
नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज एक महत्वपूर्ण आदेश सुनाने जा रहा है। यह मामला न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से जुड़ा है, बल्कि धार्मिक और कानूनी दृष्टि से भी बेहद अहम माना जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ तीन प्रमुख बिंदुओं पर अपना अंतरिम आदेश देगी, जिन्हें याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी।
कौन-कौन से मुद्दे हैं विवादित?
पीठ ने 22 मई को हुई अंतिम सुनवाई के बाद अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा था। सुनवाई के दौरान तीन बड़े मुद्दे सामने आए—
- अदालतों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति।
- उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों की स्थिति।
- विलेख (डीड) के आधार पर घोषित वक्फ संपत्तियों का प्रावधान।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन प्रावधानों से वक्फ संपत्तियों पर मौलिक अधिकार प्रभावित होंगे और यह संविधान की भावना के खिलाफ है।
अब तक की कार्यवाही
- सुप्रीम कोर्ट की 15 सितंबर की वाद सूची में यह मामला सूचीबद्ध है।
- पीठ ने अंतरिम आदेश से पहले तीन दिन तक याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की दलीलें सुनीं।
- केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संशोधन अधिनियम का बचाव किया और कहा कि यह कानून पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए लाया गया है।
- याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि इस संशोधन से वक्फ संपत्तियों पर समुदाय के अधिकार कमजोर होंगे।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 क्या है?
वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन भारत में लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। 1995 के वक्फ अधिनियम के तहत वक्फ बोर्ड बनाए गए थे। 2025 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया और दावा किया कि—
- वक्फ संपत्तियों की डिजिटल मैपिंग और रजिस्ट्री होगी।
- विवादित संपत्तियों के मामलों को तेजी से निपटाने का प्रावधान किया गया।
- अवैध कब्जों पर कार्रवाई को और कड़ा किया गया।
हालांकि, विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस संशोधन से वक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता पर आंच आती है।
संवैधानिक बहस
कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला सीधे तौर पर अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 से जुड़ा है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार देते हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अगर अदालत या प्रशासन वक्फ घोषित संपत्ति को “गैर-अधिसूचित” कर सकता है, तो यह समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
किसने क्या कहा?
- याचिकाकर्ता पक्ष: यह अधिनियम असंवैधानिक है, क्योंकि यह वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता खत्म कर देगा।
- केंद्र सरकार: नया कानून केवल पारदर्शिता और आधुनिक तकनीक के जरिए प्रबंधन सुधारने के लिए है। इससे किसी समुदाय के अधिकारों का हनन नहीं होगा।
क्यों अहम है यह फैसला?
भारत में वक्फ संपत्तियां लगभग 6 लाख हेक्टेयर जमीन पर फैली हुई हैं। इन संपत्तियों का मूल्य खरबों रुपये आंका जाता है। शिक्षा, धर्मार्थ कार्यों और समुदाय के कल्याण के लिए इनका उपयोग किया जाता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अहम है।
राजनीतिक पहलू
वक्फ संपत्तियों से जुड़े मुद्दे हमेशा राजनीति के केंद्र में रहे हैं। 2025 में संशोधन अधिनियम लाए जाने के बाद से कई विपक्षी दल इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर प्रहार बता रहे हैं। दूसरी ओर, केंद्र का कहना है कि यह केवल “क्लीन-अप एक्ट” है, जिससे गड़बड़ियों और अवैध कब्जों पर रोक लगेगी।
आज सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश आने के बाद यह मामला और गहराई से सुना जाएगा। संभव है कि अदालत इस पर विस्तृत सुनवाई के लिए बड़ी संवैधानिक पीठ गठित करे.



