
शिमला। दिवाली से पहले हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने मंत्रियों, विधायकों और पूर्व विधायकों को बड़ा तोहफा दिया है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने माननीयों के वेतन और भत्तों में 24 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की है। गुरुवार को राज्य के विधि विभाग ने इस संबंध में औपचारिक अधिसूचना जारी कर दी, जिससे अब मुख्यमंत्री से लेकर सामान्य विधायक तक को संशोधित वेतन और भत्ते मिलने शुरू हो जाएंगे।
मार्च में हुआ था वेतन संशोधन का निर्णय
इस बढ़ोतरी का रास्ता इसी साल मार्च 2025 में बजट सत्र के दौरान साफ हुआ था, जब विधानसभा में तीन महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए गए थे।
इनमें शामिल थे —
- हिमाचल प्रदेश मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते संशोधन विधेयक, 2025
- हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष वेतन संशोधन विधेयक, 2025
- हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदस्यों के भत्ते एवं पेंशन संशोधन विधेयक, 2025
तीनों विधेयक ध्वनिमत से पारित हुए थे और बाद में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने उन्हें अपनी मंजूरी दी थी। इसके बाद ये अधिनियम के रूप में लागू तो हो गए थे, लेकिन तकनीकी औपचारिकताओं, विधानसभा सचिवालय और सामान्य प्रशासन विभाग के बीच कुछ असहमति के चलते अधिसूचना जारी होने में करीब सात महीने की देरी हो गई।
सूत्रों के अनुसार, मंत्रियों और विधायकों के वेतनमान में “मामूली अंतर” को लेकर दोनों विभागों में मतभेद था, जिसे अब सुलझा लिया गया है। अधिसूचना जारी होते ही नए वेतनमान तत्काल प्रभाव से लागू कर दिए गए हैं।
किसे मिलेगा कितना वेतन
नई अधिसूचना के अनुसार, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कैबिनेट मंत्रियों और विधायकों के वेतन और भत्तों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की गई है।
- मुख्यमंत्री का कुल वेतन और भत्ता अब ₹3.50 लाख प्रति माह होगा, जो पहले ₹2.65 लाख था।
- विधानसभा अध्यक्ष का वेतन ₹3.45 लाख और उपाध्यक्ष का ₹3.40 लाख प्रति माह तय किया गया है।
- कैबिनेट मंत्रियों को ₹3.10 लाख प्रतिमाह मिलेगा।
- मंत्रियों को इसके अलावा ₹1.50 लाख का प्रतिनिधिक व्यय (सत्कार भत्ता) भी मिलेगा।
- विधायकों और पूर्व विधायकों के पेंशन और अन्य भत्तों में भी अनुपातिक बढ़ोतरी की गई है।
सरकार का तर्क: “माननीयों के खर्च बढ़े, मानदेय संशोधन जरूरी था”
सरकार ने इस फैसले को “परिस्थिति अनुसार तर्कसंगत” बताते हुए कहा है कि बीते वर्षों में जीवन-यापन की लागत और राजनीतिक दायित्वों से जुड़े खर्चों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने पहले ही संकेत दिए थे कि राज्य में विधायक भत्तों की समीक्षा जरूरी है क्योंकि “कई विधायकों को अपने क्षेत्रों में जनसंपर्क, यात्रा, सामाजिक आयोजनों और कार्यालय संचालन पर पर्याप्त खर्च करना पड़ता है।”
कांग्रेस सरकार के सूत्रों का कहना है कि यह बढ़ोतरी 2022 के बाद पहली व्यापक संशोधन है। पिछली बार जयराम ठाकुर सरकार के कार्यकाल में सीमित वृद्धि की गई थी, जो वर्तमान महंगाई दर और राजनीतिक व्यय के अनुपात में “अपर्याप्त” मानी जा रही थी।
विपक्ष का रुख: “जनता पर बोझ, माननीयों पर कृपा”
हालांकि, सरकार के इस निर्णय पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। भाजपा ने इसे “दिवाली से पहले सत्ता पक्ष को दिया गया स्वर्ण उपहार” करार दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा,
“राज्य की वित्तीय स्थिति पहले से ही चिंताजनक है। कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का भुगतान समय पर नहीं हो पा रहा, विकास परियोजनाएं अटकी हैं, और सरकार माननीयों के वेतन बढ़ाने में व्यस्त है। यह जनता के साथ अन्याय है।”
कुछ सामाजिक संगठनों ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताई है। हिमाचल नागरिक मंच ने कहा कि जब राज्य पर कर्ज़ 80,000 करोड़ रुपये से अधिक है और राजस्व घाटा लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में जनता की गाढ़ी कमाई से नेताओं को “त्योहारी बोनस” देना नैतिक दृष्टि से अनुचित है।
विशेषज्ञों की राय: “राजनीतिक वेतन सुधार में पारदर्शिता जरूरी”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधायकों और मंत्रियों के वेतन संशोधन को पूरी तरह गलत नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसकी प्रक्रिया और समय पर सवाल उठते हैं।
शिमला स्थित नीति विश्लेषक डॉ. आर.एस. बिष्ट कहते हैं,
“यदि राज्य सरकार यह दिखा पाती कि विधायकों के बढ़े हुए वेतन से कार्यकुशलता और जवाबदेही भी बढ़ेगी, तो जनता की प्रतिक्रिया इतनी तीखी नहीं होती। लेकिन बिना पूर्व परामर्श या वित्तीय औचित्य प्रस्तुत किए गए संशोधन से पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं।”
वित्तीय प्रभाव और राजकोषीय स्थिति
आर्थिक दृष्टि से, इस 24% बढ़ोतरी से राज्य के कोष पर सालाना लगभग 18 से 20 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने का अनुमान है। हालांकि, सरकार का कहना है कि यह व्यय “राज्य के कुल बजट का नगण्य हिस्सा” है और इसे मौजूदा बजट प्रावधानों के भीतर समायोजित किया जाएगा। राजस्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार, अतिरिक्त भार के बावजूद वेतन संशोधन को “राजनीतिक आवश्यकता” के रूप में देखा जा रहा है ताकि विधायकों की कार्यक्षमता और क्षेत्रीय जवाबदेही को बनाए रखा जा सके।
जनता की मिश्रित प्रतिक्रिया
शिमला, मंडी और कांगड़ा जिलों में आम नागरिकों की राय बंटी हुई दिखी। कुछ लोगों ने कहा कि “विधायक भी महंगाई के दौर में जी रहे हैं,” जबकि अन्य ने सवाल किया कि “जब आम जनता को राहत नहीं, तो नेताओं को बोनस क्यों?” सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है — #MLASalaryHike और #SukhuGovtGifts जैसे हैशटैग से लोग अपनी नाराज़गी या समर्थन जाहिर कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में यह वेतन-भत्ता वृद्धि सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक विमर्श का विषय बन गई है। मुख्यमंत्री सुक्खू की सरकार इसे “आवश्यक सुधार” बता रही है, जबकि विपक्ष और नागरिक समाज इसे “वित्तीय असंवेदनशीलता” के तौर पर देख रहे हैं।
राज्य की आर्थिक स्थिति और जनता की उम्मीदों के बीच यह फैसला आने वाले समय में राजनीतिक रूप से कितना लाभ या नुकसान पहुंचाएगा, यह तो भविष्य बताएगा — लेकिन फिलहाल, दिवाली से पहले माननीयों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई है।