
मुंबई, 1 नवंबर: महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को एक दुर्लभ नज़ारा देखने को मिला, जब राज्य के दो धुर विरोधी राजनीतिक घराने—ठाकरे और पवार—एक ही मंच पर नज़र आए। मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं और ‘चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता’ पर सवाल उठाते हुए महा विकास आघाड़ी (एमवीए) ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के साथ मिलकर मुंबई में ‘सत्याचा मोर्चा’ निकाला।
इस संयुक्त प्रदर्शन में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस के नेताओं ने हिस्सा लिया। खास बात यह रही कि इस बार राज ठाकरे की मनसे भी इस मंच पर दिखाई दी—जो कभी उद्धव ठाकरे की सबसे प्रखर आलोचक रही है।
राजनीति के मंच पर ‘ठाकरे बनाम ठाकरे’ से ‘ठाकरे संग ठाकरे’ तक
मुंबई की सड़कों पर शनिवार को सियासी एकता का वह दृश्य देखने को मिला, जो कुछ वर्ष पहले तक अकल्पनीय लगता था। ‘सत्याचा मोर्चा’ की अगुवाई में उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और शरद पवार एक ही मंच पर पहुंचे।
तीनों नेताओं ने निर्वाचन आयोग पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि “राज्य में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर की जा रही है” और यह लोकतंत्र के मूल ढांचे के साथ “छेड़छाड़” है।
उद्धव ठाकरे ने कहा,
“अगर मतदाता सूची में ही गड़बड़ी होगी, तो जनता की आवाज़ कैसे सही मायने में संसद और विधानसभाओं तक पहुंचेगी? हमें लोकतंत्र बचाने की लड़ाई लड़नी है, किसी एक पार्टी की नहीं।”
राज ठाकरे, जो आमतौर पर स्वतंत्र और सरकार-विरोधी तेवरों के लिए जाने जाते हैं, ने कहा कि “यह मुद्दा राजनीतिक दलों से ऊपर है। जब जनता के वोट का अधिकार ही खतरे में हो, तब एकजुट होना जरूरी है।”
शरद पवार का निशाना केंद्र पर
एनसीपी (शरद पवार गुट) के सुप्रीमो शरद पवार ने अपने भाषण में केंद्र सरकार पर भी परोक्ष रूप से निशाना साधा। उन्होंने कहा कि “चुनाव आयोग की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। आयोग को यह दिखाना होगा कि वह किसी राजनीतिक दबाव में नहीं है।”
पवार ने आगे कहा,
“आज यह आंदोलन सिर्फ महाराष्ट्र का नहीं, पूरे देश का सवाल है। अगर मतदाता सूची में धांधली हुई, तो इसका असर देशभर की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पड़ेगा।”
मोर्चे में भारी भीड़, प्रशासन सतर्क
‘सत्याचा मोर्चा’ सुबह 11 बजे दादर के शिवाजी पार्क से निकला और आजाद मैदान तक पहुंचा।
मोर्चे में भारी भीड़ देखने को मिली—एमवीए के झंडों के साथ मनसे के केसरिया ध्वज भी लहराते दिखे।
मुंबई पुलिस ने इस मौके पर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए थे। पूरे रास्ते में ड्रोन कैमरों से निगरानी, 2000 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती, और ट्रैफिक रूट डायवर्जन की व्यवस्था की गई थी।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, मार्च शांतिपूर्ण रहा, हालांकि कुछ इलाकों में कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच हल्की नोकझोंक की खबरें भी सामने आईं।
चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग
एमवीए नेताओं ने निर्वाचन आयोग से मतदाता सूची की संपूर्ण समीक्षा और स्वतंत्र जांच की मांग की है।
कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा,
“कई निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसे नाम दर्ज हैं जो या तो वर्षों पहले यहां से जा चुके हैं या अब जीवित ही नहीं हैं। वहीं, हजारों वास्तविक मतदाताओं के नाम सूची से गायब हैं।”
पटोले ने आरोप लगाया कि “यह सुनियोजित तरीके से मतदाता संतुलन बिगाड़ने की साजिश है।”
राजनीतिक संकेत: एक नए समीकरण की झलक?
राज ठाकरे का इस मंच पर आना महाराष्ट्र की राजनीति में नया संकेत माना जा रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि मनसे का एमवीए के साथ यह कदम आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक ‘एंटी-बीजेपी ब्लॉक’ के आकार लेने की दिशा में इशारा करता है।
राज ठाकरे ने अपने भाषण में भले ही किसी दल का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका यह कथन काफी कुछ कह गया—
“अगर जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए हमें पुराने मतभेद भुलाने पड़ें, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। यह समय व्यक्तिगत राजनीति का नहीं, महाराष्ट्र की अस्मिता का है।”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, उद्धव और राज ठाकरे का एक साथ मंच साझा करना, एमवीए की रणनीति में नया जोश भर सकता है।
बीजेपी का पलटवार: “राजनीतिक स्टंट” बताया
दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस मोर्चे को “राजनीतिक ड्रामा” बताया है।
भाजपा प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने कहा,
“जब चुनाव नज़दीक आते हैं तो एमवीए जैसे गठबंधन इस तरह के मुद्दे उठाकर जनता को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और उस पर सवाल उठाना लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने जैसा है।”
भाजपा के अनुसार, यह मार्च जनता की असल समस्याओं से ध्यान भटकाने का प्रयास है।
लोकतंत्र बनाम राजनीति की लड़ाई
हालांकि एमवीए और मनसे के नेताओं ने इस आंदोलन को पूरी तरह “लोकतांत्रिक और जनहित” बताते हुए स्पष्ट किया कि
“यह किसी दल या सरकार के खिलाफ नहीं, बल्कि लोकतंत्र की शुचिता के लिए संघर्ष है।”
आंदोलन के अंत में संयुक्त प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें मांग की गई कि निर्वाचन आयोग तत्काल महाराष्ट्र की सभी मतदाता सूचियों का स्वतंत्र ऑडिट कराए और आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पारदर्शिता सुनिश्चित करे।
महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल
‘सत्याचा मोर्चा’ सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की बदलती सियासी दिशा की झलक भी देता है।
जहां उद्धव और राज ठाकरे जैसे दो प्रतिद्वंदी नेता एक साझा मंच पर दिखाई दिए, वहीं शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता ने इसे राष्ट्रीय लोकतंत्र की चिंता से जोड़ दिया।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि आने वाले महीनों में यह एकजुटता राज्य की चुनावी रणनीति को पूरी तरह बदल सकती है। मतदाता सूची की पारदर्शिता के बहाने यह आंदोलन एक सियासी पुनर्संरचना का संकेत दे रहा है, जिसकी गूंज न सिर्फ मुंबई, बल्कि दिल्ली तक सुनाई दे सकती है।



