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बिहार की सियासत में नई करवट: पशुपति पारस ने ठुकराया RJD का ऑफर, अब बनाएंगे नया गठबंधन

BSP और AIMIM के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी, महागठबंधन के लिए बढ़ी मुश्किलें

पटना, 12 अक्टूबर 2025: बिहार की राजनीति में इस वक्त सबसे बड़ी हलचल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस के ताजा फैसले से मची हुई है। सूत्रों के अनुसार, पारस ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का ऑफर ठुकरा दिया है और अपनी पार्टी का विलय करने से इनकार कर दिया है।

राजद ने उन्हें पार्टी के साथ विलय के बदले तीन सीटों का प्रस्ताव दिया था, लेकिन पारस इसके लिए तैयार नहीं हुए। यह कदम ऐसे समय पर आया है जब राज्य में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) अपने सियासी समीकरण को साधने में जुटा हुआ है।


🔹 राजद का ‘विलय फॉर्मूला’ नहीं आया काम

राजद नेतृत्व ने पिछले कुछ हफ्तों से पशुपति पारस गुट को अपने पाले में लाने की कोशिशें तेज कर दी थीं। तेजस्वी यादव की रणनीति थी कि पासवान समुदाय में एकता दिखाकर दलित वोट बैंक को महागठबंधन के पक्ष में जोड़ा जाए। इसके लिए पारस को तीन सीटों का ऑफर दिया गया, साथ ही उन्हें राज्यसभा या केंद्र में किसी जिम्मेदारी का संकेत भी मिला था।

लेकिन सूत्रों का कहना है कि पारस इस “विलय” के बदले अपनी पार्टी की पहचान खोना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा कि,

“हम लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की विचारधारा पर चल रहे हैं। पार्टी का विलय करना हमारे कार्यकर्ताओं के साथ न्याय नहीं होगा।”

इस बयान के बाद राजद खेमे में निराशा साफ झलकने लगी है। पारस का यह फैसला महागठबंधन की दलित राजनीति की रणनीति पर पानी फेरता हुआ नजर आ रहा है।


🔹 BSP और AIMIM के साथ नए समीकरण की तैयारी

अब सूत्रों की मानें तो पशुपति पारस बहुजन समाज पार्टी (BSP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के साथ मिलकर नया चुनावी गठबंधन बना सकते हैं।
इस गठबंधन का उद्देश्य दलित और मुस्लिम मतदाताओं को एक साझा मंच पर लाना बताया जा रहा है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, यह नया मोर्चा उन इलाकों में तीसरा विकल्प बन सकता है, जहां पारस गुट का दलित आधार और ओवैसी की मुस्लिम पकड़ पहले से मौजूद है।
खासकर सीवान, खगड़िया, समस्तीपुर, बेगूसराय, अररिया और कटिहार जैसे जिलों में यह गठबंधन महागठबंधन और एनडीए—दोनों के लिए चुनौती बन सकता है।

एक वरिष्ठ विश्लेषक के शब्दों में —

“अगर BSP, AIMIM और LJP (रामविलास) एक साथ आते हैं, तो यह ‘दलित-मुस्लिम समीकरण’ बिहार की राजनीति में एक नया पॉलिटिकल ब्लॉक खड़ा कर सकता है। यह न तो NDA के लिए आसान होगा, न RJD के लिए।”


🔹 सूरजभान सिंह का ‘साइड शिफ्ट’ और वीणा देवी को राजद टिकट

इधर, इस सियासी उथल-पुथल के बीच बाहुबली नेता सूरजभान सिंह ने पारस का साथ छोड़ दिया है। बताया जा रहा है कि उनकी पत्नी और पूर्व सांसद वीणा देवी को राजद ने मोकामा सीट से टिकट देने का फैसला किया है। वे यहां से कुख्यात नेता अनंत सिंह के खिलाफ मैदान में उतरेंगी।
साथ ही, सूरजभान के भाई और पूर्व सांसद चंदन सिंह को भी राजद से टिकट मिलने की संभावना जताई जा रही है।

राजनीतिक गलियारों में इसे राजद की “डैमेज कंट्रोल” रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। तेजस्वी यादव ने पासवान समाज के प्रभावशाली चेहरों को अपने पाले में लाने के लिए यह ‘फैमिली कनेक्शन’ कार्ड खेला है।


🔹 LJP में ‘पासवान परिवार’ की अंदरूनी खींचतान

लोक जनशक्ति पार्टी, जो कभी बिहार की राजनीति में पासवान समुदाय की सबसे मजबूत आवाज मानी जाती थी, अब दो गुटों में बंटी हुई है —

  • एक तरफ चिराग पासवान की LJP (रामविलास)
  • दूसरी तरफ पशुपति कुमार पारस की LJP (पारस गुट)

2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने NDA गठबंधन के तहत बेहतर प्रदर्शन किया था। लेकिन रामविलास पासवान के निधन (2020) के बाद से पार्टी में खींचतान बढ़ी। अब चिराग पासवान पूरी तरह NDA के साथ खड़े हैं, जबकि पारस खुद को एक “स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति” के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पारस का यह नया कदम राज्य की चुनावी दिशा को आंशिक रूप से बदल सकता है, क्योंकि उनका प्रभाव सीमित होते हुए भी कुछ खास इलाकों में निर्णायक साबित हो सकता है।


महागठबंधन के लिए चुनौती, NDA के लिए राहत

महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) के लिए यह घटनाक्रम एक झटका माना जा रहा है। तेजस्वी यादव का लक्ष्य था कि दलित और पिछड़े वर्गों को एक मंच पर लाकर ‘सोशल जस्टिस प्लस इकोनॉमिक जस्टिस’ का नया मॉडल पेश किया जाए।लेकिन पारस के अलग रास्ता चुनने से यह रणनीति कमजोर पड़ती दिख रही है।

दूसरी ओर, यह कदम NDA के लिए राहत की तरह देखा जा रहा है। चिराग पासवान पहले से ही NDA के मजबूत सहयोगी हैं। ऐसे में दलित मतों का बिखराव महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा —

“राजनीति में हर वोट मायने रखता है। पारस का अलग रास्ता लेना RJD के लिए सिरदर्द है और NDA के लिए राहत।”


 2025 का चुनाव और बदलते समीकरण

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की राजनीति में लगातार नए गठबंधन, नाराज़गी और सियासी सौदेबाज़ी देखने को मिल रही है। जहां एक ओर JDU और BJP NDA के रूप में तालमेल साध रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ RJD, कांग्रेस, और वाम दल INDIA ब्लॉक के तहत चुनावी रणनीति बना रहे हैं।

अब पारस, BSP और AIMIM का संभावित गठबंधन इस जंग को त्रिकोणीय बना सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह मोर्चा 5 से 7 प्रतिशत वोट शेयर भी हासिल कर लेता है, तो कई सीटों पर परिणाम प्रभावित हो सकते हैं — खासकर उन सीटों पर जहां जीत का अंतर बेहद कम रहता है।

फिलहाल पशुपति पारस ने इस गठबंधन को लेकर आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन आने वाले एक-दो हफ्तों में इस पर औपचारिक ऐलान हो सकता है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह फैसला केवल सीटों का जोड़ नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्तित्व की नई खोज है। अब देखना यह होगा कि क्या यह नया मोर्चा बिहार की सियासत में “तीसरा विकल्प” बन पाएगा या फिर यह प्रयोग भी पिछले गठबंधनों की तरह टिक नहीं पाएगा।

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