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उत्तराखण्ड से जल संरक्षण की नई क्रांति, गैरसैंण से शुरू हुआ भूजल पुनर्भरण का नया अध्याय

गैरसैंण से शुरू हुई “डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना”, भूजल स्तर सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम

गैरसैंण/देहरादून: उत्तराखण्ड में जल संकट की समस्या से निपटने के लिए मंगलवार को एक ऐतिहासिक पहल का शुभारंभ हुआ। भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय, जौलीग्रांट के सहयोग से “डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना” का उद्घाटन किया। इस योजना को राज्य में सतत जल प्रबंधन और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष का संदेश

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि राज्य सरकार तकनीकी नवाचारों को अपनाकर जल संकट दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने इसे जल संरक्षण के क्षेत्र में एक “अच्छा और अभिनव प्रयास” करार दिया।
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने इस पहल को उत्तराखण्ड की जीवनरेखा से जोड़ा। उन्होंने कहा—

“भूजल पुनर्भरण केवल पर्यावरणीय आवश्यकता नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की जल सुरक्षा का आधार है।”

योजना की विशेषता

इस परियोजना के तहत उपचारित वर्षा जल को सीधे निष्क्रिय हैंडपंपों में इंजेक्ट किया जाएगा, ताकि भूजल स्तर बढ़े और सूखे हैंडपंप फिर से क्रियाशील हो सकें। यह तकनीक स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों द्वारा विकसित की गई है।

8 जुलाई 2025 को अंतर्राष्ट्रीय संसदीय अध्ययन, शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, भराड़ीसैंण और विश्वविद्यालय के बीच एक MoU हुआ था। इसके आधार पर योजना के पहले चरण में गैरसैंण और चौखुटिया विकासखंडों के 20 चयनित हैंडपंपों को पुनर्भरण कर चालू किया जाएगा।

तकनीकी टीम की प्रस्तुति

विश्वविद्यालय की तकनीकी टीम — प्रोफेसर एच.पी. उनियाल, नितेश कौशिक, सुजीत थपलियाल, राजकुमार वर्मा, अतुल उनियाल, अभिषेक उनियाल और शक्ति भट्ट — ने कार्यक्रम में इस प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी दी। टीम ने समझाया कि किस प्रकार वर्षा जल को फ़िल्टर और ट्रीट कर सीधे भूजल भंडार में इंजेक्ट किया जाता है। इस तकनीक से सूखे हैंडपंप दोबारा जीवंत हो जाते हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या का स्थायी समाधान संभव हो सकेगा।

डॉक्यूमेंट्री और फोटो संग्रह का विमोचन

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी प्रदर्शित की गई, जिसमें गैरसैंण क्षेत्र के गांवों में इस तकनीक को लागू करने के शुरुआती नतीजों को दिखाया गया।
साथ ही “वाइब्रेंट बर्ड ऑफ कोटद्वार” नामक फोटो संग्रह का विमोचन भी किया गया, जिसने कार्यक्रम को सांस्कृतिक और पर्यावरणीय आयाम से और समृद्ध किया।

व्यापक उपस्थिति और राजनीतिक सहमति

इस अवसर पर राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री गणेश जोशी, विभिन्न विधायक, सचिव और विधानसभा सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। कार्यक्रम में व्यापक स्तर पर जनप्रतिनिधियों और तकनीकी विशेषज्ञों की उपस्थिति ने यह संकेत दिया कि जल संरक्षण अब केवल एक विभागीय कार्यक्रम नहीं, बल्कि राज्यव्यापी आंदोलन बन चुका है।

उत्तराखण्ड, जो अपने पर्वतीय भूगोल और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है, लंबे समय से जल संकट की चुनौती झेल रहा है। ऐसे में “डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना” एक ऐसा प्रयोग है जो न केवल स्थानीय जरूरतें पूरी करेगा, बल्कि देशभर के पहाड़ी और जल-संकटग्रस्त राज्यों के लिए मॉडल साबित हो सकता है।

गैरसैंण से शुरू हुई यह यात्रा आने वाले समय में उत्तराखण्ड की जल सुरक्षा, पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास की दिशा में ऐतिहासिक अध्याय लिखेगी।

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