
नई दिल्ली: संसद के भीतर शुरू हुई बहस अब सड़कों पर उतर आई है। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर जारी विवाद मंगलवार को सियासी टकराव का रूप लेने जा रहा है। विपक्षी दलों ने आज राजधानी दिल्ली में मेगा-मार्च का ऐलान किया है। सुबह करीब 11:30 बजे यह मार्च संसद से चुनाव आयोग के दफ्तर की ओर निकलेगा।
इसमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई विपक्षी सांसद शामिल होंगे। विपक्ष का आरोप है कि एसआईआर प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची में हेरफेर की जा रही है और इससे आगामी आम चुनावों में ‘वोट चोरी’ की संभावना बढ़ रही है।
क्या है एसआईआर विवाद?
मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चुनाव आयोग की एक मानक प्रक्रिया है, जिसके तहत सूची में नामों को अपडेट, जोड़ने या हटाने का काम किया जाता है। विपक्ष का आरोप है कि इस बार एसआईआर को “राजनीतिक हथियार” की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
राहुल गांधी ने हाल ही में कहा था—
“मतदाता सूची में लाखों नामों को बिना पर्याप्त कारण हटाया जा रहा है। यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है और लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।”
कांग्रेस का दावा है कि कई राज्यों से ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां विपक्षी दलों के वोट बैंक वाले इलाकों में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए।
आज का कार्यक्रम और सुरक्षा इंतजाम
सूत्रों के मुताबिक, मार्च सुबह 11:30 बजे संसद भवन से शुरू होगा और लगभग 12 बजे तक चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचेगा। चुनाव आयोग ने विपक्षी प्रतिनिधिमंडल को 12 बजे का समय दिया है, ताकि वे अपनी शिकायत और दस्तावेज सौंप सकें।
दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। संभावित ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए संसद मार्ग और आस-पास के इलाकों में ट्रैफिक डायवर्जन किया गया है। पुलिस का कहना है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति है, लेकिन कानून-व्यवस्था भंग करने की किसी भी कोशिश पर सख्त कार्रवाई होगी।
चुनाव आयोग का रुख
चुनाव आयोग ने अब तक इस मामले में किसी तरह की आधिकारिक अनियमितता को स्वीकार नहीं किया है। आयोग का कहना है कि एसआईआर पूरी तरह पारदर्शी और नियमों के तहत किया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार, मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक नियमित प्रक्रिया है, जिसमें जनता को शिकायत दर्ज कराने और सुधार करवाने का पूरा मौका दिया जाता है।
सियासी मायने
यह विवाद ऐसे समय में उभरा है, जब लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है। मतदाता सूची का मुद्दा चुनावी समीकरणों को सीधे प्रभावित करता है। विपक्ष इसे “लोकतंत्र की रक्षा” के मुद्दे के रूप में पेश कर रहा है, जबकि सत्ता पक्ष का कहना है कि यह केवल “राजनीतिक बयानबाजी” है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि—
- अगर मतदाता सूची में हेरफेर के आरोप जनता के बीच असर डालते हैं, तो यह चुनावी माहौल को गरमा सकता है।
- सत्ता पक्ष को भी पारदर्शिता साबित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ेंगे।
आगे की राह
मार्च के बाद विपक्षी दल चुनाव आयोग से अपनी शिकायत का लिखित जवाब मांग सकते हैं। अगर आयोग कोई ठोस आश्वासन नहीं देता, तो विपक्ष इस मुद्दे को राज्यों में भी आंदोलन के रूप में ले जा सकता है।
राजधानी में आज का दिन राजनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है। संसद के भीतर की बहस, सड़कों पर मार्च और चुनाव आयोग के साथ सीधी बातचीत—ये तीनों घटनाएं आने वाले दिनों के राजनीतिक माहौल की दिशा तय कर सकती हैं।