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देशफीचर्ड

आवारा कुत्तों के मुद्दे पर कपिल सिब्बल की सुप्रीम कोर्ट में दलील- “वे चिड़चिड़े-हिंसक हो जाएंगे” 

दिल्ली सरकार ने कहा— रेबीज़ से बच्चों की मौतें चिंता का विषय, विवाद नहीं बल्कि समाधान चाहिए

नई दिल्ली, 14 अगस्त 2025। देश में आवारा कुत्तों का मुद्दा एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में गूंजा। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष बुधवार को दिल्ली सरकार और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के बीच जोरदार बहस हुई। जहां दिल्ली सरकार ने रेबीज़ फैलाने वाले कुत्तों के काटने से बच्चों की मौत का मुद्दा उठाया, वहीं कपिल सिब्बल ने चेतावनी दी कि यदि इन कुत्तों के साथ गलत तरीके से पेश आया गया, तो वे और अधिक “चिड़चिड़े और हिंसक” हो जाएंगे।

दिल्ली सरकार की चिंता: 37 लाख से ज्यादा केस हर साल

दिल्ली सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि देश में हर साल कुत्तों के काटने के 37 लाख से अधिक मामले दर्ज होते हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और बच्चों की सुरक्षा का गंभीर सवाल है।
मेहता ने कहा, “हम समाधान चाहते हैं, विवाद नहीं। कई मासूम बच्चे इन हमलों में घायल होते हैं, कुछ अपनी जान तक गंवा देते हैं। सरकार इस समस्या से निपटने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।”

सिब्बल की दलील: ‘गैर-मानवीय तरीका अपनाया तो हालात बिगड़ेंगे’

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो पशु अधिकार संगठनों का पक्ष रख रहे थे, ने कहा कि आवारा कुत्तों को सिर्फ समस्या के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उनका कहना था कि अगर इन जानवरों को जबरन हटाने, मारने या अमानवीय तरीके से कैद करने की कोशिश की गई, तो वे और अधिक आक्रामक हो जाएंगे।
सिब्बल ने तर्क दिया, “अगर आप उनके साथ गलत करेंगे, तो उनका स्वभाव चिड़चिड़ा और हिंसक हो जाएगा। इससे इंसानों पर हमले और बढ़ सकते हैं।” उन्होंने सुझाव दिया कि वैज्ञानिक और मानवीय तरीके से नसबंदी, टीकाकरण और पुनर्वास कार्यक्रम चलाए जाएं।

कोर्ट का रुख: संतुलित समाधान की तलाश

पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यह मुद्दा संवेदनशील है और इसमें जन सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन जरूरी है। जस्टिस विक्रम नाथ ने टिप्पणी की, “न तो हम सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं और न ही जानवरों के साथ क्रूरता की अनुमति दे सकते हैं। समाधान ऐसा होना चाहिए जो दोनों पक्षों के हितों की रक्षा करे।”

बैकग्राउंड: पुराना लेकिन गंभीर होता जा रहा मुद्दा

भारत में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में कुत्तों के काटने के मामलों में करीब 25% की बढ़ोतरी हुई है।
रेबीज़ के कारण होने वाली मौतें, खासकर ग्रामीण और शहरी गरीब इलाकों में, चिंता का विषय बनी हुई हैं। इसके बावजूद, कई राज्यों में नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रम पर्याप्त गति से लागू नहीं हो पा रहे।

अगली सुनवाई और संभावित दिशा

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सभी पक्षों को विस्तृत सुझाव देने के लिए कहा है। अदालत ने साफ किया कि वह ऐसा आदेश नहीं देना चाहती जो एकतरफा हो। अगली सुनवाई में केंद्र सरकार और राज्यों से विस्तृत कार्ययोजना पेश करने को कहा गया है।

इस मामले पर देश भर में मतभेद गहराए हुए हैं—एक ओर जन सुरक्षा की मांग, दूसरी ओर पशु अधिकारों की रक्षा का सवाल। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस बहस को नई दिशा देगा और संभव है कि आने वाले समय में आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय नीति बने।

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