
देहरादून, 12 नवंबर। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से एक हृदयविदारक मामला सामने आया है, जहाँ दो जवान बेटों पर अपनी कैंसर पीड़ित मां और बुजुर्ग पिता को प्रताड़ित करने, मारपीट करने और घर से बेदखल करने का आरोप लगा है। मामला जिलाधिकारी के संज्ञान में आने के बाद प्रशासन ने तुरंत सख्त कदम उठाते हुए दोनों बेटों के खिलाफ गुंडा अधिनियम (Gunda Act) के तहत न्यायिक कार्रवाई शुरू कर दी है।
जिलाधिकारी (डीएम) ने दोनों आरोपित बेटों को 25 नवंबर को डीएम न्यायालय में तलब किया है और स्पष्ट किया है कि यदि दोष सिद्ध होता है तो उन्हें जिला बदर (exile order) किया जा सकता है।
जनता दर्शन में सुनी गई बुजुर्ग माता-पिता की व्यथा
यह मामला तब सामने आया जब 10 नवंबर को आयोजित जनता दर्शन कार्यक्रम में देहरादून निवासी गीता देवी और उनके पति राजेश डीएम कार्यालय पहुँचे। वृद्ध दंपति ने जिलाधिकारी को अपनी पीड़ा सुनाते हुए बताया कि उनके दो बेटे आए दिन शराब के नशे में मारपीट करते हैं, गाली-गलौज करते हैं और घर से निकालने की धमकी देते हैं।
गीता देवी, जो खुद कैंसर पीड़ित हैं, ने डीएम से गुहार लगाई कि उनके बेटे उन्हें और उनके पति को घर से बेदखल करने पर आमादा हैं। दोनों वृद्ध फिलहाल किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं।
डीएम ने तत्काल इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित न्यायालय में वाद दर्ज कराने के निर्देश दिए और दोनों बेटों को नोटिस जारी कर 25 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया।
गुंडा एक्ट के तहत शुरू की गई न्यायिक कार्रवाई
प्रशासन ने मामले को न केवल घरेलू हिंसा या पारिवारिक विवाद के रूप में देखा, बल्कि सार्वजनिक शांति भंग करने और बुजुर्गों के उत्पीड़न के रूप में चिन्हित किया।
जिलाधिकारी ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां परिवार के सदस्य ही बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएं, वहाँ कानून को कठोर रुख अपनाना होगा।
डीएम ने दोनों बेटों के विरुद्ध गुंडा एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई प्रारंभ की है, जिसके तहत निरंतर हिंसक या असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों को जिला बदर किया जा सकता है ताकि सार्वजनिक शांति एवं कानून व्यवस्था बनी रहे।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, यह पहला मौका नहीं है जब बुजुर्गों द्वारा अपने बेटों से प्रताड़ना की शिकायत की गई हो। जिले में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जिनमें बेटों द्वारा माता-पिता को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि ऐसे सभी मामलों में “जीरो टॉलरेंस नीति” अपनाई जाएगी।
“बुजुर्गों की सुरक्षा प्रशासन की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी” – डीएम
डीएम ने जनता दर्शन के दौरान इस मामले पर संज्ञान लेते हुए कहा कि राज्य सरकार बुजुर्ग नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के प्रति पूरी तरह संवेदनशील है।
उन्होंने कहा,
“माता-पिता की सेवा और सम्मान हर नागरिक का पहला कर्तव्य है। यदि कोई संतान अपने माता-पिता के साथ अमानवीय व्यवहार करती है, तो कानून उस पर कड़ी कार्रवाई करेगा। प्रशासन ऐसे मामलों में समझौता नहीं करेगा।”
डीएम ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि जिले में वृद्धजनों से संबंधित सभी शिकायतों की त्वरित जांच हो और प्रत्येक मामले की प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा की जाए।
सामाजिक संदेश और प्रशासन की नई पहल
देहरादून प्रशासन ने हाल के महीनों में “जनता दर्शन कार्यक्रम” के माध्यम से नागरिकों से सीधे संवाद की पहल की है, जिसके तहत लोग अपनी व्यक्तिगत, सामाजिक या प्रशासनिक समस्याएं जिलाधिकारी के समक्ष सीधे रख सकते हैं।
अब तक इस पहल से सैकड़ों लोगों को राहत मिली है।
प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डीएम के हस्तक्षेप से कई ऐसे परिवारिक विवाद सुलझाए गए जिनमें बुजुर्गों को अपनों से ही बेदखल किया जा रहा था। कुछ मामलों में आपसी सुलह से घर टूटने से बचे हैं, जबकि कई मामलों में प्रताड़ित बुजुर्गों को सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान की गई है।
बुजुर्गों के लिए कानून का प्रावधान
विशेषज्ञों के अनुसार, वरिष्ठ नागरिक अभिभावक देखभाल एवं कल्याण अधिनियम 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत माता-पिता को अपने बच्चों से भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त है। यदि संतान उनकी देखभाल से इंकार करे या उन्हें प्रताड़ित करे, तो प्रशासन उन्हें घर से निकालने या जिला बदर करने तक की कार्रवाई कर सकता है।
डीएम कार्यालय के अनुसार, इस कानून को सख्ती से लागू किया जा रहा है, ताकि समाज में यह संदेश जाए कि बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
“हर शिकायत पर त्वरित न्याय” – जिला प्रशासन
देहरादून जिलाधिकारी कार्यालय ने यह भी बताया कि जनता दर्शन के दौरान प्राप्त शिकायतों में से अधिकांश का निस्तारण निर्धारित समय सीमा के भीतर किया जा रहा है।
डीएम के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से प्रशासनिक पारदर्शिता और जनता का भरोसा दोनों बढ़े हैं।
सूचना विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि
“बुजुर्गों की सुरक्षा को लेकर जिलाधिकारी लगातार निर्देश दे रहे हैं। कई ऐसे निर्णय हुए हैं जिनसे परिवारिक विवाद सुलझे हैं और कई घर टूटने से बच गए हैं। प्रशासन का उद्देश्य न्याय के साथ-साथ सामाजिक संवेदनशीलता बनाए रखना है।”
25 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
अब पूरा मामला 25 नवंबर को जिलाधिकारी न्यायालय में पेश किया जाएगा, जहाँ दोनों बेटों को अपने पक्ष में जवाब प्रस्तुत करना होगा। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो उन्हें गुंडा एक्ट के तहत जिला बदर किया जा सकता है।
प्रशासन का यह सख्त कदम समाज में एक मजबूत संदेश देने वाला माना जा रहा है कि माता-पिता की उपेक्षा या प्रताड़ना अस्वीकार्य अपराध है और ऐसे कृत्यों पर कानून बिना देरी के कार्रवाई करेगा।



