
नई दिल्ली: बिहार में Special Summary Revision (SSR) और State Information Report (SIR) को लेकर उठे विवाद के बीच चुनाव आयोग ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची का मसौदा एक अगस्त 2025 को प्रकाशित होने के बाद से अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने उसमें नाम जोड़े जाने या हटाए जाने को लेकर आयोग से संपर्क नहीं किया है। आयोग ने कहा कि मसौदा सूची पर दावे और आपत्तियां दर्ज कराने की अंतिम तिथि एक सितंबर 2025 तय की गई है, जिसके बाद अंतिम मतदाता सूची जारी की जाएगी।
क्या है मामला
हाल के महीनों में बिहार की मतदाता सूची को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए थे। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हैं, जिनमें मृत व्यक्तियों के नाम, डुप्लीकेट एंट्री और कई पात्र मतदाताओं के नाम गायब होना शामिल है। इन आरोपों के मद्देनजर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां इस पर 13 अगस्त को सुनवाई तय है।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि बिहार में मतदाता सूची का वार्षिक पुनरीक्षण तय कार्यक्रम के तहत किया गया है। एक अगस्त को जारी मसौदा सूची राज्य के सभी जिलों और निर्वाचन क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करा दी गई है, ताकि आम नागरिक, राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इसमें त्रुटियों को इंगित कर सकें।
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि —
- अब तक किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल ने आयोग से औपचारिक रूप से संपर्क नहीं किया है।
- मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से चल रही है।
- दावे और आपत्तियां 1 सितंबर 2025 तक स्वीकार की जाएंगी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
हालांकि आयोग के इस बयान के बाद भी राजनीतिक सरगर्मी कम होने के आसार नहीं हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि गड़बड़ियों की शिकायतें पहले से दर्ज हैं और आयोग को स्वेच्छा से उन पर कार्रवाई करनी चाहिए। सत्ता पक्ष ने आयोग के हलफनामे को अपनी स्थिति के समर्थन में पेश करते हुए कहा कि चुनावी प्रक्रिया पर संदेह जताना लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट 13 अगस्त को इस मामले की विस्तृत सुनवाई करेगा। इसमें यह तय हो सकता है कि —
- क्या मतदाता सूची की स्वतंत्र जांच कराई जाए।
- क्या बिहार में मतदाता सूची संशोधन की समयसीमा बढ़ाई जाए।
- क्या इस प्रक्रिया पर किसी बाहरी निगरानी समिति की नियुक्ति हो।
मतदाता सूची किसी भी चुनाव की नींव होती है। यदि सूची में व्यापक त्रुटियां पाई जाती हैं, तो यह सीधे चुनावी परिणाम और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर असर डाल सकती है। यही कारण है कि इस मामले पर देश की सर्वोच्च अदालत का हस्तक्षेप महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि चुनावी प्रक्रियाओं और लोकतांत्रिक संस्थानों पर विश्वास बनाए रखना देश की राजनीतिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में यह और भी अहम हो जाता है, जहां मतदाता सूची पर विवाद चुनावी समीकरण बदल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के 13 अगस्त के फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हैं। यह फैसला न केवल बिहार की मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया की दिशा तय करेगा, बल्कि पूरे देश में चुनावी पारदर्शिता और विश्वसनीयता के मानकों पर भी असर डालेगा।