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सूर्य को अर्घ्य, आस्था का सागर: छठ महापर्व पर देशभर में उमड़ा जनसैलाब, बिहार में चुनावी रंग में भी रंगा श्रद्धा का उत्सव

नई दिल्ली/पटना/वाराणसी, 27 अक्टूबर 2025: लोक आस्था का महापर्व छठ आज पूरे देश में श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में गंगा, तालाब और कृत्रिम जलाशयों के किनारे लाखों श्रद्धालु जुटे हैं।

आज शाम व्रती महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य (डूबते सूरज) को अर्घ्य देंगी, जबकि कल प्रातःकाल उदीयमान सूर्य (उगते सूरज) को अर्घ्य अर्पित कर यह पर्व संपन्न होगा।


सूर्य उपासना और लोकसंस्कृति का संगम

छठ पर्व की पहचान केवल धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं है — यह सूर्योपासना, पारिवारिक एकता, और लोकसंस्कृति की सबसे जीवंत अभिव्यक्ति है।
चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, इसके बाद खरना, फिर संध्या अर्घ्य और अंत में प्रातः अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है।
इस दौरान व्रती महिलाएं (अधिकतर माताएं या बहनें) निराहार रहकर परिवार के सुख, संतान की लंबी आयु और समृद्धि की कामना करती हैं।

इस वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अक्टूबर को सुबह 06:04 बजे से आरंभ होकर 28 अक्टूबर सुबह 07:59 बजे तक रहेगी।
दिल्ली और उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में सूर्यास्त 5:40 बजे, जबकि सूर्योदय 6:30 बजे के आसपास होगा। इन्हीं समयों पर घाटों पर विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी।


देशभर के घाटों पर उमड़ा जनसैलाब

बिहार के पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और दरभंगा के गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही उमड़ पड़ी है।
पटना के कंकड़बाग, दीघा, और गाइ घाट पर प्रशासन ने विशेष सुरक्षा इंतज़ाम किए हैं।
झारखंड के रांची और धनबाद, यूपी के वाराणसी, गोरखपुर, प्रयागराज, लखनऊ और नोएडा में भी छठ घाटों को फूलों, दीपों और रंगोली से सजाया गया है।

दिल्ली-एनसीआर में यमुना के तटों पर बसे इलाकों — जैसे कालिंदी कुंज, मायापुरी, वजीराबाद, ओखला, और गीता कॉलोनी — में बिहार और पूर्वी यूपी के प्रवासी समुदायों ने पारंपरिक ढंग से पूजा की तैयारियाँ की हैं।

पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की इस अनूठी परंपरा ने दिल्ली के महानगरीय जीवन में भी मिट्टी की खुशबू और गाँव की संस्कृति का रंग घोल दिया है।


चुनावी मौसम में छठ का सियासी रंग

इस बार छठ पूजा का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि बिहार और झारखंड में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं।
ऐसे में घाटों पर श्रद्धा के साथ-साथ राजनीति की मौजूदगी भी साफ़ देखी जा सकती है।
कई राजनीतिक दलों के उम्मीदवार और नेता घाटों पर पहुँचकर श्रद्धालुओं का अभिवादन कर रहे हैं।

पटना में कई घाटों पर स्थानीय प्रत्याशी और सांसद/विधायक पूजा स्थलों पर जाकर व्रतियों से संवाद कर रहे हैं और खुद को “जनता का सच्चा सेवक” बताने में जुटे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, छठ जैसे लोकपर्व बिहार की राजनीति में हमेशा भावनात्मक जुड़ाव का माध्यम रहे हैं — नेता जानते हैं कि आस्था का सम्मान करना, जनता से जुड़ने का सबसे सहज तरीका है।


प्रशासन ने कसे इंतज़ाम, सुरक्षा चाक-चौबंद

श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने देशभर के घाटों पर NDRF और स्थानीय पुलिस बलों की तैनाती की है।
पटना में गंगा का जलस्तर सामान्य से अधिक होने के कारण कई घाटों पर अस्थायी मंच और कृत्रिम कुंड तैयार किए गए हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि

“कोई भी श्रद्धालु असुविधा में न रहे। बिजली, पानी, प्रकाश और सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था हर घाट पर सुनिश्चित की जाए।”

दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद में भी निगम और जिला प्रशासन की टीमें तैनात हैं, ताकि भीड़ नियंत्रण और स्वच्छता व्यवस्था बनी रहे।


महिलाओं की भूमिका और सामाजिक संदेश

छठ व्रत में महिलाओं की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
व्रती महिलाएं चार दिनों तक उपवास रखती हैं, बिना जल के खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं, और पूजा की हर विधि अपने हाथों से करती हैं।
यह पर्व स्त्री-सशक्तिकरण की लोक परंपरा का प्रतीक है — जो यह संदेश देता है कि त्याग, अनुशासन और शक्ति का स्वरूप भारतीय नारी है।

सामाजिक कार्यकर्ता ममता पांडे के अनुसार,

“छठ केवल पूजा नहीं, यह स्त्रियों का आत्मबल और सहनशीलता का उत्सव है। यह पर्व बताता है कि आध्यात्मिकता और प्रकृति का संतुलन हमारे जीवन का आधार है।”


प्रवासी भारतीयों ने विदेशों में भी मनाया छठ

छठ पूजा की आस्था अब सीमाओं से परे जा चुकी है।
अमेरिका, दुबई, लंदन, सिंगापुर, नेपाल और मॉरीशस जैसे देशों में बसे भारतीय समुदायों ने भी कृत्रिम तालाबों, झीलों और नदियों के किनारे छठ पूजा का आयोजन किया।
न्यू जर्सी के इंडियन कम्युनिटी सेंटर और दुबई के जुमेराह बीच पर आयोजित छठ कार्यक्रमों में सैकड़ों लोग शामिल हुए।

भारतीय दूतावासों ने भी इन आयोजनों में सहयोग किया और सोशल मीडिया पर ‘#GlobalChhath2025’ ट्रेंड करने लगा।


आस्था, पर्यावरण और जनजागरूकता

पिछले कुछ वर्षों से छठ पूजा को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की कोशिशें भी तेज़ हुई हैं।
कई शहरों में श्रद्धालु प्लास्टिक की बजाय मिट्टी के दीपक और प्राकृतिक प्रसाद सामग्री का उपयोग कर रहे हैं।
सामाजिक संगठनों ने घाटों पर “स्वच्छ छठ, हरित छठ” अभियान चलाया है, ताकि पूजा के बाद प्लास्टिक और कचरा नदियों में न फेंका जाए।

पटना नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया —

“हमने घाटों पर कचरा संग्रहण केंद्र बनाए हैं। यह केवल आस्था नहीं, पर्यावरण की जिम्मेदारी का पर्व भी है।”


अंत में: आस्था की रोशनी से नहाई सांझ

आज शाम जब लाखों व्रती महिलाएं जल में खड़ी होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगी, तो पूरा वातावरण “छठी मैया के जयकारों” से गूंज उठेगा।
दीपों की पंक्तियों से सजे घाट, लोकगीतों की ध्वनि और गंगाजल की ठंडक — सब मिलकर एक ऐसा दृश्य बनाएंगे जो श्रद्धा, शुचिता और भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।

कल प्रातः उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिन का यह पर्व संपन्न होगा, लेकिन इसकी भक्ति और सौहार्द की छवि अगले पूरे वर्ष लोगों के दिलों में बनी रहेगी।

छठ महापर्व भारत की उस अनूठी परंपरा का प्रतीक है, जिसमें प्रकृति, परिवार, स्त्री शक्ति और समाज की एकजुटता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
भले ही इस बार घाटों पर राजनीति की मौजूदगी बढ़ी हो, लेकिन छठ की आत्मा अभी भी अटूट है — श्रद्धा, त्याग और सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा में विश्वास से भरी हुई।

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