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दिल्लीफीचर्ड

DUSU Election 2025: दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति का महामुकाबला, अब सबकी निगाहें मतगणना पर

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) चुनाव 2025 का महासंग्राम आखिरकार गुरुवार को मतदान के साथ पूरा हो गया। पूरे कैंपस में सुबह से ही छात्रों में गजब का जोश और उत्साह देखने को मिला। अब शुक्रवार को होने वाली मतगणना से यह साफ हो जाएगा कि चार अहम पदों—अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव—की गद्दी किसके हाथ जाएगी।

इस बार कुल 21 उम्मीदवार मैदान में उतरे, लेकिन मुकाबला सीधे तौर पर ABVP बनाम NSUI का ही माना जा रहा है। यही वजह है कि मतगणना को लेकर न सिर्फ कैंपस बल्कि पूरे राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है।


DUSU चुनाव: सिर्फ छात्र राजनीति नहीं, राष्ट्रीय राजनीति की नर्सरी भी

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव को सिर्फ एक कॉलेज का चुनाव मानना भूल होगी। इसे भारतीय राजनीति का प्रशिक्षण केंद्र कहा जाता है। यहां जीतने वाले छात्र नेता आगे चलकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में बड़े पदों तक पहुंचे हैं।

इतिहास गवाह है कि अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, विजय गोयल, ललित माकन, अलका लांबा, प्रवेश वर्मा जैसे कई नाम पहले DUSU से ही राजनीति की सीढ़ी चढ़े। यही नहीं, दिल्ली की मौजूदा मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी इसी छात्रसंघ से निकलकर आगे बढ़ीं।

यानी, DUSU का यह चुनाव बताता है कि कल का बड़ा नेता कौन होगा। यही कारण है कि राष्ट्रीय पार्टियां इस “छोटे चुनाव” में भी अपनी पूरी ताकत झोंक देती हैं।


इस बार प्रशासन ने अपनाई जीरो टॉलरेंस पॉलिसी

दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2025 के चुनाव को “स्वच्छ और पारदर्शी” बनाने के लिए कई कड़े कदम उठाए।

  • उम्मीदवारों के लिए 1 लाख रुपये का जमानत बॉन्ड अनिवार्य किया गया।
  • पोस्टर-बैनर चिपकाने और अवैध प्रचार पर रोक।
  • लाउडस्पीकर, रोड शो और रैली पर पाबंदी।
  • नियम तोड़ने वालों पर ₹25,000 का जुर्माना लगाने का प्रावधान।

इन सख्तियों के बावजूद कैंपस में चुनावी माहौल गरम रहा। छात्र संगठनों ने सोशल मीडिया को हथियार बनाया और डिजिटल कैंपेन से छात्रों को लुभाने की कोशिश की।


कैंपस में कैसा रहा वोटिंग डे का नज़ारा?

सुबह से ही कॉलेज गेट्स पर लंबी कतारें नजर आईं। छात्र अपने-अपने संगठन के झंडे और बैज लगाए हुए दिखे।

  • ABVP समर्थक “राष्ट्रवाद और शिक्षा सुधार” के नारे लगा रहे थे।
  • NSUI कार्यकर्ता “रोजगार और फीस कटौती” के मुद्दे पर वोट मांग रहे थे।

दोनों संगठनों के समर्थकों में कई जगह नारेबाजी और बहस भी हुई, लेकिन प्रशासन ने सतर्कता दिखाते हुए हालात को बिगड़ने नहीं दिया।

मतदान शाम तक शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ और अब सबकी नजरें शुक्रवार सुबह की मतगणना पर हैं।


ABVP बनाम NSUI: किसके पास ज्यादा दमखम?

इस चुनाव में ABVP और NSUI दोनों ही छात्र संगठनों ने जोर-शोर से प्रचार किया।

  • ABVP ने राष्ट्रवाद, हॉस्टल सुविधाओं में सुधार और छात्र सुरक्षा जैसे मुद्दों को उठाया।
  • वहीं NSUI ने फीस वृद्धि, रोजगार, और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर छात्रों से अपील की।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार मुकाबला बेहद कांटे का होगा। ABVP को पिछली जीत का फायदा मिल सकता है, लेकिन NSUI भी इस बार पूरी ताकत से मैदान में है।


राजनीतिक दलों की भी धड़कनें तेज

DUSU चुनाव का असर केवल DU कैंपस तक ही सीमित नहीं है। राष्ट्रीय पार्टियां भी यहां के नतीजों को लेकर चिंतित और उत्साहित रहती हैं।

  • भाजपा को उम्मीद है कि ABVP की जीत से उन्हें दिल्ली में राजनीतिक बढ़त मिलेगी।
  • वहीं कांग्रेस चाहती है कि NSUI की जीत से उसे युवा राजनीति में नई जान मिले।

दरअसल, यह चुनाव दिल्ली की सियासत का “सेमीफाइनल” भी माना जाता है।


छात्रों की राय: मुद्दों से ज्यादा धारणा का खेल

DUSU चुनाव में केवल मुद्दे ही नहीं, बल्कि “धारणा (Perception)” भी बड़ी भूमिका निभाती है।
कई छात्रों का मानना है कि यहां जीतने वाले संगठन को सिर्फ कैंपस में नहीं, बल्कि पूरे देश में चर्चा मिलती है। यही कारण है कि यह चुनाव हर साल मीडिया की सुर्खियां बनता है।


अब सबकी निगाहें मतगणना पर

अब जबकि मतदान शांतिपूर्वक संपन्न हो चुका है, सबकी नजरें शुक्रवार की सुबह मतगणना पर हैं।

  • अगर ABVP जीतती है, तो इसे भाजपा के लिए बड़ी राहत और युवाओं के बीच पकड़ मजबूत करने का संदेश माना जाएगा।
  • वहीं अगर NSUI को जीत मिलती है, तो कांग्रेस के लिए यह एक मनोवैज्ञानिक जीत होगी, जिससे पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनावों में बड़ा सहारा मिलेगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव सिर्फ एक छात्र चुनाव नहीं है। यह युवा राजनीति का आईना है, जो आने वाले समय की सियासी तस्वीर को भी दर्शाता है। अब 2025 का यह चुनाव किसके नाम होगा, इसका फैसला शुक्रवार को हो जाएगा।

एक बात तय है—DUSU चुनाव 2025 ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि छात्रों की राजनीति ही भविष्य की राजनीति की असली प्रयोगशाला है।

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