
भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम अब अपने सबसे महत्वाकांक्षी और तकनीकी रूप से उन्नत चरण में प्रवेश करने वाला है। तमिलनाडु के कलपक्कम स्थित प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) वर्षों की देरी के बाद आखिरकार ईंधन भरने (Fuel Loading) के करीब है। यह रिएक्टर भारत के त्रिस्तरीय (Three-Stage) परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के दूसरे चरण का आधार बनेगा, जो देश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक बढ़त देगा।
🔬 तकनीकी दृष्टि से क्या है PFBR?
PFBR एक 500 मेगावाट का लिक्विड सोडियम-कूल्ड फास्ट रिएक्टर है। यह रिएक्टर प्लूटोनियम-यूरेनियम मिश्रित ईंधन (MOX fuel) का उपयोग करता है और इस प्रक्रिया में अधिक प्लूटोनियम और यूरेनियम-233 उत्पन्न करता है, जिसे आगे थोरियम-आधारित रिएक्टरों में उपयोग किया जा सकता है।
इस रिएक्टर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह “ब्रीडिंग” तकनीक पर आधारित है — यानी जितना ईंधन यह खपत करता है, उससे अधिक नया ईंधन उत्पन्न करता है। इसे ही “फास्ट ब्रीडर” कहा जाता है।
⚙️ अब तक की यात्रा: चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ
इस परियोजना की नींव वर्ष 2004 में रखी गई थी और इसे प्रारंभिक रूप से 2010 तक चालू करने की योजना थी। लेकिन उच्च तकनीकी जटिलताओं, सुरक्षा मानकों, सोडियम कूलिंग सिस्टम की बारीकियों और ईंधन प्रोसेसिंग चुनौतियों के कारण परियोजना में कई बार देरी हुई।
अब, नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, परमाणु नियामक बोर्ड (AERB) द्वारा ईंधन भरने की औपचारिक मंज़ूरी इस सप्ताह के भीतर मिलने की संभावना है।
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ. अजीत कुमार मोहंती ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा—
“ईंधन ट्रांसफर में एक मैकेनिकल समस्या थी, जिसे अब हल कर लिया गया है। अब हमें केवल नियामक की अंतिम मंजूरी का इंतजार है, जिसके बाद ईंधन भरने की प्रक्रिया शुरू होगी।”
यह बयान संकेत देता है कि भारत का यह स्वदेशी विकसित रिएक्टर अब अपने ऑपरेशनल चरण में प्रवेश करने की दहलीज पर है।
🌏 भारत के तीन-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम का दूसरा चरण
भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की दूरदृष्टि पर आधारित है, जो तीन चरणों में विभाजित है:
- पहला चरण: प्राकृतिक यूरेनियम ईंधन वाले प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (PHWRs)
- दूसरा चरण: फास्ट ब्रीडर रिएक्टर – PFBR इसी चरण का हिस्सा है
- तीसरा चरण: थोरियम आधारित एडवांस्ड रिएक्टर, जो दीर्घकालिक ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे
PFBR की सफलता भारत को दूसरे चरण से तीसरे चरण की ओर आगे बढ़ने में निर्णायक भूमिका निभाएगी, जहां थोरियम को ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बनाया जाएगा।
☢️ थोरियम: भारत की भविष्य की ऊर्जा कुंजी
भारत के पास दुनिया में थोरियम के सबसे बड़े भंडारों में से एक है — लगभग 3,60,000 टन।
थोरियम का उपयोग करने के लिए भारत को पहले प्लूटोनियम और यूरेनियम-233 का पर्याप्त उत्पादन करना होगा, जो PFBR जैसे रिएक्टरों से संभव होगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत थोरियम रिएक्टरों को व्यावसायिक स्तर पर स्थापित कर लेता है, तो यह सदियों तक चलने वाली स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा का स्रोत बन सकता है।
परमाणु वैज्ञानिक डॉ. एस. भट्टाचार्य के अनुसार —
“PFBR सिर्फ एक रिएक्टर नहीं, बल्कि एक टेक्नोलॉजिकल मीलस्टोन है। यह भारत को यूरेनियम पर निर्भरता से मुक्त कर, घरेलू संसाधनों से ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाएगा।”
💡 ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्व
भारत की ऊर्जा खपत दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है। जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस) पर निर्भरता न केवल पर्यावरणीय दबाव बढ़ाती है, बल्कि विदेशी आयात पर भी भारी बोझ डालती है।
इस संदर्भ में, परमाणु ऊर्जा एक स्थायी और कार्बन-मुक्त विकल्प के रूप में सामने आती है। PFBR जैसे रिएक्टरों से न केवल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन होगा, बल्कि यह नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य की दिशा में भारत के प्रयासों को भी मजबूती देगा।
🔧 “मेक इन इंडिया” का एक शानदार उदाहरण
PFBR को भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (BHAVINI) ने पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित किया है।
इसके सभी प्रमुख सिस्टम — रिएक्टर वेसल, कंट्रोल सिस्टम, सोडियम पंप, ईंधन असेंबली — देश में ही डिजाइन और निर्मित किए गए हैं।
इस प्रकार यह परियोजना भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता (technological self-reliance) का सशक्त उदाहरण है।
🧭 आगे की राह
यदि सब कुछ योजना के अनुसार चलता है, तो PFBR 2026 तक पूर्ण रूप से संचालन में आ सकता है।
इसके सफल संचालन के बाद, भारत में चार और फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों की योजना तैयार की जा रही है — जो देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित होंगे।
इन रिएक्टरों के नेटवर्क से भारत न केवल अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकेगा, बल्कि भविष्य में परमाणु ऊर्जा निर्यातक देश के रूप में भी उभर सकता है।
कलपक्कम का PFBR भारत की वैज्ञानिक क्षमता, इंजीनियरिंग कौशल और दीर्घकालिक ऊर्जा दृष्टि का प्रतीक है। वर्षों की मेहनत और तकनीकी परिष्कार के बाद यह परियोजना अब अपने निर्णायक चरण में है।
यह केवल एक रिएक्टर नहीं, बल्कि भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता की कहानी का अगला अध्याय है —
जहाँ विज्ञान, संकल्प और आत्मनिर्भरता मिलकर भविष्य की ऊर्जा को आकार दे रहे हैं।