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करूर भगदड़ कांड: मद्रास हाई कोर्ट ने TVK सभाओं पर रोक संबंधी सुनवाई टाली, 40 मौतों ने खड़े किए सुरक्षा प्रबंधन पर सवाल

चेन्नई/करूर। तमिलनाडु की राजनीति में अभिनेता से नेता बने थलापति विजय की एंट्री शुरू से ही सुर्खियों में रही है। लेकिन शनिवार को करूर जिले में उनकी पार्टी तमिलागा वेत्री कझगम (TVK) की रैली में मची भीषण भगदड़ ने राज्य की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में 40 लोगों की मौत हो गई, जबकि दर्जनों घायल हुए। अब यह मामला न सिर्फ राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है बल्कि न्यायपालिका और प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर रहा है।


कोर्ट में दायर याचिका और स्थगित हुई सुनवाई

हादसे के बाद एन. सेन्थिलकन्नन नामक याचिकाकर्ता ने मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने मांग की कि जब तक भगदड़ की विस्तृत जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक टीवीके को किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा या रैली करने की अनुमति न दी जाए।

हाई कोर्ट के वेकेशन जज जस्टिस एन. सेन्थिलकुमार ने रविवार शाम 4:30 बजे सुनवाई तय की थी। लेकिन सीनियर एडवोकेट जी. संकरन के अनुरोध पर अदालत ने सुनवाई स्थगित कर दी और अब मामला अगले हफ्ते सूचीबद्ध किया जाएगा। अदालत ने संकेत दिया कि दोनों पक्षों को अपनी दलीलें पूरी तैयारी से रखने का अवसर मिलेगा।


मदुरै बेंच में भी दाखिल याचिका

टीवीके ने भी अपनी ओर से मदुरै बेंच का दरवाजा खटखटाया है। पार्टी ने याचिका दायर कर इस पूरे हादसे की निष्पक्ष जांच की मांग की है। जस्टिस एम. धंडापानी ने इसे सोमवार दोपहर 2:15 बजे सुनने का आदेश दिया है। टीवीके का कहना है कि वह इस घटना के पीछे की सच्चाई सामने लाना चाहती है और किसी भी तरह के आरोपों से बचना चाहती है।


पीड़ित परिवारों का आरोप: “प्रशासन और पार्टी दोनों जिम्मेदार”

हादसे में अपने परिजनों को खो चुके परिवारों का गुस्सा साफ झलकता है। उनका आरोप है कि टीवीके नेताओं और जिला प्रशासन दोनों ने भीड़ प्रबंधन में लापरवाही बरती। न तो पर्याप्त पुलिस बल तैनात था और न ही आपातकालीन निकासी की व्यवस्था। स्थानीय लोगों का कहना है कि रैली स्थल पर अपेक्षा से कहीं ज्यादा भीड़ पहुंच गई थी और इसके बावजूद आयोजकों ने अतिरिक्त इंतज़ाम नहीं किए।


विजय का बयान और मुआवजा घोषणा

टीवीके प्रमुख और लोकप्रिय अभिनेता थलापति विजय ने हादसे पर शोक व्यक्त करते हुए इसे “अपूरणीय क्षति” बताया। उन्होंने मृतकों के परिजनों को 20 लाख रुपये और घायलों को 2 लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की। विजय ने सोशल मीडिया पर लिखा—
“यह मेरे जीवन का सबसे काला दिन है। मैं पीड़ित परिवारों के साथ हूं और उनकी हरसंभव मदद करूंगा।”


विपक्ष के निशाने पर TVK और सरकार

तमिलनाडु की विपक्षी पार्टियों ने इस घटना को लेकर राज्य सरकार और टीवीके दोनों को घेर लिया है। AIADMK ने आरोप लगाया कि प्रशासन और पुलिस पूरी तरह से असफल साबित हुए हैं। वहीं, DMK सरकार पर भी सवाल उठे कि उसने नए बने राजनीतिक दल को इतनी बड़ी सभा की अनुमति क्यों दी, जबकि पहले से चेतावनी थी कि भीड़ बेकाबू हो सकती है।

AIADMK प्रवक्ता ने कहा, “यह हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं बल्कि प्रशासनिक विफलता है। हजारों जानें खतरे में पड़ीं और 40 निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।”


सुरक्षा विशेषज्ञों का विश्लेषण

सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण भारत में हाल के वर्षों में फिल्मी सितारों से जुड़े राजनीतिक कार्यक्रमों में अत्यधिक भीड़ जुटने की प्रवृत्ति बढ़ी है। लेकिन इन आयोजनों में वैज्ञानिक ढंग से भीड़ प्रबंधन के उपाय नहीं किए जाते।

पूर्व डीजीपी अशोक कुमार का कहना है, “किसी भी बड़े राजनीतिक कार्यक्रम में भीड़ का अनुमान लगाना सबसे अहम होता है। यदि अपेक्षा से अधिक लोग आ जाते हैं तो तुरंत ‘क्राउड डाइवर्जन प्लान’ लागू होना चाहिए। करूर में यही सबसे बड़ी चूक रही।”


हाई कोर्ट की भूमिका क्यों अहम?

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हाई कोर्ट टीवीके की सभाओं पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश देता है, तो यह दक्षिण भारत में राजनीतिक गतिविधियों पर ऐतिहासिक फैसला होगा। इससे अन्य दलों के आयोजनों के लिए भी प्रशासन पर कड़े दिशा-निर्देश लागू करने का दबाव बढ़ जाएगा। वहीं, टीवीके इसे राजनीतिक षड्यंत्र बताकर अदालत में अपनी छवि बचाने की कोशिश करेगा।


आगे क्या?

फिलहाल, सबकी निगाहें अगले हफ्ते होने वाली हाई कोर्ट की सुनवाई और सोमवार को मदुरै बेंच में पेश होने वाली दलीलों पर टिकी हैं। यह देखना अहम होगा कि अदालत क्या कोई अंतरिम आदेश जारी करती है या मामले को लंबी सुनवाई के लिए रखती है।

करूर की भगदड़ ने सिर्फ दर्जनों परिवारों को शोक में नहीं डुबोया, बल्कि तमिलनाडु की राजनीति में सुरक्षा, जिम्मेदारी और पारदर्शिता के मुद्दे को फिर से जीवित कर दिया है। थलापति विजय के लिए यह पहला बड़ा राजनीतिक संकट है, जिसमें उन्हें न केवल अपनी पार्टी की साख बचानी है बल्कि राज्य की जनता का भरोसा भी जीतना है।

अब सवाल यह है कि क्या अदालत और सरकार मिलकर ऐसे हादसों को भविष्य में रोकने के लिए ठोस कदम उठा पाएंगे, या फिर यह भी एक और त्रासदी बनकर रह जाएगी।

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