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भारतीय नौसेना हर 40 दिन में शामिल कर रही है एक नया स्वदेशी युद्धपोत: एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी

आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रही है नौसेना, देश की समुद्री ताकत में हो रहा अभूतपूर्व इज़ाफा

नई दिल्ली, 4 नवंबर: भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी ने मंगलवार को कहा कि नौसेना अब औसतन हर 40 दिन में एक नया स्वदेशी युद्धपोत या पनडुब्बी अपने बेड़े में शामिल कर रही है। यह न केवल देश की रक्षा क्षमताओं में ऐतिहासिक वृद्धि का संकेत है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की दिशा में भी एक मील का पत्थर है।

एडमिरल त्रिपाठी ने यह बात एक रक्षा संगोष्ठी के दौरान कही, जहां उन्होंने भारत की समुद्री संप्रभुता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की तैयारियों पर विस्तार से चर्चा की।


समुद्री क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर ज़ोर

एडमिरल त्रिपाठी ने कहा कि बीते कुछ वर्षों में भारतीय नौसेना ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल को आधार बनाते हुए अपने अधिकांश जहाज और पनडुब्बियां देश में ही विकसित की हैं।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में नौसेना के पास 67 से अधिक जहाज और पनडुब्बियों का निर्माण देश के विभिन्न शिपयार्डों में चल रहा है। इनमें डिस्ट्रॉयर, फ्रिगेट, कॉर्वेट, ऑफशोर पेट्रोल वेसल्स और एडवांस्ड स्कॉर्पीन-क्लास पनडुब्बियां शामिल हैं।

“हमारे लिए गर्व की बात है कि आज नौसेना के लगभग 75 प्रतिशत जहाज और पनडुब्बियां भारत में निर्मित हैं। यह आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम है,”
एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी, नौसेना प्रमुख


भारत की बढ़ती समुद्री भूमिका

भारत की भौगोलिक स्थिति और हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी रणनीतिक भूमिका को देखते हुए नौसेना की क्षमताओं का विस्तार आवश्यक माना जा रहा है। एडमिरल त्रिपाठी ने कहा कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं बल्कि वैश्विक समुद्री सुरक्षा का प्रमुख भागीदार बन चुका है।

उन्होंने बताया कि नौसेना ने हाल के वर्षों में न केवल अपनी आक्रामक क्षमताओं को बढ़ाया है बल्कि मानवीय सहायता, आपदा राहत, समुद्री डकैती-रोधी अभियानों और वैश्विक साझेदारी मिशनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।


सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार

एडमिरल त्रिपाठी ने कहा कि समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियां लगातार बदल रही हैं। चीन की बढ़ती समुद्री उपस्थिति, हिंद महासागर में ड्रोन और साइबर खतरों जैसी नई चुनौतियों को देखते हुए नौसेना ने अपनी सर्विलांस और नेटवर्किंग क्षमताओं को मजबूत किया है।

“हम न केवल समुद्री सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि हिंद महासागर में ‘सुरक्षित नौवहन’ सुनिश्चित करने में भी भूमिका निभा रहे हैं। भारतीय नौसेना की उपस्थिति पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में महसूस की जा रही है,”
एडमिरल त्रिपाठी


आधुनिक तकनीक और स्वदेशीकरण की दिशा में बड़ा निवेश

भारतीय नौसेना अब अत्याधुनिक स्टेल्थ टेक्नोलॉजी, मिसाइल सिस्टम, रडार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निगरानी प्रणालियों को अपनाने पर फोकस कर रही है।
एडमिरल त्रिपाठी ने बताया कि नौसेना के बजट का बड़ा हिस्सा अब स्वदेशी रक्षा उद्योगों और अनुसंधान संस्थानों में लगाया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि देश में तैयार किए जा रहे आईएनएस विक्रांत, प्रोजेक्ट 75-आई पनडुब्बी प्रोग्राम, नेक्स्ट जनरेशन डिस्ट्रॉयर प्रोजेक्ट और अनमैन्ड सरफेस व्हीकल्स (USVs) जैसे कार्यक्रम आने वाले दशक में भारत को समुद्री सुपरपावर बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।


महिलाओं की बढ़ती भागीदारी

एडमिरल त्रिपाठी ने नौसेना में महिलाओं की भागीदारी पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अब महिलाओं को युद्धपोतों पर भी तैनात किया जा रहा है और कई महिला अधिकारी महत्वपूर्ण ऑपरेशनल भूमिकाओं में कार्यरत हैं।

“हम मानते हैं कि लैंगिक समानता से ही नौसेना और मजबूत होगी। आज महिलाएं नौसेना के हर क्षेत्र में अपनी दक्षता साबित कर रही हैं,”
एडमिरल दिनेश के. त्रिपाठी


वैश्विक साझेदारियों में भारत की बढ़ती भूमिका

भारतीय नौसेना ने हाल के वर्षों में अमेरिका, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों में अपनी सक्रिय भागीदारी बढ़ाई है। इससे भारत की समुद्री रणनीतिक साझेदारियां मजबूत हुई हैं और देश को ‘नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ के रूप में वैश्विक पहचान मिली है।


एडमिरल त्रिपाठी का बयान भारत की रक्षा नीति के उस बदलते स्वरूप को रेखांकित करता है, जहां देश केवल रक्षा उपकरणों का उपभोक्ता नहीं बल्कि विकास और नवाचार का केंद्र बन चुका है।

हर 40 दिन में एक नया स्वदेशी युद्धपोत या पनडुब्बी नौसेना में शामिल होना इस बात का प्रमाण है कि भारत अब आत्मनिर्भरता से आगे बढ़कर “आत्मविश्वासी भारत” की दिशा में अग्रसर है।

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