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डिंपल यादव पर बयान देकर घिरे मौलाना साजिद, बोले – “मैंने क्या गलत कहा?”

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नई दिल्ली | राजनीतिक संवाददाता: समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव पर की गई टिप्पणी को लेकर घिरे मौलाना साजिद रशीदी अब सफाई की मुद्रा में हैं। मौलाना ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने कुछ भी अमर्यादित नहीं कहा, बल्कि मुसलमान होने की वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

गौरतलब है कि बीते दिनों एक वायरल वीडियो में मौलाना साजिद ने सपा सांसद डिंपल यादव के पहनावे को लेकर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद सियासी पारा चढ़ गया। संसद से लेकर सड़क तक एनडीए सांसदों ने इसका विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी को घेरा, और मौलाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने की भी पुष्टि हुई है।

🗣️ “कौन सी गलती कर दी मैंने?” – मौलाना साजिद की सफाई

अपने बयान पर उठे विवाद के बाद मौलाना साजिद रशीदी ने कहा:

“मुझे बताया गया है कि मेरे खिलाफ एफआईआर हुई है। लेकिन मैंने ऐसा क्या कह दिया? सिर्फ इसलिए कि मैं मुसलमान हूं, तो मेरे खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं? संसद में मेरे खिलाफ नारेबाजी हो रही है।”

उन्होंने आगे कहा:

“मैंने किसी का नाम नहीं लिया। एक फोटो दिखाया, जिसमें दो महिलाएं थीं – एक इकरा हसन, जो मुस्लिम लिबास में थीं, सिर ढका हुआ था। और दूसरी मोहतरमा की पीठ की फोटो सबने देखी… लोग खुद अंदाजा लगा लें।”

📌 राजनीति गरमाई: मस्जिद में सपा बैठक पर भी घिरी पार्टी

इस बयान से पहले भी भाजपा ने दिल्ली की एक मस्जिद में हुई समाजवादी पार्टी की बैठक पर सवाल उठाए थे, जिसमें अखिलेश यादव समेत पार्टी के सांसद शामिल हुए थे। भाजपा नेताओं ने सपा को “नमाज़वादी पार्टी” तक कह डाला।

इसके जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा कि:

“भाजपा का एजेंडा समाज को बांटना है। जब वे खुद मंदिरों और मठों से राजनीति करते हैं, तो मस्जिद में बैठक पर आपत्ति क्यों?”

🔴 महिला सम्मान पर गरम सियासत

मौलाना के बयान को महिला विरोधी बताते हुए संसद भवन के बाहर एनडीए सांसदों ने हाथों में तख्तियां लेकर प्रदर्शन किया।
नारे लगे —
“महिला विरोधी मानसिकता नहीं चलेगी!”
“डिंपल जी का अपमान बंद करो!”

इस विवाद ने देशभर में एक नई बहस छेड़ दी है — धार्मिक स्थलों की राजनीति, महिलाओं के पहनावे पर टिप्पणी की सीमाएं, और राजनीतिक एजेंडों में धार्मिक भावनाओं का प्रयोग।


यह मामला अब न सिर्फ राजनीतिक गरमाहट बढ़ा रहा है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी धर्म, लिंग और सार्वजनिक व्यवहार की सीमाओं पर सवाल खड़े कर रहा है।

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