
नई दिल्ली, 14 अगस्त 2025 – उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को एक लंबे समय से चल रहे वैवाहिक विवाद में बड़ा फैसला सुनाते हुए दंपति की शादी को समाप्त कर दिया और पति को पत्नी को 1.25 करोड़ रुपये स्थायी गुजारा भत्ते के रूप में देने का निर्देश दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला “पूरी तरह से टूट चुकी शादी” का है और अब दोनों के बीच संबंध बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं है।
15 साल से अलग, दूसरी शादी भी कर ली
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि दंपति 2010 से अलग रह रहे थे और पति ने मार्च 2017 में दूसरी शादी भी कर ली थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा,
“हम दोनों पक्षों के बीच कानूनी संबंध जारी रखने का कोई औचित्य नहीं देखते। शादी पूरी तरह से टूट चुकी है।”
हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
यह मामला मद्रास हाईकोर्ट के अगस्त 2018 के आदेश से जुड़ा था, जिसमें महिला की याचिका को स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा 2016 में दिए गए तलाक के फैसले को रद्द कर दिया गया था। पति ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।
सुलह की कोई संभावना नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लगभग 15 वर्षों से अलग रहने के बाद, दंपति के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है। न तो किसी पक्ष ने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की और न ही वैवाहिक संबंध का कोई निशान बचा है।
संविधान की विशेष शक्तियों का इस्तेमाल
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए विवाह को समाप्त करने का आदेश दिया। यह प्रावधान अदालत को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने के लिए विशेष कदम उठाने का अधिकार देता है।
पत्नी और बेटे को स्थायी गुजारा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी नोट किया कि कानूनी लड़ाई के दौरान पति ने पत्नी को वित्तीय सहायता नहीं दी थी। इसलिए अदालत ने महिला और उसके बेटे को 1.25 करोड़ रुपये की एकमुश्त राशि स्थायी गुजारा भत्ते के रूप में देने का आदेश दिया।
“हम अपीलकर्ता को निर्देश देते हैं कि 1.25 करोड़ रुपये का भुगतान स्थायी गुजारा भत्ते के रूप में किया जाए और पत्नी के अन्य सभी दावे पूरे माने जाएंगे।” – सुप्रीम कोर्ट
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला लंबे समय तक चले वैवाहिक विवादों में एक नजीर पेश करता है। इसमें अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि यदि विवाह केवल नाम मात्र का रह जाए और पक्षकार वर्षों से अलग रह रहे हों, तो न्यायालय संविधान की विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करके विवाह को समाप्त कर सकता है।
संदेश – त्वरित न्याय की आवश्यकता
यह मामला इस बात को भी उजागर करता है कि लंबी कानूनी लड़ाइयों से न केवल समय और संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि इससे मानसिक और भावनात्मक तनाव भी बढ़ता है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम ऐसे मामलों में शीघ्र समाधान की दिशा में एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।