
संयुक्त राष्ट्र/नई दिल्ली: भारत ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अफगानिस्तान की स्थिति पर जर्मनी द्वारा प्रस्तुत मसौदा प्रस्ताव से वोटिंग में भाग नहीं लिया और कहा कि अफगानिस्तान में स्थायित्व के लिए केवल दंडात्मक उपायों पर आधारित नीति व्यवहारिक और प्रभावी नहीं हो सकती।
193 सदस्यीय महासभा में पारित इस प्रस्ताव में तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान की बिगड़ती मानवीय, सामाजिक और सुरक्षा स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। इसमें महिलाओं, लड़कियों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के उल्लंघन, राजनीतिक समावेशन की कमी और आतंकी संगठनों की बढ़ती मौजूदगी पर भी फोकस किया गया है।
भारत ने क्यों नहीं दिया वोट?
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने स्पष्ट किया कि भारत ने जानबूझकर वोटिंग से दूरी बनाई क्योंकि यह प्रस्ताव एकतरफा ‘दंडात्मक’ नजरिए पर आधारित था।
“केवल नकारात्मक रवैया अपनाने से कोई सार्थक समाधान निकलने की संभावना नहीं है। नई और लक्षित पहलों के बिना ‘सब कुछ सामान्य मान लेने’ वाला रवैया, उन परिणामों को जन्म नहीं देगा जिसकी वैश्विक समुदाय को अपेक्षा है,” – हरीश, स्थायी प्रतिनिधि, भारत।
भारत का 6-सूत्रीय रुख
- अफगान लोगों से विशेष संबंध: भारत का रुख अफगानिस्तान की जनता के साथ ऐतिहासिक मित्रता और साझेदारी पर आधारित है, न कि सिर्फ सरकारों के साथ संबंधों पर।
- मानवीय सहायता और क्षमता निर्माण: भारत की प्राथमिकता वर्तमान संकट में अफगान जनता तक मदद पहुंचाना और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना है।
- आतंकी समूहों पर सख्त दृष्टिकोण: भारत ने चेताया कि अल-कायदा, ISIS, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को अफगान जमीन से संचालित नहीं होने दिया जाए।
- अंतरराष्ट्रीय संवाद जारी: विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अफगान कार्यवाहक विदेश मंत्री से हुई हालिया बातचीत का जिक्र करते हुए भारत ने आतंकवाद पर कड़े रुख को दोहराया।
- संतुलित नीति की मांग: भारत ने कहा कि भविष्य की नीति में प्रोत्साहन और दंडात्मक दोनों तत्वों का संतुलन होना चाहिए। केवल सजा पर केंद्रित नीति टिकाऊ नहीं।
- समावेशी समाधान की वकालत: भारत ने दोहराया कि वह सभी प्रासंगिक हितधारकों से संपर्क बनाए रखेगा और एक स्थिर, शांतिपूर्ण और समावेशी अफगानिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करता रहेगा।
पृष्ठभूमि: प्रस्ताव में क्या था?
जर्मनी द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव में अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता पर पाबंदियों, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, और राजनीतिक भागीदारी की अनुपस्थिति को लेकर कड़ी चिंता व्यक्त की गई थी। प्रस्ताव का उद्देश्य वैश्विक दबाव बनाकर तालिबान पर सुधार के लिए प्रेरित करना था।
भारत की संतुलित कूटनीति
भारत की विदेश नीति विशेषज्ञ इसे एक व्यावहारिक और रणनीतिक निर्णय बता रहे हैं, जिसमें भारत ने मानवीय आधार पर अपनी प्रतिबद्धता तो दोहराई, लेकिन बिना किसी पक्षपात के अफगानिस्तान में समावेशी और स्थायी समाधान की बात रखी।