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दिल्ली की अदालत ने पांच साल की बच्ची से यौन उत्पीड़न मामले में युवक को दोषी ठहराया

अभियोजन पक्ष ने साक्ष्यों की पूरी कड़ी साबित की – अदालत ने कहा, ‘अपराध पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं’

  • नई दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा): दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2015 में पांच वर्षीय बच्ची के अपहरण और यौन उत्पीड़न से जुड़े एक जघन्य मामले में आरोपी युवक को दोषी करार दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर घटनाक्रम की पूरी कड़ी स्थापित की है, जिससे आरोपी के अपराध पर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं बचता।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप गुप्ता ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने घटना के हर चरण को ठोस साक्ष्यों से जोड़ते हुए यह सिद्ध कर दिया है कि आरोपी ने न केवल बच्ची का अपहरण किया बल्कि उसके साथ गंभीर यौन उत्पीड़न की वारदात को भी अंजाम दिया।

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, “अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य विश्वसनीय, संगत और निर्णायक हैं। घटनाक्रम की श्रृंखला में कोई ऐसा अंतराल नहीं है, जो आरोपी के अपराध को लेकर कोई संदेह उत्पन्न करे।”


घटना की पृष्ठभूमि

यह मामला वर्ष 2015 का है, जब उत्तर-पूर्वी दिल्ली के एक इलाके में पांच वर्ष की बच्ची अचानक लापता हो गई थी। परिजनों ने तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने खोजबीन के दौरान बच्ची को गंभीर अवस्था में एक सुनसान इलाके से बरामद किया था। मेडिकल रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न किया गया था।

जांच के दौरान पुलिस ने इलाके के सीसीटीवी फुटेज और स्थानीय गवाहों के बयानों के आधार पर आरोपी युवक की पहचान की। आरोपी को बाद में गिरफ्तार कर उसके खिलाफ अपहरण (IPC धारा 363), महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने (IPC धारा 354), और गंभीर यौन उत्पीड़न (POCSO Act) के तहत मामला दर्ज किया गया।


अभियोजन पक्ष का पक्ष

अभियोजन पक्ष ने अदालत में बताया कि आरोपी ने बच्ची को खेल के बहाने अपने साथ ले जाकर सुनसान स्थान पर अपराध को अंजाम दिया। अभियोजन ने चिकित्सा रिपोर्ट, फॉरेंसिक साक्ष्य, और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों को प्रस्तुत करते हुए अपराध की श्रृंखला को सिद्ध किया।

सरकारी वकील ने तर्क दिया कि आरोपी की गिरफ्तारी के समय उसके कपड़ों से लिए गए सैंपल और पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट में मिले डीएनए साक्ष्य एक-दूसरे से मेल खाते हैं। अदालत ने इस वैज्ञानिक साक्ष्य को “न्यायिक रूप से निर्णायक” बताया।

वकील ने कहा, “इस मामले में अभियोजन ने न केवल गवाही बल्कि तकनीकी और चिकित्सा प्रमाणों से भी आरोपी की संलिप्तता को साबित किया है। बचाव पक्ष द्वारा दिए गए सभी तर्क केवल भ्रम पैदा करने के प्रयास थे, जो किसी ठोस आधार पर नहीं टिकते।”


अदालत का निर्णय और टिप्पणियाँ

अदालत ने कहा कि आरोपी के अपराध की गंभीरता को देखते हुए इसे “अत्यंत जघन्य और अमानवीय कृत्य” कहा जा सकता है। न्यायाधीश संदीप गुप्ता ने कहा कि नाबालिगों के खिलाफ ऐसे अपराध समाज की संवेदनशीलता पर गहरा आघात करते हैं और न्याय व्यवस्था का यह दायित्व है कि पीड़ितों को न्याय मिले तथा अपराधियों को सख्त सजा दी जाए।

फैसले में अदालत ने कहा, “एक निर्दोष बच्ची के साथ ऐसा घिनौना अपराध न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि यह समाज की नैतिक संरचना पर सीधा प्रहार है। न्यायालय का कर्तव्य है कि वह ऐसे अपराधियों को कठोर दंड दे, ताकि समाज में एक सशक्त संदेश जाए।”

अदालत ने अभियोजन पक्ष के सबूतों को “सुसंगत, ठोस और प्रमाणिक” बताते हुए आरोपी को दोषी ठहराया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई सजा निर्धारण के लिए अगले सप्ताह तय की है।


POCSO कानून के तहत सजा के प्रावधान

प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (POCSO) एक्ट, 2012’ के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के अपराध में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास या कम से कम दस वर्ष की सजा, और जुर्माने का प्रावधान है।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत इस मामले में सजा सुनाते समय अपराध की प्रकृति, पीड़िता की आयु और अपराध की परिस्थितियों को ध्यान में रखेगी। न्यायिक प्रक्रिया का अगला चरण अभियुक्त की सजा की अवधि और अन्य दंडात्मक पहलुओं को तय करेगा।


बाल सुरक्षा पर बढ़ा ध्यान

दिल्ली में हाल के वर्षों में नाबालिगों से यौन अपराधों के मामलों में वृद्धि को देखते हुए अदालतों ने कई बार सरकार और पुलिस से बाल सुरक्षा के उपाय मजबूत करने को कहा है। अदालतों ने यह भी कहा है कि ऐसे मामलों की जांच और ट्रायल त्वरित गति से हो, ताकि पीड़ित परिवार को न्याय के लिए वर्षों तक प्रतीक्षा न करनी पड़े।

इस मामले में भी अदालत ने जांच एजेंसियों द्वारा की गई त्वरित और पेशेवर कार्रवाई की सराहना की।

यह फैसला न केवल पीड़िता और उसके परिवार के लिए न्याय का प्रतीक है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि कानून बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर किसी भी तरह की नरमी नहीं बरतेगा। अदालत के आदेश से यह भी स्पष्ट हुआ कि जब अभियोजन पक्ष ठोस साक्ष्य और गवाहों की कड़ी प्रस्तुत करता है, तो न्याय की प्रक्रिया प्रभावी रूप से अपराधियों को दंडित कर सकती है।

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