
नई दिल्ली, 1 नवंबर: दिल्ली के शकूरपुर इलाके में पुलिस ने शनिवार को एक 11 वर्षीय बच्चे को बरामद किया, जो करीब एक महीने से लापता था। पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि एक महिला ने बच्चे को ‘प्रसाद’ देने के बहाने बहलाकर अपने साथ ले गई, और फिर उसे कूड़ा बीनने के लिए मजबूर किया। इस दौरान बच्चे के साथ शारीरिक उत्पीड़न और भूखा रखने की घटनाएँ भी सामने आई हैं।
यह मामला न केवल दिल्ली की सड़कों पर बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि राजधानी में बाल शोषण का नेटवर्क किस हद तक सक्रिय है।
लापता होने से लेकर बरामदगी तक की पूरी कहानी
जानकारी के मुताबिक, बच्चे का नाम (पहचान गोपनीय रखी गई है) उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के कंझावला इलाके का रहने वाला है। वह लगभग एक महीने पहले अचानक घर से गायब हो गया था। परिजनों ने 28 सितंबर को पुलिस में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी।
परिवार ने शुरुआत में मान लिया था कि बच्चा किसी दोस्त या रिश्तेदार के यहां गया होगा, लेकिन जब कई दिन बीतने के बाद भी कोई सुराग नहीं मिला, तो मामले की गंभीरता बढ़ गई। जांच की जिम्मेदारी शकूरपुर थाना पुलिस को सौंपी गई।
डीसीपी (उत्तर-पश्चिम) उपासना शर्मा ने बताया,
“हमने बच्चे की तलाश के लिए कई टीमों का गठन किया था। सीसीटीवी फुटेज, स्थानीय झुग्गियों और कचरा स्थलों की तलाशी ली गई। आखिरकार शुक्रवार शाम हमें शकूरपुर की झुग्गियों में बच्चे के होने की जानकारी मिली।”
प्रसाद का लालच देकर अपने साथ ले गई महिला
पुलिस के अनुसार, बच्चा घर के पास मंदिर के बाहर खेल रहा था, जब एक महिला ने उसे प्रसाद का लालच देकर अपने साथ आने के लिए कहा। वह महिला उसे शकूरपुर क्षेत्र की झुग्गियों में ले गई और वहीं कूड़ा बीनने वाले बच्चों के साथ रहने को मजबूर कर दिया।
बच्चे ने पूछताछ में बताया कि
“दीदी ने कहा था मंदिर चलो, प्रसाद दूंगी। उसके बाद मुझे खाने को बहुत कम मिलता था। जब भी मैं घर जाने की बात करता, वो मारती थी।”
पुलिस का कहना है कि महिला नशे की लत से ग्रस्त है और अक्सर छोटे बच्चों को बहलाकर उनसे कूड़ा बीनने या काम करवाने का काम करती थी।
शारीरिक उत्पीड़न और भूखा रखने के आरोप
बच्चे की मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टरों ने कुपोषण और चोटों के निशान पाए हैं।
जांच अधिकारियों के मुताबिक, बच्चे को कई दिनों तक पर्याप्त भोजन नहीं दिया गया और उसे सुबह से शाम तक कचरा बीनने के लिए भेजा जाता था।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया,
“यह साफ है कि बच्चे को मजबूरन काम कराया गया और उसके साथ शारीरिक हिंसा भी हुई। महिला ने स्वीकार किया कि वह बच्चे को मंदिर के बाहर से लाईं थी।”
महिला को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।
पुलिस ने उसके खिलाफ धारा 363 (अपहरण), 370 (मानव तस्करी) और बाल श्रम निषेध कानून के तहत केस दर्ज किया है।
परिवार की आंखों में आंसू, बच्चे का घर लौटना बना भावनात्मक पल
शनिवार दोपहर जब पुलिस ने बच्चे को उसके माता-पिता के हवाले किया, तो परिवार के सदस्य भावुक हो उठे।
बच्चे की मां ने कहा,
“मुझे लगा था अब मेरा बेटा कभी नहीं मिलेगा। मैं रोज़ मंदिर में जाकर उसकी सलामती की दुआ करती थी। पुलिस का शुक्रिया जिन्होंने मेरा बच्चा वापस दिलाया।”
बच्चा इस समय चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) की निगरानी में है। समिति के सदस्य ने बताया कि बच्चे की मानसिक स्थिति पर ध्यान देने के लिए काउंसलिंग और थेरेपी की जाएगी, ताकि वह इस दर्दनाक अनुभव से उबर सके।
दिल्ली में बाल तस्करी और जबरन श्रम के बढ़ते मामले
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में हर साल 400 से अधिक नाबालिगों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज होती है।
इनमें से कई बच्चे मजदूरी, भीख मांगने या यौन शोषण के गिरोहों के चंगुल में फंस जाते हैं।
चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट सीमा ठाकुर कहती हैं,
“राजधानी में झुग्गियों और कचरा स्थलों के आसपास बच्चों का शोषण आम है। कई बार परिवार गरीबी के कारण शिकायत दर्ज नहीं कराते। यह मामला दिखाता है कि बाल संरक्षण कानूनों का जमीनी स्तर पर पालन कितना कमजोर है।”
कानून क्या कहता है
भारत में बाल श्रम और मानव तस्करी से संबंधित कड़े कानून हैं —
- बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से किसी भी कार्य में मजदूरी करवाना गैरकानूनी है।
- बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) और मानव तस्करी निरोधक अधिनियम (ITPA) के तहत शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न के लिए सख्त सजा का प्रावधान है।
फिर भी, विशेषज्ञों के मुताबिक “कार्यान्वयन की कमी और स्थानीय निगरानी के अभाव” से ऐसे अपराधों पर पूरी तरह रोक नहीं लग पा रही।
पुलिस का दावा: और भी बच्चे हो सकते हैं प्रभावित
शकूरपुर झुग्गी बस्ती में पुलिस को आशंका है कि इसी गिरोह के जाल में कुछ और बच्चे भी फंसे हो सकते हैं।
पुलिस अब इलाके में रहने वाले अन्य कचरा बीनने वाले बच्चों की पहचान कर राहत अभियान चला रही है।
डीसीपी उपासना शर्मा ने कहा,
“हम इस पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस महिला के संपर्क में कौन लोग थे, और क्या वह किसी बड़े गिरोह का हिस्सा है, इसकी जांच जारी है।”
कानून और संवेदना दोनों की जरूरत
दिल्ली के शकूरपुर से 11 वर्षीय बच्चे की बरामदगी एक बड़ी राहत भरी खबर है, लेकिन इसके पीछे छिपा संदेश गंभीर है— राजधानी में आज भी ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं जो सड़कों पर ‘कूड़ा बीनने’ या ‘मदद करने’ के नाम पर शोषण का शिकार हो रहे हैं।
यह मामला न केवल पुलिस की सतर्कता का उदाहरण है, बल्कि समाज के लिए भी एक चेतावनी है कि बाल सुरक्षा केवल कागज़ों का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का सवाल है। जरूरत है कि हर नागरिक, हर संस्था और हर प्रशासनिक इकाई मिलकर इस तरह के अपराधों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस दिखाए।



