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झारखंड ग्रामीण कार्य विभाग घोटाला: ED ने दायर की चौथी चार्जशीट, ठेकेदारों-अफसरों व राजनीतिक संबंधों का खुलासा

रांची/नई दिल्ली: झारखंड सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग (Rural Works Department) में फैले बड़े भ्रष्टाचार मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बुधवार को चौथी सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की है। यह चार्जशीट रांची की विशेष पीएमएलए (PMLA) अदालत में दायर की गई, जिसमें 8 नए आरोपियों के नाम शामिल हैं — इनमें ठेकेदार, अफसरों के करीबी और उनके परिजन शामिल हैं।

ED ने बताया कि ये सभी आरोपी “भ्रष्ट पैसों को कमाने, संभालने और उन्हें सफेद (launder) करने” की प्रक्रिया में शामिल रहे। इस मामले में अब तक कुल 22 लोगों को आरोपी बनाया जा चुका है।


ACB की FIR से शुरू हुई थी जांच, ₹2.67 करोड़ नकद बरामद

यह पूरी जांच एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB), जमशेदपुर की उस FIR पर आधारित है जिसमें जूनियर इंजीनियर सुरेश प्रसाद वर्मा को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया था।
इसके बाद ED ने जांच का दायरा बढ़ाया और ग्रामीण कार्य विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियंता वीरेंद्र कुमार राम से जुड़े ठिकानों पर छापेमारी की, जहां से ₹2.67 करोड़ नकद बरामद किए गए। यहीं से एक संगठित भ्रष्टाचार नेटवर्क की परतें खुलनी शुरू हुईं — जो ठेकेदारों, अफसरों और राजनीतिक स्तर तक फैला हुआ था।


ED की जांच में खुलासा: “कमीशन नेटवर्क” का संचालन ऊपर से नीचे तक

ED की जांच में सामने आया कि विभाग के भीतर ‘कमीशन सिस्टम’ एक स्थापित प्रथा की तरह चल रहा था। मुख्य अभियंता वीरेंद्र कुमार राम को ठेके मिलने पर तय प्रतिशत का कमीशन मिलता था, और वे कथित तौर पर उस कमीशन का वितरण ऊपर तक करते थे।
जांच में यह भी सामने आया कि उस समय के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम को भी हर टेंडर पर “फिक्स कमीशन” दिया जाता था, जिसे उनका निजी सचिव संजय कुमार लाल और उसके सहयोगी इकट्ठा करते थे।

अब तक की छापेमारियों में ₹37 करोड़ से अधिक नकदी बरामद हो चुकी है। ED के अनुसार, यह पैसा दिल्ली के कुछ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और एंट्री ऑपरेटरों के माध्यम से विभिन्न कंपनियों और अचल संपत्तियों में निवेश किया गया — ताकि यह “वैध” दिख सके।


चौथी चार्जशीट में ठेकेदारों की भूमिका उजागर

इस बार की चार्जशीट में ED ने कई ठेकेदारों की स्वीकारोक्तियां और लेनदेन के साक्ष्य भी शामिल किए हैं।

  • राजेश कुमार, और उनकी कंपनियां — राजेश कुमार कंस्ट्रक्शंस प्रा. लि.पार्मानंद सिंह बिल्डर्स प्रा. लि. — ने माना है कि उन्होंने ₹1.88 करोड़ की रिश्वत दी।
    उन्होंने टोयोटा इनोवा और टोयोटा फॉर्च्यूनर जैसी दो लग्जरी गाड़ियां “गिफ्ट” के रूप में भी दी थीं।
  • ठेकेदार राधा मोहन साहू ने भी कबूल किया कि उन्होंने ₹39 लाख और अपने बेटे अंकित साहू के नाम पर एक टोयोटा फॉर्च्यूनर रिश्वत के तौर पर दी।
  • ये तीनों गाड़ियां बाद में मुख्य अभियंता वीरेंद्र कुमार राम के ठिकानों से बरामद हुईं।

ED का कहना है कि ठेकेदारों और अफसरों के बीच रिश्वत की ये अदायगियाँ एक सुव्यवस्थित पैटर्न के तहत होती थीं — ठेके की स्वीकृति से लेकर भुगतान तक, हर चरण पर हिस्सा तय था।


‘कैश कलेक्टर’ और अफसरों के करीबी बने आरोपी

जांच में यह भी सामने आया कि कुछ लोग “पैसे संभालने और आगे पहुंचाने” का काम करते थे —

  • अतिकुल रहमान उर्फ अतिकुल रहमान अंसारी, जो वीरेंद्र राम के करीबी माने जाते हैं, के घर से ₹4.40 लाख नकद बरामद हुए।
  • राजीव कुमार सिंह, जो ठेकेदारों और अफसरों के बीच बिचौलिये की भूमिका निभाता था, के यहां से ₹2.13 करोड़ नकद मिले।
    उसने स्वीकार किया कि उसने करीब ₹15 करोड़ कमीशन का पैसा इकट्ठा किया था।
  • रीता लाल, जो आरोपी संजय कुमार लाल (पूर्व मंत्री आलमगीर आलम के निजी सचिव) की पत्नी हैं, पर भी आरोप है कि उन्होंने रिश्वत के पैसों से संपत्तियां खरीदीं और उन्हें वैध आय के रूप में दिखाने की कोशिश की।

ED की दलील: “संपत्तियां भ्रष्टाचार की आय से खड़ी की गईं”

ED ने अदालत में कहा कि आरोपियों ने जो संपत्तियां खरीदीं — वे उनकी वैध आय से मेल नहीं खातीं।
जांच एजेंसी के मुताबिक, अधिकांश संपत्तियां शेल कंपनियों, फर्जी खातों और बिचौलियों के नेटवर्क के जरिए खरीदी गईं। ED ने अदालत से अनुरोध किया है कि सभी आरोपियों की संपत्तियों को अस्थायी रूप से अटैच किया जाए और आगे की जांच में इन्हें कब्जे में लिया जा सके


22 आरोपियों तक पहुँचा मामला, कई और नाम सामने आने की संभावना

अब तक इस घोटाले में कुल 22 लोग आरोपी बनाए जा चुके हैं, जिनमें इंजीनियर, ठेकेदार, विभागीय कर्मचारी, और राजनीतिक स्तर के लोग शामिल हैं। ED सूत्रों के मुताबिक, जल्द ही पांचवीं चार्जशीट भी दाखिल की जा सकती है, जिसमें कई राजनीतिक और कारोबारी नाम सामने आ सकते हैं।


झारखंड में सत्ता और ठेके के गठजोड़ का पर्दाफाश

ED की यह चौथी चार्जशीट झारखंड में राजनीतिक-सत्ता और अफसरशाही के गठजोड़ की परतें उजागर करती है। ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए जारी निधियां कैसे ‘कमीशन रैकेट’ में तब्दील की गईं, और भ्रष्टाचार के पैसे को कैसे सिस्टमेटिक तरीके से सफेद किया गया —
यह मामला इसका जीवंत उदाहरण बन चुका है। जैसे-जैसे ED की जांच आगे बढ़ रही है, यह साफ होता जा रहा है कियह सिर्फ़ एक विभाग का मामला नहीं, बल्कि राज्य-स्तरीय करप्शन नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें ठेके, कमीशन और सत्ता का गठजोड़ विकास को निगल रहा था।

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