुसाध जाति, जिससे चिराग पासवान आते हैं, राज्य की आबादी में लगभग 5.3 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है और यह यादवों के बाद सबसे बड़ी पिछड़ी जातियों में गिनी जाती है।
जन सुराज के इन छह उम्मीदवारों का चयन उसी वोटबैंक में नई पैठ बनाने की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।


‘जन सुराज’ की राजनीति: वैकल्पिक नैरेटिव की तलाश

प्रशांत किशोर का ‘जन सुराज’ अभियान शुरू से ही पारंपरिक राजनीति से अलग राह अपनाता दिखा है। पिछले दो वर्षों से बिहार के कोने-कोने में पैदल यात्राएं और जन संवाद कार्यक्रमों के जरिए उन्होंने एक ‘मूवमेंट’ खड़ा करने की कोशिश की है।
इस दूसरी सूची से यह स्पष्ट है कि जन सुराज अब चुनावी अखाड़े में उतरने को पूरी तरह तैयार है

सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में जातीय संतुलन, सामाजिक प्रतिनिधित्व और स्थानीय लोकप्रियता जैसे कारकों को तरजीह दी है। सामान्य वर्ग से 46 उम्मीदवारों का नामांकन इस बात का संकेत है कि पार्टी खुद को सिर्फ किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि पूरे समाज के लिए विकल्प के रूप में पेश कर रही है।


चिराग पासवान और एनडीए पर संभावित असर

बिहार में एनडीए का गणित पहले से ही जटिल है। जदयू, बीजेपी और लोजपा (रामविलास) के बीच सीटों को लेकर खींचतान लगातार बनी रही। ऐसे में जन सुराज की यह रणनीति एनडीए के समीकरण पर असर डाल सकती है।

2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा ने अकेले मैदान में उतरकर 135 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी को 5.8 प्रतिशत वोट मिले थे, हालांकि वह केवल एक सीट ही जीत पाई थी। चुनाव के बाद पार्टी दो हिस्सों में बंट गई — लोजपा (रामविलास) और राष्ट्रीय लोजपा (पशुपति पारस गुट)
अब प्रशांत किशोर का नया प्रयोग लोजपा के उसी कोर वोट बैंक को चुनौती देने की दिशा में देखा जा रहा है।


पारदर्शिता और तकनीक आधारित राजनीति की ओर

जन सुराज पार्टी की उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पारंपरिक दलों से अलग दिखाई दे रही है। पार्टी ने दावा किया है कि टिकट वितरण की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन और पारदर्शी रखी गई है। उम्मीदवारों के नाम जनता की राय और स्थानीय सर्वे के आधार पर तय किए गए हैं।

सूत्रों के अनुसार, टिकट आवेदन के लिए ₹21,000 की फीस तय की गई है, लेकिन पार्टी ने स्पष्ट किया कि यह फीस टिकट की गारंटी नहीं है। इसका उद्देश्य प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना और गंभीर उम्मीदवारों को अवसर देना है।
प्रशांत किशोर ने अपनी रैली में कहा था कि “जन सुराज केवल एक पार्टी नहीं, बल्कि जनता की भागीदारी से चलने वाला आंदोलन है।


‘जन सुराज’ बनाम पारंपरिक राजनीति

जन सुराज की अब तक की दोनों सूचियाँ संकेत देती हैं कि प्रशांत किशोर “वोट-कटर” की नहीं, बल्कि “विकल्प देने वाली” पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करना चाहते हैं।
पहली सूची में पार्टी ने शिक्षकों, डॉक्टरों, पूर्व अधिकारियों और समाजसेवियों को टिकट देकर “क्लीन इमेज” वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी थी। अब दूसरी लिस्ट जातीय और सामाजिक संतुलन के साथ राजनीतिक मैदान में उतरने की उनकी परिपक्वता को दर्शाती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जन सुराज की एंट्री एनडीए और इंडिया गठबंधन, दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
जहां एक ओर यह पार्टी ग्रामीण बिहार में मुद्दों की राजनीति कर रही है, वहीं दूसरी ओर यह शहरी मतदाताओं को भी ‘साफ छवि’ वाले नेतृत्व का वादा कर रही है।


जन सुराज का संगठन और भविष्य की रणनीति

पार्टी ने हाल ही में राज्यभर के 63,000 से अधिक बूथों पर प्रभारियों की नियुक्ति की है और दावा किया है कि वह बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
पार्टी के पदाधिकारियों का कहना है कि जन सुराज किसी विशेष जाति या वर्ग की नहीं, बल्कि “हर उस बिहारी की आवाज़ है, जो ईमानदार शासन और जवाबदेही चाहता है।”

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर की यह पार्टी अगर 2025 के चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन कर पाई, तो बिहार की राजनीति में तीसरे विकल्प का पुनरुद्धार संभव है।


बदलते बिहार की नई सियासत

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की दूसरी सूची यह संकेत देती है कि बिहार की सियासी ज़मीन पर एक नई राजनीति का बीज बोया जा चुका है। जहाँ एक ओर लोजपा और एनडीए जैसी पारंपरिक ताकतें अपने समीकरण साधने में जुटी हैं, वहीं जन सुराज अपने “लोकप्रिय उम्मीदवारों” और “संतुलित जातीय रणनीति” के ज़रिए मैदान में उतर चुकी है।

बिहार की राजनीति में अब सवाल यह नहीं है कि जन सुराज कितनी सीटें जीतेगी, बल्कि यह है कि वह किस-किस दल का समीकरण बिगाड़ेगी। आने वाले महीनों में यह तय होगा कि प्रशांत किशोर का यह प्रयोग — राजनीति को लोगों तक लौटाने का प्रयास — बिहार की सत्ता तक पहुँचने में कितना सफल होता है।

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