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मैटरनिटी लीव 2 बच्चों तक सीमित रखने के नियम पर, हाईकोर्ट ने केंद्र को दिया ये आदेश

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दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिकारियों को सीसीएस नियम पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है, जिसके तहत महिला सरकारी कर्मचारियों को पहले दो बच्चों के जन्म के समय मातृत्व अवकाश दिया जाता है। हाईकोर्ट ने अधिकारियों से पूछा कि तीसरे और उसके बाद के बच्चों का क्या दोष है, जिन्हें उस मातृ देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी। केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43 के अनुसार, कोई महिला सरकारी कर्मचारी शुरुआती दो बच्चों के जन्म के समय दोनों बार 180 दिन की अवधि के लिए मातृत्व अवकाश की हकदार है। अदालत ने कहा तीसरे बच्चे को जन्म के तुरंत बाद और शिशु अवस्था के दौरान मातृ स्पर्श से वंचित रखा जाना ठीक नहीं है, क्योंकि नियम 43 के अनुसार उस बच्चे की मां से यह अपेक्षा की जाती है कि वह जन्म के अगले ही दिन ड्यूटी पर लौट आए।

अदालत ने कहा, “यह याद रखना महत्वपूर्ण होगा कि किसी गर्भवती महिला के शारीरिक व मनोवैज्ञानिक परिवर्तन एक समान रहते हैं, चाहे वह पहली दो गर्भवास्था के दौरान हों, या तीसरे या उसके बाद की गर्भावस्था के दौरान। इसके अलावा, बाल अधिकारों के दृष्टिकोण से इस मुद्दे पर गौर करने पर हम पाते हैं कि सीसीएस (अवकाश) नियमों के तहत नियम 43 एक महिला सरकारी कर्मचारी के पहले दो बच्चों और तीसरे या बाद के बच्चे के अधिकारों के बीच एक अनुचित भेद पैदा करता है। इससे तीसरे और बाद के बच्चे को उस मातृ देखभाल से वंचित होना पड़ता है, जो पहले दो बच्चों को मिली थी।”

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