
नई दिल्ली: चुनावी रणनीतिकार से नेता बने जन सुराज पार्टी प्रमुख प्रशांत किशोर पर चुनावी नियमों के उल्लंघन का मामला सामने आया है। चुनाव आयोग के इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) ने प्रशांत किशोर को तीन दिनों के भीतर जवाब देने का नोटिस जारी किया है।
आरोप है कि उनका नाम दो अलग-अलग राज्यों — बिहार और पश्चिम बंगाल — की मतदाता सूचियों में दर्ज है, जो कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 17 और 18 के तहत अवैध है। यह धारा किसी व्यक्ति को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने से प्रतिबंधित करती है।
क्या है पूरा मामला
इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) द्वारा जारी नोटिस के अनुसार,
प्रशांत किशोर का नाम बिहार के रोहतास जिले के करगहर विधानसभा क्षेत्र में दर्ज है, जो सासाराम संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
वहीं दूसरी ओर, चुनाव आयोग के अभिलेखों में उनका नाम पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में भी पाया गया है — जो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का गृह निर्वाचन क्षेत्र भी है।
इन दोनों पंजीकरणों के चलते प्रशांत किशोर पर दोहरी मतदाता पहचान (Dual Voter Registration) का आरोप लगा है।
कानूनी प्रावधान क्या कहते हैं
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 17 स्पष्ट रूप से कहती है —
“कोई व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची में नाम दर्ज नहीं करा सकता।”
वहीं धारा 18 यह व्यवस्था करती है कि यदि किसी व्यक्ति का नाम किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र में दर्ज पाया जाता है, तो उसे पहले क्षेत्र की सूची से हटाना आवश्यक होगा।
इस आधार पर चुनाव आयोग ने प्रशांत किशोर से तीन दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा है कि उनका नाम दो राज्यों की मतदाता सूची में कैसे दर्ज हुआ और क्या उन्होंने इस बारे में संबंधित प्राधिकरण को सूचित किया था।
ERO का नोटिस और आगे की प्रक्रिया
ERO द्वारा भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि प्रशांत किशोर के खिलाफ यह मामला साक्ष्य सहित प्रमाणित हुआ है कि उनका नाम दो स्थानों पर दर्ज है। उन्हें निर्देश दिया गया है कि तीन कार्यदिवसों के भीतर अपना जवाब लिखित रूप में प्रस्तुत करें।
यदि निर्धारित समयावधि में जवाब नहीं दिया गया या स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं पाया गया, तो ERO को अधिकार है कि एक या दोनों मतदाता सूची से उनका नाम हटा दिया जाए, साथ ही मामला कानूनी कार्रवाई के लिए आगे भेजा जा सकता है।
चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार,
“यह मामला मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता से जुड़ा हुआ है। यदि किसी व्यक्ति का नाम दो जगह पाया जाता है, तो यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाता है।”
प्रशांत किशोर की पृष्ठभूमि और राजनीतिक भूमिका
प्रशांत किशोर, जिन्हें आमतौर पर ‘पीके’ के नाम से जाना जाता है, देश के सबसे चर्चित चुनावी रणनीतिकारों में से एक रहे हैं।
उन्होंने नरेंद्र मोदी (2014), नीतीश कुमार (2015), ममता बनर्जी (2021) और कई अन्य दलों के लिए चुनावी रणनीतियाँ तैयार कीं।
वर्तमान में वे जन सुराज पार्टी के संस्थापक और प्रमुख हैं, और बिहार के राजनीतिक पुनर्गठन के मिशन पर काम कर रहे हैं।
उनकी पार्टी “जन सुराज यात्रा” के माध्यम से राज्य के विभिन्न जिलों में संगठन निर्माण और जनसंवाद कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रशांत किशोर का यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में यह नोटिस उनके लिए राजनीतिक असुविधा का कारण बन सकता है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम का महत्व
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव माने जाते हैं।
ये अधिनियम मतदाता पंजीकरण, चुनाव संचालन, उम्मीदवारों की योग्यता और अयोग्यता, और मतदान प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर दो जगहों पर वोटर के रूप में पंजीकृत होता है, तो यह “Electoral Fraud (मतदाता धोखाधड़ी)” की श्रेणी में आता है।
हालांकि, कुछ मामलों में यह प्रशासनिक त्रुटि या पता परिवर्तन के कारण भी हो सकता है।
पूर्व मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) एस.वाई. कुरैशी ने कहा था —
“कई बार लोग शहर बदलते हैं और पुराने पते से नाम कटवाना भूल जाते हैं। लेकिन यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर दोहरी पंजीकरण कराता है, तो यह गंभीर अपराध है।”
राजनीतिक हलचल और प्रतिक्रियाएँ
जन सुराज पार्टी के सूत्रों का कहना है कि यह मामला “तकनीकी त्रुटि” का हो सकता है।
हालांकि, पार्टी की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
वहीं, विपक्षी दलों ने इसे प्रशांत किशोर की “राजनीतिक साख पर सवाल उठाने वाला मामला” बताया है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा —
“जो व्यक्ति दूसरों को चुनावी नैतिकता का पाठ पढ़ाता है, वह खुद नियमों का पालन न करे, तो यह गंभीर मामला है।”
वहीं, बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा —
“कानून सबके लिए समान है। यदि दोहरी वोटर आईडी पाई गई है, तो कार्रवाई होनी चाहिए, चाहे वह कोई भी हो।”
चुनाव आयोग की सख्ती और पारदर्शिता का संदेश
चुनाव आयोग ने पिछले कुछ वर्षों में वोटर लिस्ट के शुद्धिकरण अभियान पर विशेष जोर दिया है।
डिजिटल सत्यापन, आधार लिंकिंग और ऑनलाइन संशोधन जैसे उपायों के जरिए डुप्लीकेट वोटर हटाने की प्रक्रिया तेज की जा रही है।
इस बीच प्रशांत किशोर पर यह कार्रवाई आयोग के “Zero Tolerance on Electoral Violations” के दृष्टिकोण को भी दर्शाती है। यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि यह किसी सामान्य मतदाता का नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर के चुनावी रणनीतिकार और राजनीतिक नेता का है।
प्रशांत किशोर को जारी हुआ यह नोटिस सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि चुनावी पारदर्शिता और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के सख्त पालन की दिशा में एक संकेत है। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि वे तीन दिनों में क्या जवाब देते हैं, और क्या यह विवाद महज एक “प्रशासनिक त्रुटि” साबित होगा या फिर कानूनी कार्यवाही का रूप लेगा।
यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह न केवल प्रशांत किशोर की राजनीतिक साख के लिए चुनौती होगी, बल्कि आने वाले चुनावों में उनकी रणनीतिक भूमिका पर भी असर डाल सकती है।



