
जैसलमेर/नई दिल्ली: ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद भारतीय थलसेना की यह पहली आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस 23-25 अक्टूबर की अवधि में जैसलमेर में आयोजित की जा रही है — रणनीतिक लिहाज से यह बैठक अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि इसका आयोजन अंतरराष्ट्रीय सीमा के बेहद निकट स्थित स्थानीय कमांड क्षेत्र में किया जा रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कार्यक्रम में शामिल होंगे और आर्मी कमांडर्स को संबोधित करेंगे। कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व आर्मी चीफ जनरल उपेंद्र द्विवेदी कर रहे हैं और सभी सातों कमांड के आर्मी कमांडर्स, सेना की वरिष्ठ पदस्थियां एवं सीनियर स्टाफ अफ़सर उपस्थित रहेंगे।
मुख्य एजेंडा — ऑपरेशनल रेडीनेस, आधुनिकीकरण और दो-फ्रंट चुनौती
इस कॉन्फ्रेंस का प्रमुख फोकस ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद की तैयारियों, भारतीय सेना की ऑपरेशनल रेडीनेस, बलों का आधुनिकीकरण तथा भविष्य की रणनीति होगा। बैठक में निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष चर्चा होने की उम्मीद है:
- दो-फ्रंट (Two-Front) पर एक साथ कार्रवाई की क्षमता और उसकी तैनाती-रणनीति,
- नयी बटालियनों (उल्लेखनीय: भैरो और अश्नी जैसी नई इकाइयों) की रोल-आउट रणनीति तथा उनके ऑपरेशनल इंटीग्रेशन,
- ड्रोन-क्षमताओं, मिसाइल शस्त्र प्रणालियों और पैदल सेना (इन्फैंट्री) के आधुनिककरण पर तीव्र चर्चा।
बैठक का यह सेट-अप यह संकेत देता है कि सेना उच्च राजनीतिक-सैन्य नेतृत्व के साथ फील्ड-लेवल उपलब्धियों और सुधारों का आकलन कर रही है, खासकर उन Lessons-learned पर जो हालिया ऑपरेशनों से मिली हैं।
रक्षा मंत्री का संदेश और ऑपरेशन ‘सिंदूर’ का संदर्भ
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जैसलमेर में अरमडा/सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि ऑपरेशन ‘सिंदूर’ ने दुश्मन को “सोचने पर मजबूर” कर दिया है और अगर कोई भी मिसअॅडवेंचर करता है तो उसे और कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा — इस तर्ज़ पर उन्होंने जवानों को हौसला भी दिया। रक्षा मंत्री का यह बयान हालिया सैन्य कार्रवाईयों और उसकी उपलब्धियों के सन्दर्भ में दिया गया माना जा रहा है।
ऑपरेशन-लेसन और भविष्य की क्षमताएँ
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए सेना अपने त्वरित प्रतिउत्तर (rapid response), आर्टिलरी-इंटिग्रेशन, लॉजिस्टिक्स और फील्ड कमांड-कंट्रोल प्रणाली की मजबूती पर विशेष काम कर रही है। साथ ही, कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में साइबर-सुरक्षा, कम्युनिकेशन-रिज़िलिएंस (जैसे ‘संबhav’ जैसे इन-हाउस सिस्टम का उपयोग) और सेंसर्स-टू-शूटर कवरेज पर भी समीक्षा होने की संभावना है — ताकि भविष्य के आपरेशनों में सूचना-सुपीरियोरिटी बनी रहे।
सैन्य-रणनीति में समन्वय: सशस्त्र-बलों और नागरिक नेतृत्व
कमान्डर्स कॉन्फ्रेंस पर नागरिक नेतृत्व (रक्षा मंत्रालय) की मौजूदगी यह दर्शाती है कि सैन्य रणनीति और रक्षा नीति के बीच समन्वय को और मजबूत किया जा रहा है। बैठक में लॉन्ग-टर्म कैपेबिलिटी बुनियादी ढांचे, एयर-लैंड इंटीग्रेशन, भविष्य की बटालियन-स्टैंडर्डाइज़ेशन और स्थानीय फॉरवर्ड-लॉजिस्टिक्स पर भी चर्चा होगी — ताकि सीमाओं के नजदीकी क्षेत्रों में त्वरित तैनाती और टिकाऊ आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
सीमा-क्षेत्र में आयोजित होने का संदेश
जैसलमेर जैसे अंतरराष्ट्रीय सीमा-नज़दीकी स्थान पर यह सम्मेलन आयोजित करने का नेक उद्देश्य न केवल फील्ड-होल्डिंग और जमीनी चुनौतियों का आकलन करना है, बल्कि यह संदेशात्मक भी है — राष्ट्र तथा किसी भी संभावित प्रतिद्वंद्वी को यह बताने के लिए कि सुरक्षा-तैयारी और तैनाती-क्षमता उच्च स्तर पर है। इससे मोरल-बूस्ट भी मिलता है और स्थानीय कमान को सीधे केंद्र-स्तर के निर्देश व संसाधन भी प्राप्त होते हैं।
आशंकाएँ और चुनौती — लॉजिस्टिक्स, मैनपावर और टेक्नोलॉजी
हालाँकि सम्मेलन में क्षमताओं बढ़ाने के वादे होंगे, पर ज़मीनी चुनौतियाँ बचती हैं —
- रेगिस्तानी तथा सीमांत इलाकों में लॉजिस्टिक्स और सप्लाई-लाइन की पुष्टि,
- आधुनिकीकृत इकाइयों के लिए प्रशिक्षित मानव-स्रोत और व्यावहारिक SOPs का समन्वय,
- और ड्रोन/इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर के खिलाफ सतत निवेश।
कमांडर्स कॉन्फ्रेंस इन चुनौतियों का एक मंच है जहाँ नियमित-रूप से पॉलिसी-रिफाइनमेंट और संसाधन-प्राथमिकताएँ तय की जाती हैं।
ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद आयोजित यह आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस न सिर्फ़ हालिया कार्यवाहियों का आकलन करेगी, बल्कि भारत-विशेषकर सीमांत क्षेत्रों में भविष्य की रक्षा-रणनीति, तैनाती-क्षमता और आधुनिकीकरण की रोडमैपिंग में भी महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी। राष्ट्रवादी ढांचों के भीतर यह बैठक सामरिक आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ-साथ वास्तविक शक्ति बनाम नीतिगत निर्णयों के बीच संतुलन स्थापित करने का अवसर भी देती है। सभी आंखें जैसलमेर से उठने वाले संकेतों पर टिकी हैं — जो आने वाले महीनों में सुरक्षा-प्राथमिकताओं और नीतिगत फैसलों को आकार देंगी।



