
बेंगलुरु, 22 अक्टूबर 2025 | कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। राज्य की कांग्रेस सरकार के मुखिया सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच चल रही सत्ता संतुलन की बहस ने एक बार फिर सियासी पारा बढ़ा दिया है। इस बार यह बहस किसी विपक्षी हमले या पार्टी विवाद से नहीं, बल्कि खुद मुख्यमंत्री के बेटे के बयान से शुरू हुई है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे डॉ. यतींद्र सिद्धारमैया ने बुधवार को सार्वजनिक रूप से कहा कि उनके पिता “अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम चरण” में हैं और अब उन्हें “कैबिनेट सहयोगी सतीश जरकीहोली जैसे नेताओं के मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य में सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद से हटाने की अटकलें एक बार फिर तेज हो गई हैं।
सिद्धारमैया बनाम शिवकुमार: पुराना मुद्दा फिर चर्चा में
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के बाद कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच खुली रेस थी। दोनों नेताओं का कद न केवल प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मजबूत है।
हालांकि पार्टी आलाकमान ने अंततः सिद्धारमैया के अनुभव को तवज्जो देते हुए उन्हें दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाया और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए रखा।
कांग्रेस हाईकमान ने तब यह संतुलन बनाकर तत्कालीन संभावित विवाद को थाम लिया था, लेकिन पिछले एक वर्ष में कई बार इस समीकरण में हलचल दिखाई दी है। पार्टी के भीतर यह धारणा भी बनी कि डी.के. शिवकुमार राज्य की राजनीति में धीरे-धीरे अपनी मजबूत पकड़ बना रहे हैं।
कांग्रेस सांसद का बयान बना चिंगारी
बीते सप्ताह कांग्रेस सांसद एल.आर. शिवराम गौड़ा ने कहा था कि पार्टी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि “क्या सत्ता परिवर्तन की योजना है या नहीं।” उन्होंने दावा किया कि कार्यकर्ताओं के बीच यह भ्रम बढ़ रहा है कि जल्द ही मुख्यमंत्री बदले जा सकते हैं।
गौड़ा के बयान ने पार्टी नेतृत्व को असहज कर दिया था। हालांकि प्रदेश कांग्रेस ने तत्काल बयान जारी कर इस तरह की चर्चाओं को “अनुचित और भ्रामक” बताया, लेकिन अब मुख्यमंत्री के बेटे के बयान ने फिर से इस सियासी बहस को हवा दे दी है।
77 वर्ष की आयु में दूसरी पारी खेल रहे सिद्धारमैया
77 वर्षीय सिद्धारमैया 2013 से 2018 तक भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे थे। उनकी छवि एक मास अपील वाले लीडर की रही है, खासकर ओबीसी और ग्रामीण तबके में उनकी गहरी पकड़ है।
वह राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जिन्होंने लगातार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
2018 में भाजपा की सरकार आने के बाद सिद्धारमैया ने विपक्ष के नेता के रूप में पार्टी को एकजुट रखा और 2023 में ‘गारंटी स्कीमों’ के बूते कांग्रेस को सत्ता में वापसी दिलाई।
उनकी लोकप्रियता के बावजूद उम्र और स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कई बार उन्होंने खुद भी संकेत दिया है कि “राजनीतिक जीवन में अब कुछ ही वर्ष बाकी हैं।” बेटे के हालिया बयान को उसी पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है।
डी.के. शिवकुमार की बढ़ती पकड़ और समीकरण
डी.के. शिवकुमार फिलहाल कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं। राज्य में संगठन, फंडिंग और रणनीति के स्तर पर उनका दबदबा है।
2023 के चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी की रणनीति को नए सिरे से खड़ा किया। उनके समर्थक उन्हें चुनावी जीत का “आर्किटेक्ट” मानते हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिवकुमार की “सीएम इन वेटिंग” की छवि को खुद उनके समर्थक भी बढ़ावा देते हैं, जिससे पार्टी नेतृत्व को बीच-बीच में संतुलन साधना पड़ता है।
सिद्धारमैया ने फिर किया अटकलों का खंडन
राजनीतिक अटकलों के तेज होते ही सिद्धारमैया ने बुधवार को बयान जारी किया कि “मैं मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह सक्रिय हूँ। सरकार जनता के हितों के लिए काम कर रही है और सत्ता परिवर्तन की कोई चर्चा निराधार है।”
उन्होंने कहा कि सरकार “गारंटी योजनाओं” के तहत गरीबों, किसानों और महिलाओं के सशक्तिकरण पर केंद्रित है और आने वाले महीनों में कई नई योजनाएं शुरू होंगी।
सिद्धारमैया ने यह भी कहा कि पार्टी के भीतर कोई मतभेद नहीं है — “डीके शिवकुमार मेरे सहयोगी हैं, दोनों मिलकर कांग्रेस के विजन को आगे बढ़ा रहे हैं।”
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सिद्धारमैया का नेतृत्व अनुभव, सामाजिक आधार और सॉफ्ट छवि के कारण अब भी पार्टी के लिए अपरिहार्य है, लेकिन 2028 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को युवा चेहरे की जरूरत होगी।
राज्य में सत्ता साझा करने का कोई फार्मूला सामने नहीं आया है, लेकिन यह भी माना जा रहा है कि 2026 के बाद सत्ता हस्तांतरण की “अनौपचारिक समझ” पार्टी नेतृत्व के स्तर पर संभव हो सकती है।
कांग्रेस हाईकमान की भूमिका अहम
अब सारी निगाहें पार्टी हाईकमान की ओर हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल की टीम पर यह जिम्मेदारी है कि वे राज्य की राजनीति में संतुलन बनाए रखें।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राहुल गांधी राज्य नेतृत्व में किसी तरह की दरार नहीं चाहते क्योंकि 2026 के लोकसभा चुनावों में कर्नाटक कांग्रेस के लिए दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आधार है।
इसलिए फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों के बीच ‘को-ऑर्डिनेशन मॉडल’ को बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है।
अंतिम शब्द
बेटे के बयान के बाद सिद्धारमैया भले ही सार्वजनिक रूप से शांत दिखाई दें, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि कर्नाटक कांग्रेस के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा अब सिर्फ अफवाह नहीं, बल्कि धीरे-धीरे राजनीतिक हकीकत की दिशा में बढ़ रही है।
आने वाले महीनों में पार्टी नेतृत्व को यह तय करना होगा कि सिद्धारमैया को “मार्गदर्शक” की भूमिका में कब और कैसे ट्रांज़िशन कराया जाए — या फिर क्या वह 2028 तक अपने पद पर बने रहेंगे।
कर्नाटक की यह सियासी जंग अब सिर्फ मुख्यमंत्री पद की नहीं, बल्कि कांग्रेस की एकता और भविष्य की दिशा की परीक्षा बन चुकी है।