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देवघर पुलिस हिरासत में मौत पर एनएचआरसी सख्त, झारखंड सरकार से छह सप्ताह में मांगी रिपोर्ट

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नई दिल्ली/देवघर, 28 मई 2025 : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने झारखंड के देवघर जिले में एक व्यक्ति की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत के मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। आयोग ने इसे मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मामला माना है और झारखंड के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक (DGP) को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

यह मामला 21 मई 2025 का है जब देवघर के पलाजोरी थाना क्षेत्र से एक व्यक्ति को साइबर अपराध के सिलसिले में पूछताछ के लिए पुलिस थाने लाया गया था। पीड़ित के परिजनों का आरोप है कि पुलिस हिरासत में उसे प्रताड़ित किया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। परिजनों ने पुलिस पर शारीरिक यातना देने का आरोप लगाया है।

एनएचआरसी ने यह भी स्पष्ट किया कि पुलिस द्वारा हिरासत में हुई मौत की जानकारी 24 घंटे के भीतर आयोग को भेजना अनिवार्य है, लेकिन देवघर पुलिस ने इस दिशा-निर्देश का पालन नहीं किया। आयोग ने इस चूक पर भी झारखंड के प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा है।

22 मई की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पूछताछ के दौरान पीड़ित की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उसे देवघर सदर अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। हालांकि, अब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मजिस्ट्रियल जांच, और आंतरिक विभागीय जांच की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

पीड़ित के परिजनों का कहना है कि पुलिस ने हिरासत में मारपीट की, जिससे उसकी मौत हुई। दूसरी ओर, पुलिस ने अब तक इस आरोप पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।

स्थानीय सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मामले की निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग की है।

एनएचआरसी द्वारा झारखंड सरकार से मांगी गई रिपोर्ट में निम्न शामिल होने चाहिए:

  • मृत्यु का कारण

  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट

  • मजिस्ट्रेट जांच की स्थिति

  • हिरासत में मृत्यु की आंतरिक जांच रिपोर्ट

  • सूचना देने में हुई देरी का कारण और जिम्मेदार अधिकारी

भारत में पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों को लेकर लंबे समय से मानवाधिकार संगठनों द्वारा चिंता जताई जाती रही है। एनएचआरसी द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता, जवाबदेही और त्वरित जांच सुनिश्चित की जाए।

यदि यह मामला जांच में सत्य पाया गया, तो यह केवल व्यक्तिगत न्याय का प्रश्न नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और प्रणालीगत सुधार की माँग भी है।

ज़रूरत है कि ऐसे मामलों में निष्पक्षता, संवेदनशीलता और समयबद्ध कार्रवाई की जाए, ताकि नागरिकों का पुलिस और प्रशासन पर भरोसा कायम रह सके।

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