
बेंगलुरु/नई दिल्ली: कर्नाटक की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच शक्ति संतुलन को लेकर महीनों से simmer कर रहा विवाद अब खुलकर सतह पर आ चुका है। सरकार के गठन के समय हुए 2023 के सत्ता-साझेदारी समझौते की समय सीमा पूरी होते ही पार्टी में खुला सत्ता संघर्ष शुरू हो गया है। इस बीच डी.के. शिवकुमार खेमे के कई विधायक अचानक दिल्ली पहुंच गए, जिसकी तस्वीर सामने आते ही राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है।
इस असमंजस के बीच आलाकमान की भूमिका और भी अहम हो गई है, क्योंकि कांग्रेस उच्च नेतृत्व—विशेषकर मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी—को ही इस पूरे विवाद का अंतिम समाधान निकालना है। दिल्ली पहुंच चुके विधायकों का स्पष्ट संदेश है कि अब फैसला केंद्र से ही आएगा।
2023 के सत्ता-साझेदारी समझौते पर खड़ा संकट
कर्नाटक में मई 2023 में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद जब सरकार बनी, तब सबसे बड़ा सवाल था—मुख्यमंत्री कौन बनेगा? तब पार्टी नेतृत्व ने संतुलन साधते हुए एक पावर-शेयरिंग फॉर्मूला तैयार किया। सूत्रों के मुताबिक इसमें यह तय हुआ था कि:
- पहले ढाई साल तक सिद्धारमैया मुख्यमंत्री रहेंगे
- और नवंबर 2025 के बाद डी.के. शिवकुमार को मुख्यमंत्री की कमान सौंपी जाएगी
यह वही समझौता है जिसे अब ‘नवंबर क्रांति’ कहा जाने लगा है—क्योंकि 20 नवंबर 2025 वह तिथि है जब ढाई साल पूरे हो रहे हैं।
लेकिन ढाई साल की यह अवधि पूरी होने के साथ ही सत्ता हस्तांतरण की मांग तेज हो गई है। शिवकुमार खेमे का दावा है कि समझौता लिखित भले न हो, लेकिन यह राजनीतिक वादा पूरा न होना विश्वासघात होगा। वहीं सिद्धारमैया समर्थक यह तर्क दे रहे हैं कि सरकार स्थिर है, विकास कार्य चल रहे हैं और अभी बदलाव से नुकसान होगा।
दिल्ली पहुंचे डी.के. शिवकुमार खेमे के विधायक — पहली तस्वीर आई सामने
हालात तब और तनावपूर्ण हो गए जब रविवार को दिल्ली से एक तस्वीर सामने आई। तस्वीर में डी.के. शिवकुमार खेमे के विधायक—जिनमें शामिल हैं:
- इकबाल हुसैन (रामनगर)
- एच.सी. बालकृष्ण (मगदी)
- नयना मोटाम्मा (मुदिगेरे)
- शिवगंगा बसवराज (चन्नागिरी)
- उदय गौड़ा
—एक साथ नजर आए।
विधायक समूह का दिल्ली पहुंचना संकेत देता है कि शिवकुमार गुट इस मुद्दे को अब सीधे आलाकमान के दरबार में ले जा चुका है। सूत्रों के अनुसार दो और विधायक दिल्ली में डेरा डाल चुके हैं, जिनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए।
विधायक समूह की योजना है कि वे कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व से मिलकर अपने पक्ष को मजबूती से रखें और सत्ता हस्तांतरण पर जल्द निर्णय करवाएं।
कांग्रेस आलाकमान की भूमिका निर्णायक — खरगे और राहुल पर सबकी निगाहें
सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे फिलहाल बेंगलुरु में हैं और जल्द ही दिल्ली लौटेंगे। दूसरी ओर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी के सबसे प्रभावी रणनीतिकार राहुल गांधी विदेश दौरे पर हैं, लेकिन उनके जल्द लौटने की चर्चा है।
कर्नाटक कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा:
“अब फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व को करना है। कर्नाटक की राजनीति की नब्ज सिर्फ बेंगलुरु में नहीं, बल्कि दिल्ली के दस जनपथ और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दरवाजों पर तय होती है।”
कांग्रेस नेतृत्व को दो जिम्मेदारियों का संतुलन साधना है—
- सरकार को गिरने से बचाना
- दोनों दिग्गज नेताओं के बीच टकराव को नियंत्रित करना
यह आसान नहीं होगा, क्योंकि सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों ही अपने-अपने कद्दावर क्षेत्रों में जबरदस्त पकड़ रखते हैं और दोनों ही पार्टी के लिए अनिवार्य माने जाते हैं।
क्या होगी राजनीतिक दिशा? अंदरूनी चर्चा क्या कहती है
सिद्धारमैया खेमे का कहना है:
- उनकी लोकप्रियता चरम पर है
- OBC और अल्पसंख्यक वोटबेस उनके साथ स्थिर है
- गारंटी योजनाओं की सफलता उनके नेतृत्व में ही संभव हुई
वहीं डी.के. शिवकुमार गुट यह तर्क दे रहा है:
- पार्टी ने सत्ता साझा करने का वादा किया था
- Vokkaliga समुदाय के बीच संदेश गलत जा सकता है
- यदि सत्ता हस्तांतरण नहीं होता, तो 2028 में चुनाव में नुकसान होगा
बेंगलुरु के राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस आलाकमान किसी भी सूरत में सरकार गिरने का जोखिम नहीं लेगा। इसलिए समझौते का एक नया फार्मूला भी सामने आ सकता है—जैसे:
- सत्ता पूरी तरह बदलने की बजाय कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों का फेरबदल
- या फिर भविष्य के चुनावों को ध्यान में रखकर ‘कलेक्टिव लीडरशिप मॉडल’ पर जोर
ये तस्वीर क्या संदेश देती है?
दिल्ली में एक साथ नजर आए विधायकों की तस्वीर राजनीतिक संकेतों से भरी हुई है।
राजनीतिक भाषा में इसे “शक्ति प्रदर्शन” कहा जाता है।
तस्वीर बताती है कि शिवकुमार गुट संगठित है और उनके पास इतनी संख्या है कि अगर वे भावनात्मक तौर पर कदम उठाएं तो सरकार अस्थिर हो सकती है—हालांकि शिवकुमार ने खुद सरकार गिराने जैसे किसी कदम से इनकार किया है।
लेकिन उनके समर्थक साफ कह चुके हैं:
“हम सिर्फ अपना वादा चाहते हैं, कोई बगावत नहीं। लेकिन अनदेखी सहन नहीं की जाएगी।”
आगे क्या? आलाकमान के फैसले का इंतजार
दिल्ली में विधायकों की मौजूदगी, बेंगलुरु में खरगे की सक्रियता और राहुल गांधी की वापसी—इन तीन कारकों पर कर्नाटक की राजनीतिक दिशा निर्भर करेगी।
पार्टी के भीतर ज्यादातर नेता चाहते हैं कि जल्द समाधान निकले, क्योंकि सत्ता संघर्ष का प्रभाव सरकारी कामकाज और गारंटी योजनाओं की गति पर भी पड़ा है।
कांग्रेस यह जानती है कि यदि मामला ज्यादा लंबा खिंचा, तो विपक्ष — खासकर भाजपा और जेडीएस — इसे बड़ा मुद्दा बनाकर पेश करेंगे।
कर्नाटक कांग्रेस में सत्ता संघर्ष अभी थमा नहीं है। सत्ता का समीकरण, जातीय संतुलन, 2028 चुनाव और पार्टी की आंतरिक राजनीति—इन सबका जोड़ इस विवाद को और जटिल बना रहा है।
यह आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि ‘नवंबर क्रांति’ वास्तव में सत्ता परिवर्तन लाती है या आलाकमान फिर कोई मध्य मार्ग चुनता है।



