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महाराणा प्रताप की राष्ट्रभक्ति उच्चतम बलिदान का प्रतीक: डॉ. सुमेर चंद रवि

देहरादून : वीरता, स्वाभिमान और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक महाराणा प्रताप की 486वीं जयंती के अवसर पर महाराणा प्रताप विचार मंच के तत्वावधान में एक गौरवपूर्ण समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का नेतृत्व मंच के संयोजक एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता  रतन सिंह चौहान ने किया। यह आयोजन न केवल ऐतिहासिक गौरव को स्मरण करने का माध्यम बना, बल्कि राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना को भी जन-जन तक पहुंचाया।

समारोह में हठ योगी महाराज ने महाराणा प्रताप के संघर्ष और त्याग को स्मरण करते हुए कहा कि, “जिस प्रकार उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध अदम्य साहस और आत्मसम्मान के साथ संघर्ष किया, वह आज के युवाओं के लिए राष्ट्रभक्ति की अनुपम प्रेरणा है।”

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता रहे डॉ. सुमेर चंद रवि, जो उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य तथा प्रख्यात शिक्षाविद हैं। उन्होंने कहा:

“महाराणा प्रताप का जीवन न केवल वीरता की मिसाल है, बल्कि राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्याग देने की संकल्प भावना का भी प्रतीक है। उनकी राष्ट्रभक्ति किसी उच्चतम बलिदान से कम नहीं, जिसे भारत सदियों तक याद करता रहेगा।”

डॉ. रवि के संबोधन के दौरान सभागार “भारत माता की जय, महाराणा प्रताप अमर रहें” जैसे नारों से गूंज उठा, और देशभक्ति की भावना चरम पर पहुंच गई।

इस अवसर पर उच्च शिक्षा उन्नयन समिति के सदस्य डॉ. देवेंद्र भसीन ने भी सभा को संबोधित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप का जीवन दर्शन आज की नई पीढ़ी के लिए नैतिक मूल्यों और आत्मगौरव का प्रतीक है।

कार्यक्रम में कड़वा पानी आश्रम के संतगण, क्षेत्रीय पार्षदगण, तथा सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र के गणमान्य नागरिकों ने भाग लिया। मंच के अध्यक्ष श्री रतन सिंह चौहान एवं उनकी समर्पित टीम को सफल आयोजन के लिए विशिष्ट रूप से सम्मानित किया गया।

समारोह के अंत में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया गया।  चौहान ने इस पहल को “युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित कर राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास” बताया।

यह कार्यक्रम महाराणा प्रताप की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। यह आयोजन न केवल इतिहास को जीवित रखने का माध्यम है, बल्कि समाज को राष्ट्रीय चेतना और गौरव से जोड़ने की प्रेरणा भी है।

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