
चंडीगढ़: हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के छह दिन बीत चुके हैं, लेकिन मामला थमने का नाम नहीं ले रहा। परिवार की जिद, सियासी दबाव और प्रशासनिक गतिरोध ने इस संवेदनशील केस को राज्य की राजनीति के केंद्र में ला दिया है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सरकार पर विपक्ष के साथ-साथ दलित संगठनों का भी तीखा हमला जारी है, वहीं आईपीएस अधिकारी का परिवार अब भी पोस्टमार्टम की अनुमति देने से इंकार कर रहा है।
पूरन कुमार की पत्नी, हरियाणा की सीनियर आईएएस अधिकारी अमनीत पी. कुमार, और उनके परिजन मांग कर रहे हैं कि राज्य के डीजीपी शत्रुजीत कपूर तथा पूर्व रोहतक एसपी नरेंद्र बिजरानिया के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी की जाए। इसी शर्त पर वे शव का पोस्टमार्टम करवाने के लिए तैयार होंगे।
48 घंटे का अल्टीमेटम — परिवार की जिद पर सरकार असहज
चंडीगढ़ में रविवार को पूरन कुमार के परिजनों और दलित संगठनों की बैठक के बाद स्थिति और गरमा गई। परिवार की ओर से गठित 31 सदस्यीय समिति ने राज्य सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है — या तो डीजीपी शत्रुजीत कपूर को उनके पद से हटाया जाए और उन पर कार्रवाई हो, या फिर आंदोलन तेज किया जाएगा।
परिवार का कहना है कि “जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, शव का पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा।”
इस गतिरोध के चलते शव चंडीगढ़ के सेक्टर-32 स्थित सरकारी अस्पताल की मोर्चरी में छह दिनों से रखा हुआ है।
सरकार के दावों के बावजूद परिवार नहीं झुका
हरियाणा सरकार इस संवेदनशील मामले को लेकर पूरी तरह दबाव में है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि “पूरन कुमार के परिवार के साथ पूरा न्याय किया जाएगा।”
इसके लिए सरकार ने दलित समुदाय से आने वाले दो कैबिनेट मंत्रियों — कृष्ण कुमार बेदी और कृष्ण लाल पंवार — को परिवार से बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी। दोनों मंत्री तीन बार परिवार से मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकला।
सरकार का मानना है कि अमनीत पी. कुमार अब कुछ नरम रुख में हैं, लेकिन उनके भाई और आम आदमी पार्टी (AAP) विधायक अमित रतन कोटफत्ता इस जिद से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। कोटफत्ता, जो पंजाब के बठिंडा ग्रामीण से विधायक हैं, साफ तौर पर कह चुके हैं कि
“जब तक डीजीपी और एसपी पर एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी नहीं होती, तब तक शव को हाथ नहीं लगाया जाएगा।”
चंडीगढ़ पुलिस की जांच और कानूनी बाधाएं
इस बीच, चंडीगढ़ पुलिस, जो इस केस की जांच कर रही है, ने अमनीत पी. कुमार को पत्र भेजकर शव की पहचान कर पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया पूरी करने का अनुरोध किया है। पुलिस का कहना है कि “पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट जांच के लिए अत्यंत आवश्यक है।”
चंडीगढ़ पुलिस ने हरियाणा सरकार से केस से जुड़े जरूरी दस्तावेज और आंतरिक रिपोर्ट्स भी मांगी हैं, ताकि जांच आगे बढ़ाई जा सके।
हालांकि, परिवार के इनकार और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कानूनी प्रक्रिया ठप पड़ी हुई है। अधिकारियों के अनुसार, “जांच का हर अगला कदम पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पर निर्भर करता है। यदि यह रिपोर्ट नहीं बनती, तो केस तकनीकी रूप से अधूरा रह जाएगा।”
पूरन कुमार कौन थे और क्यों चर्चा में आए?
वाई. पूरन कुमार हरियाणा कैडर के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी थे, जिन्होंने अपनी ईमानदारी और सख्त कार्यशैली के लिए पहचान बनाई थी। बताया जा रहा है कि हाल ही में उनका तबादला हुआ था, जिससे वे असंतुष्ट थे। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ मानसिक उत्पीड़न की शिकायत भी दी थी।
3 अक्टूबर की रात को उनका शव चंडीगढ़ स्थित सरकारी आवास में फांसी के फंदे से लटका मिला। घटना की सूचना के बाद आईएएस पत्नी अमनीत पी. कुमार ने तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों को फोन कर मामले में “उकसाने” (abetment to suicide) की जांच की मांग की थी।
राजनीति में बढ़ी हलचल — दलित संगठनों और विपक्ष का आक्रोश
पूरन कुमार दलित समुदाय से आते थे, और यही कारण है कि इस केस ने सामाजिक-राजनीतिक रूप ले लिया है। कई दलित संगठन और विपक्षी दल इसे दलित अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव का मामला बताते हुए राज्य सरकार को घेर रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के पंजाब अध्यक्ष और मंत्री अमन अरोड़ा ने कहा,
“पूरन कुमार जैसे सीनियर अधिकारी को ऐसे हालातों में धकेला जाना बेहद दुखद है। छह दिन हो चुके हैं, पोस्टमार्टम तक नहीं हुआ। यह देश के सिस्टम की विफलता है।”
अमन अरोड़ा ने यह भी बताया कि पंजाब में इस मुद्दे को लेकर कैंडल मार्च आयोजित किए जा रहे हैं और सोमवार को पंजाब कैबिनेट की बैठक में इस पर चर्चा की जाएगी।
कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (INLD) ने भी सरकार से “पारदर्शी और स्वतंत्र जांच” की मांग की है।
सरकार के लिए बढ़ता दबाव और सियासी खतरा
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह मामला हरियाणा सरकार के लिए एक बड़ी साख की परीक्षा बन गया है। दलित समाज से जुड़े दो कैबिनेट मंत्रियों के प्रयास विफल होने से सरकार की छवि पर असर पड़ा है।
इसके अलावा, यह मुद्दा अब राष्ट्रीय स्तर पर भी उठाया जा रहा है। विपक्षी दल इसे “प्रशासनिक उत्पीड़न” और “दलित अफसरों के साथ अन्याय” के तौर पर पेश कर रहे हैं।
वहीं, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला हरियाणा की सीमाओं से निकलकर बिहार और पंजाब चुनावी समीकरणों में भी असर डाल सकता है। दलित वोट बैंक को साधने के लिए विपक्ष इस मुद्दे को प्रमुखता से उठा सकता है।
पूरन कुमार केस का सामाजिक असर
यह मामला न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि अधिकारियों के मानसिक स्वास्थ्य, कार्यस्थल पर तनाव और पदानुक्रम (hierarchy) में होने वाले दबाव जैसे गंभीर विषयों को भी उजागर करता है।
एक सीनियर पुलिस अधिकारी का इस तरह जीवन समाप्त कर लेना नौकरशाही के भीतर छिपे तनाव की ओर इशारा करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि
“सिस्टम में जवाबदेही और मानसिक स्वास्थ्य सहायता का अभाव अब एक गंभीर समस्या बन गया है।”
एक अफसर की मौत, कई सवाल
हरियाणा के सीनियर आईपीएस वाई. पूरन कुमार की मौत अब केवल एक आत्महत्या का मामला नहीं रह गई है — यह प्रशासनिक पारदर्शिता, राजनीतिक दबाव, सामाजिक न्याय और नौकरशाही की मानसिक स्थिति पर राष्ट्रीय बहस बन चुकी है। पोस्टमार्टम की अनुमति का मुद्दा, परिवार की अड़ और सरकार की असहज चुप्पी ने इस केस को और पेचीदा बना दिया है।
अब सबकी नजरें अगले 48 घंटे पर हैं — क्या हरियाणा सरकार परिवार की मांगें मानेगी या यह गतिरोध और लंबा खिंचेगा? जवाब चाहे जो हो, पूरन कुमार की मौत ने शासन-प्रशासन के भीतर की खामोश त्रासदी को एक बार फिर उजागर कर दिया है।