
देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सरकारी स्कूल से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे शिक्षा विभाग को हिला दिया है। राजकीय प्राथमिक विद्यालय बांध विस्थापित बंजारावाला में स्कूली बच्चों से रेत और बजरी उठवाने का वीडियो वायरल होने के बाद प्रधानाचार्य को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
यह मामला न सिर्फ शिक्षा प्रणाली की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि देश में बाल अधिकारों को लेकर अभी भी कई जगह गंभीर संवेदनशीलता की कमी है।
📹 सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो बना सबूत
6 अक्टूबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें छोटे बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म में तसले और फावड़े से रेत उठाते हुए नजर आ रहे थे।
वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि बच्चे स्कूल परिसर में रेत और बजरी को एक जगह से दूसरी जगह ढो रहे हैं, जबकि कोई शिक्षक या कर्मचारी उन्हें रोकने वाला नहीं दिखा।
इस वीडियो के सामने आने के बाद स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया।
🕵️♀️ मुख्य शिक्षा अधिकारी ने ली त्वरित कार्रवाई
वीडियो वायरल होने के कुछ घंटों के भीतर मुख्य शिक्षा अधिकारी (C.E.O) देहरादून ने इस मामले का संज्ञान लिया और उप शिक्षा अधिकारी रायपुर को तत्काल जांच के आदेश दिए।
जांच टीम ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया और विद्यालय में हुई गतिविधियों की पुष्टि की।
जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ कि विद्यालय में बच्चों से शारीरिक श्रम कराया जा रहा था, जो कि बाल श्रम कानून और शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम दोनों का उल्लंघन है।
⚖️ जांच रिपोर्ट के बाद हुई सख्त कार्रवाई
रिपोर्ट मिलने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक शिक्षा), देहरादून ने विद्यालय की प्रधानाचार्य को तत्काल निलंबित कर दिया और उन्हें रायपुर कार्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया है।
डीईओ कार्यालय की ओर से कहा गया कि इस तरह की घटनाएं किसी भी परिस्थिति में बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।
अन्य शिक्षिकाओं से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है, और यदि उनकी भूमिका या लापरवाही सामने आई तो कर्मचारी आचरण नियमावली के तहत सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
😠 शिक्षा विभाग ने जताई नाराज़गी
इस पूरे मामले को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने नाराज़गी जाहिर की है।
अधिकारियों का कहना है कि स्कूल परिसर में बच्चों से मजदूरी करवाना बाल अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
शिक्षा के अधिकार कानून (Right to Education Act) के तहत बच्चों का स्कूल में उद्देश्य सिर्फ पढ़ाई, खेल और विकास होना चाहिए, न कि किसी प्रकार का श्रम कार्य।
मुख्य शिक्षा अधिकारी ने यह भी निर्देश दिए हैं कि जिले के सभी विद्यालयों में नियमित निरीक्षण किया जाए, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
📜 क्या कहता है कानून?
भारत में बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी प्रकार का श्रम करवाना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।
साथ ही, शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 यह सुनिश्चित करता है कि हर बच्चे को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा मिले — ऐसे में किसी भी शैक्षणिक संस्थान में बच्चों से काम करवाना कानून का गंभीर उल्लंघन है।
ऐसे मामलों में संबंधित जिम्मेदारों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई और निलंबन का प्रावधान है।
🧒 बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की घटनाएं बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास पर गंभीर प्रभाव डालती हैं।
कक्षा में शिक्षा प्राप्त करने के बजाय जब बच्चे श्रम करते हैं, तो न केवल उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है, बल्कि उनके आत्मविश्वास और सामाजिक विकास पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, बच्चों के सामने इस तरह के कार्य “सामान्य” के रूप में पेश करना उन्हें मानसिक रूप से असंवेदनशील बना सकता है।
🏫 स्थानीय अभिभावकों में भी रोष
इस घटना के बाद स्थानीय अभिभावक संघों और ग्रामीणों में आक्रोश है।
लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पहले ही शिक्षकों की कमी और संसाधनों की दिक्कत है, और अब यदि शिक्षक ही बच्चों से काम करवाने लगें तो शिक्षा व्यवस्था का क्या होगा?
कई अभिभावकों ने इस मामले में दोषियों के खिलाफ कठोर सजा की मांग की है ताकि आगे ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
📢 संदेश साफ — शिक्षा के मंदिर में श्रम नहीं, संस्कार सिखाए जाएं
देहरादून की यह घटना पूरे राज्य के शिक्षा तंत्र के लिए एक चेतावनी है।
स्कूल सिर्फ किताबों का ज्ञान देने की जगह नहीं हैं, बल्कि संस्कार, संवेदना और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाने का स्थान हैं।
जब शिक्षा के मंदिरों में ही बच्चों से श्रम कराया जाएगा, तो समाज में शिक्षा की गरिमा और बच्चों के अधिकार दोनों पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा।
सरकार और शिक्षा विभाग ने भले ही त्वरित कार्रवाई की हो, लेकिन अब ज़रूरत है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए निगरानी तंत्र को और मज़बूत किया जाए, ताकि भविष्य में किसी बच्चे को फावड़ा या तसला नहीं, बल्कि किताब और कलम थमाई जाए।